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हिमाचल प्रदेश : कभी एशिया में प्रसिद्ध थी सिरमौर की अदरक, आज खो रही अपनी पहचान

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Published : Dec 11, 2019, 6:22 PM IST

कभी सम्पूर्ण एशिया में अदरक उत्पादन में अव्वल रहे हिमाचल प्रदेश का जिला सिरमौर आज काफी पीछे हो गया है. जिले के शिलाई, रेणुका, पच्छाद और पांवटा साहिब विधान सभा क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अदरक की खेती की जाती थी, लेकिन अब इन इलाकों में अदरक की खेती से लोगों ने तौबा कर ली है. विस्तार से पढ़ें पूरी खबर...

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सिरमौर

शिमला : 1980 के दशक में अदरक उत्पादन में हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला पूरे एशिया में मशहूर था. जिले के शिलाई, रेणुका, पच्छाद और पांवटा साहिब विधानसभा क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अदरक की खेती की जाती थी. यहां के अधिकतर किसान अपना गुजर-बसर अदरक की खेती से ही करते थे, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. अब इन इलाकों में अदरक की खेती से लोगों ने तौबा कर ली है.

इसकी मुख्य वजह कम दाम, जिला में कोई उद्योग-मंडी का ना होना और फसलों में लगने वाली सड़न रोग है. यहां के किसानों को अपनी फसलों को उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब या दिल्ली की मंडियों में बेचना पड़ता है. ऐसे में किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ता है. इस वजह से किसानों का अदरक की खेती मोहभंग होने लगा है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

वहीं, ताजा हालतों के बारे में बात करें तो इस बार मौसम की बेरुखी और फसलों में सड़न रोग ने किसानों के मनोबल को चूर-चूर कर दिया है. पांवटा साहिब में 237 हेक्टेयर में अदरक की खेती की जाती है, लेकिन अदरक में सड़न रोग लगने से उत्पादन 50 प्रतिशत से कम हो चुका है. ऐसे में जिले के पांवटा व गिरिपार क्षेत्र के कई पंचायतों के लोगों ने अदरक की खेती बंद कर दी है.

सड़न रोग और जंगली जानवर से बचाव जरूरी
ग्रामीणों का कहना है कि अदरक को बंदर एवं जगंली जानवरों से बचाना जहां मुश्किल हो रहा है वहीं फसल में सड़न रोग की वजह से पांवटा व गिरिपार क्षेत्र के कई पंचायतों के लोगों ने अदरक की खेती बिल्कुल बंद कर दी है. अगर ट्रांस गिरी क्षेत्र की बात की जाए तो यहां सबसे ज्यादा अदरक की पैदावार होती रही है, लेकिन इस बार मौसम की बेरुखी से पैदावार कम हुई है.

सरकार गंभीरता से करें कार्य
बुद्धिजीवियों का कहना है कि पहाड़ी क्षेत्र के लोग अदरक की फसल पर ही अपना गुजारा करते थे. पहाड़ी क्षेत्रों मे रहने वाला हर किसान कोयतल अदरक का उत्पादन करता था, लेकिन आज के समय में इन क्षेत्रों में अदरक की पैदावार कम हो गई है, अगर सरकार इस पर गंभीरता से कार्य करे तो दोबारा इन इलाकों में अदरक की खेती शुरू हो सकती है...

सही बीज का करें चयन
कृषि अधिकारी इंद्रा चौहान का कहना है किसानों द्वारा सही बीज का चयन भी इसके उत्पादन पर प्रभाव डालता है. यदि किसान बीज का चयन सही तरीके से करे तो अदरक की पैदावार अच्छी हो सकती है.

ये भी पढ़ें : कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने कहा- आने वाले समय में काले कानून के रूप में जाना जाएगा CAB

शिमला : 1980 के दशक में अदरक उत्पादन में हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला पूरे एशिया में मशहूर था. जिले के शिलाई, रेणुका, पच्छाद और पांवटा साहिब विधानसभा क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अदरक की खेती की जाती थी. यहां के अधिकतर किसान अपना गुजर-बसर अदरक की खेती से ही करते थे, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. अब इन इलाकों में अदरक की खेती से लोगों ने तौबा कर ली है.

इसकी मुख्य वजह कम दाम, जिला में कोई उद्योग-मंडी का ना होना और फसलों में लगने वाली सड़न रोग है. यहां के किसानों को अपनी फसलों को उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब या दिल्ली की मंडियों में बेचना पड़ता है. ऐसे में किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ता है. इस वजह से किसानों का अदरक की खेती मोहभंग होने लगा है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

वहीं, ताजा हालतों के बारे में बात करें तो इस बार मौसम की बेरुखी और फसलों में सड़न रोग ने किसानों के मनोबल को चूर-चूर कर दिया है. पांवटा साहिब में 237 हेक्टेयर में अदरक की खेती की जाती है, लेकिन अदरक में सड़न रोग लगने से उत्पादन 50 प्रतिशत से कम हो चुका है. ऐसे में जिले के पांवटा व गिरिपार क्षेत्र के कई पंचायतों के लोगों ने अदरक की खेती बंद कर दी है.

सड़न रोग और जंगली जानवर से बचाव जरूरी
ग्रामीणों का कहना है कि अदरक को बंदर एवं जगंली जानवरों से बचाना जहां मुश्किल हो रहा है वहीं फसल में सड़न रोग की वजह से पांवटा व गिरिपार क्षेत्र के कई पंचायतों के लोगों ने अदरक की खेती बिल्कुल बंद कर दी है. अगर ट्रांस गिरी क्षेत्र की बात की जाए तो यहां सबसे ज्यादा अदरक की पैदावार होती रही है, लेकिन इस बार मौसम की बेरुखी से पैदावार कम हुई है.

सरकार गंभीरता से करें कार्य
बुद्धिजीवियों का कहना है कि पहाड़ी क्षेत्र के लोग अदरक की फसल पर ही अपना गुजारा करते थे. पहाड़ी क्षेत्रों मे रहने वाला हर किसान कोयतल अदरक का उत्पादन करता था, लेकिन आज के समय में इन क्षेत्रों में अदरक की पैदावार कम हो गई है, अगर सरकार इस पर गंभीरता से कार्य करे तो दोबारा इन इलाकों में अदरक की खेती शुरू हो सकती है...

सही बीज का करें चयन
कृषि अधिकारी इंद्रा चौहान का कहना है किसानों द्वारा सही बीज का चयन भी इसके उत्पादन पर प्रभाव डालता है. यदि किसान बीज का चयन सही तरीके से करे तो अदरक की पैदावार अच्छी हो सकती है.

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Intro:लुप्त हो रही है पहाड़ी क्षेत्रों की अदरक की फसल अदरक ही एक किसानों का सहारा वह भी अनदेखी से दिन प्रतिदिन लुप्त होता नजर आ रहा है रेट अच्छे मिल रहे हैं तो पैदावार कम हैBody:सिरमौर के पहाड़ी क्षेत्रों में अदरक की खेती लुप्त होती जा रही है। यहां अधिकतर किसान अपना गुजारा-बसर अदरक की खेती से करते थे लेकिन पिछले कुछ सालों से अदरक के दाम कम होने से किसानों ने इसका कार्य छोड़ दिया है। गांव में इक्का-दुक्का परिवार ही आजकल अदरक की खेती कर रहे हैंं।

पहाड़ी क्षेत्र के किसान क्यों परेशान
गरीब किसानों की खेती धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। जहां एक ओर अदरक के ऊंचे दाम मिल रहे हैं उसके बावजूद भी उत्पादन कम होने से क्षेत्रों के किसान मायूस हैं। जिला सिरमौर के किसानों का मानना है कि जिस प्रकार अन्य फसलों पर लगने वाले रोगों की वैज्ञानिक विधि से रोक की जाती है। इसी तरह अदरक के लिए भी कोई विधि बने। ब्लॉक पांवटा साहिब में 237 हेक्टेयर में अदरक की खेती की जाती है लेकिन अदरक में सड़न रोग लगने से उत्पादन 50 प्रतिशत से कम हो रहा है। जिले के पांवटा व गिरिपार क्षेत्र के कई पंचायतों के लोगों ने अदरक की खेती बंद कर दी है। ग्रामीण का कहना है कि अदरक को उत्पादि बंदर एवं जगंली जानवरों से जहां बचाना मुशिकल हो रहा है। वहीं अदरक में सड़न रोग से ग्रस्त किसानो ने अदरक की खेती करना बहुत कम कर दिया है। इससे किसानों को पहले जैसा लाभ मिल पा रहा है। हालांकि इस समय अदरक के दाम अच्छे मिल रहे हैं। जिले से अदरक को बाहरी राज्यों हरियाणा पंजाब, विकास नगर, उत्तराखंड की मंडियों में बेचा जा रहा है।

क्या कहा किसानों ने

अदरक की खेती ने जिले के छोटे किसानों को अलग पहचान दी है। सिरमौर जिला के अगर पहाड़ी क्षेत्रों की बात की जाए तो यहां के किसान अदरक पर ही निर्भय रहते थे अदरक के आमदनी से ही अपने पूरे साल का गुजर बसर करते थे पर समय के साथ साथ अदरक की फसल अब लोगों ने कम पैदा शुरू कर दिया है जिले में अदरक के कोई भी उद्योग ना होने की वजह से लोगों को अदरक मंडियों में पहुंचाना मुश्किल हो जाता है रेट में भारी गिरावट होने की वजह भी लोगों ने अदरक कम लगाना शुरू किया है हालांकि इस बार अदरक के रेट में बढ़ोतरी जरूर हुई है पर किसानों ने अदरक की पैदावार कब की है ट्रांस गिरी क्षेत्र की अगर बात की जाए इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा अदरक की पैदावार की जाती है पर इस बार मौसम की बेरुखी से पैदावार कम हुई है।

बाइट हरजिंदर सिंह


जानिए पहाड़ी क्षेत्र के बुद्धिजीवियों ने क्या कहा
गांव के बुद्धिजीवियों ने बताया कि पहाड़ी क्षेत्र के लोग अदरक की फसल पर ही अपना गुजारा करते थे। पहाड़ी क्षेत्रों मे रहने वाला हर किसान कोयतल अदरक का उत्पादन करता था लेकिन आज के समय में अदरक की खेती पहाड़ी क्षेत्र में कम हो गई है, अगर सरकार इस पर गंभीरता से कोई कार्य करें तो शायद यहां के लोग दोबारा से अदरक की खेती शुरू कर देंगे। Conclusion:उधर प्रधान वैज्ञानिक पौधा रोग कृषि अनुसंधान धोलकुवा के डॉक्टर अखिलेश सिंह ने बताया कि किसानों को अदरक के बीज का चुनाव सही से नहीं कर पाते जिससे उनके बीज खराब होते हैं यदि किसान बीज का चुनाव इस विधि से करेंगे तो बीज नहीं सड़ेगा। साथ ही फसल अच्छी होगी।
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