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हिमाचल ने नहीं बदला ट्रेंड; अग्निपथ-बेरोजगारी की आग में झुलसी जयराम सरकार

हिमाचल में एक तरफ जहां भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर थे, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस की कमान संभाले प्रियंका गांधी. हिमाचल के समर की दिलचस्प बात यही भी थी यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और मोदी ने भी कई रैलियां कीं, मगर राहुल गांधी इस चुनाव में प्रचार से दूर रहे. ईटीवी भारत के रीजनल न्यूज कोआर्डिनेटर गीतेश्वर प्रसाद सिंह की रिपोर्ट

Himachal Pradesh Assembly Election
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Published : Dec 8, 2022, 8:13 PM IST

दिल्ली: अब जबकि हिमाचल में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिल गया है और पार्टी सरकार बनाने पर मंथन कर रही है, फिर भी हाईकमान कुछ सशंकित लग रहा है. उसकी आशंका यूं ही नहीं है. भारतीय जनता पार्टी का ट्रैक-रिकार्ड देखकर वह अत्यधिक सतर्क है. छोटे मगर भौगोलिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य हिमाचल में कांग्रेस के लिए यह जीत किसी संजीवनी से कम नहीं है. इस जीत ने मोदी के एक उस बड़े नारे को विफल कर दिया, जिसमें उन्होंने कांग्रेस-मुक्त भारत बनाने का सपना देखा था.

हिमाचल के नतीजों को समझने से पहले कुछ पूर्व की राजनैतिक घटनाओं पर नजर डाल लेनी चाहिए. खासकर वहां के चुनावी इतिहास पर. हिमाचल प्रदेश भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का गृह राज्य है और यहां 1985 के बाद से कोई सरकार अपना कार्यकाल दोहरा नहीं पाई है. इसका ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि दिल्ली में बैठे राजनेता इसका मिजाज पढ़ने में चूक करते रहे हैं, दूसरे यह भी कि इस राज्य ने हमेशा उपेक्षा का दंश झेला है. इंडस्ट्री की कमी और बेरोजगारी से जूझ रहे इस राज्य को केंद्र से जिस मदद की उम्मीद थी, वह डबल इंजन की सरकार में पूरी नहीं हुई.

Himachal Pradesh Assembly Election
किस साल में किसकी बनी सरकार.

पिछले चुनाव में भाजपा ने 44 सीटें जीती थीं. हालांकि, उसके सबसे बड़े नेता माने जा रहे प्रेम कुमार धूमल खुद हार गए थे. धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर इस समय मोदी के करीबी लोगों में से एक हैं और इस चुनाव में नड्डा के साथ भाजपा की बागडोर संभाले हुए थे. निश्चित रूप से उनका एक बड़ा असर था फिर भी अपने इलाके में भाजपा को नहीं जिता सके. खुद नड्डा के क्षेत्र बिलासपुर में बीजेपी उम्मीदवार महज 276 वोट से चुनाव जीत पाय. पार्टी जब भी इसकी समीक्षा करेगी तो इन बातों को जरूर नजर में रखेगी और दोनों बड़े नेताओं की साख पर असर तो पड़ेगा ही.

इस जीत के साथ ही कांग्रेस के दो नेताओं का कद निश्चित रूप से बढ़ेगा, जिन्होंने इस चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. राज्य के बड़े नेता रहे वीरभद्र सिंह के निधन के बाद प्रतिभा सिंह के प्रति लोगों में सहानुभूति थी, जिसका लाभ कांग्रेस को मिला. साथ ही प्रियंका गांधी की लोकप्रियता भी वहां साफ दिखी. चुनाव प्रचार के दौरान प्रियंका गांधी की रैलियों में उमड़ी भीड़ कांग्रेस की सबसे बड़ी उम्मीद थी. इस बार केंद्रीय नेतृत्व की ओर से प्रियंका गांधी ने ही प्रचार का मोर्चा संभाले रखा.

Himachal Pradesh Assembly Election
37 साल से रिवाज बरकरार.

इस पहाड़ी राज्य को 1952 से ही देखें तो पता चलता है कि अधिकांश समय कांग्रेस ने शासन किया है. 1998 में सबसे रोचक रिजल्ट आया था. भाजपा और कांग्रेस 31-31 सीटों पर जीती थी और यह चुनावी मैच टाई हो गया था. लेकिन कांग्रेस से अलग होकर पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम की बनाई पार्टी ने अपने 5 विधायकों का समर्थन धूमल को देकर हिमाचल में कमल खिला दिया था. ऐसे मौकों पर उसका मैनेजमेंट अक्सर कारगर रहता है और मोदी के शासन में इसमें और सुधार आया है. यही कारण है कि कांग्रेस को अपने जीते हुए प्रत्याशियों पर अधिक नजर रखनी पड़ रही है.

हार के कारणः राज्य में सत्ताधारी दल के विरोध में कहीं न कहीं लहर थी, जिसका परिणाम था कि उसके 8 मंत्री चुनाव हार गए. मगर सवाल था कि इस लहर की दिशा में कौन नाव उतारने में कामयाब होगा. एक साल पहले जिस तरह की तैयारी आम आदमी पार्टी (आप) ने की थी, उससे लग रहा था कि यह चुनाव उसका होगा, मगर सत्येंद्र जैन के जेल जाते ही 'आप' ने हथियार डाल दिए और इस राज्य के लिए कुछ भी प्रयास नहीं किया. इस मौके को कांग्रेस ने भुनाया. हालांकि, कांग्रेस पूरे दमखम से उतरती तो कुछ और सीटें जीत सकती थी, मगर इस पार्टी का अपना एक कल्चर है और चाहकर भी वह उसे बदल नहीं पा रही है.

Himachal Pradesh Assembly Election
2017 विधानसभा चुनाव के नतीजे.

दूसरा प्रमुख कारण वहां रोजगार की भारी कमी और प्रतिभा पलायन है. राज्य सरकार के कर्मचारी और पेंशनर्स पुरानी पेशन योजना (ओपीएस) लागू करने की पुरजोर मांग करते रहे हैं और कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड में लागू के बाद हिमाचल में यह मांग और तेज हो चली थी. चूंकि भाजपा इसके पक्ष में नहीं थी और कांग्रेस ने लागू करने का आश्वासन दिया था, इसलिए एक बड़ा तबका उसके साथ हो लिया. उद्योग धंधे न होने से सेना में वहां के लोग बड़ी संख्या में भर्ती होने जाते हैं. केंद्र की नई अग्निपथ योजना से वे भी नाराज थे. इनके अलावा एक और महत्वपूर्ण बात है कि हिमाचल में ग्रामीण इलाका काफी बड़ा है और शहरी इलाका छोटा. भाजपा शहरी लोगों की पार्टी मानी जाती है, इसलिए भी कांग्रेस को परसेप्शन का लाभ मिला.

सत्ता में आने के बाद कांग्रेस की चुनौतीः सत्ता में आने के बाद कांग्रेस के सामने लाखों अधिक युवाओं को तत्काल रोजगार देने की चुनौती होगी. कांगड़ा, मंडी और सोलन जैसे कुछ इंडस्ट्रियल पैकेट हैं, वहां संसाधन और सुविधाएं देकर उनका विकास करना होगा. केंद्र की तरफ से मिलने वाला जीएसटी क्षतिपूर्ति की साढ़े तीन हजार करोड़ से अधिक की राशि अब नहीं मिलेगी. इसके अलावा हजारों करोड़ के कर्ज से भी राज्य को उबारना किसी भगीरथ प्रयास से कम नहीं होगा. सरकारी कर्मचारियों को उम्मीद है कि एनपीएस से हटाकर नई सरकार जल्द उन्हें ओपीएस से जोड़ेगी. इससे भी राज्य के बजट पर एक बोझ बढ़ेगा. लेकिन फिलहाल तो कांग्रेस के लिए जश्न का समय है. उनके नेताओं के थिरकते कदमों में इस समय समस्याओं की बेड़ियां लगाना शायद उचित नहीं होगा.

ये भी पढ़ें- हिमाचल में बदल गया राज, कांग्रेस के सिर सत्ता का ताज, CM की रेस में प्रतिभा सिंह, सुक्खू और मुकेश अग्निहोत्री

ये भी पढ़ें- HP Result 2022: BJP की लगभग 21 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा, इन 4 सीटों पर नहीं खिला कमल

दिल्ली: अब जबकि हिमाचल में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिल गया है और पार्टी सरकार बनाने पर मंथन कर रही है, फिर भी हाईकमान कुछ सशंकित लग रहा है. उसकी आशंका यूं ही नहीं है. भारतीय जनता पार्टी का ट्रैक-रिकार्ड देखकर वह अत्यधिक सतर्क है. छोटे मगर भौगोलिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य हिमाचल में कांग्रेस के लिए यह जीत किसी संजीवनी से कम नहीं है. इस जीत ने मोदी के एक उस बड़े नारे को विफल कर दिया, जिसमें उन्होंने कांग्रेस-मुक्त भारत बनाने का सपना देखा था.

हिमाचल के नतीजों को समझने से पहले कुछ पूर्व की राजनैतिक घटनाओं पर नजर डाल लेनी चाहिए. खासकर वहां के चुनावी इतिहास पर. हिमाचल प्रदेश भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का गृह राज्य है और यहां 1985 के बाद से कोई सरकार अपना कार्यकाल दोहरा नहीं पाई है. इसका ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि दिल्ली में बैठे राजनेता इसका मिजाज पढ़ने में चूक करते रहे हैं, दूसरे यह भी कि इस राज्य ने हमेशा उपेक्षा का दंश झेला है. इंडस्ट्री की कमी और बेरोजगारी से जूझ रहे इस राज्य को केंद्र से जिस मदद की उम्मीद थी, वह डबल इंजन की सरकार में पूरी नहीं हुई.

Himachal Pradesh Assembly Election
किस साल में किसकी बनी सरकार.

पिछले चुनाव में भाजपा ने 44 सीटें जीती थीं. हालांकि, उसके सबसे बड़े नेता माने जा रहे प्रेम कुमार धूमल खुद हार गए थे. धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर इस समय मोदी के करीबी लोगों में से एक हैं और इस चुनाव में नड्डा के साथ भाजपा की बागडोर संभाले हुए थे. निश्चित रूप से उनका एक बड़ा असर था फिर भी अपने इलाके में भाजपा को नहीं जिता सके. खुद नड्डा के क्षेत्र बिलासपुर में बीजेपी उम्मीदवार महज 276 वोट से चुनाव जीत पाय. पार्टी जब भी इसकी समीक्षा करेगी तो इन बातों को जरूर नजर में रखेगी और दोनों बड़े नेताओं की साख पर असर तो पड़ेगा ही.

इस जीत के साथ ही कांग्रेस के दो नेताओं का कद निश्चित रूप से बढ़ेगा, जिन्होंने इस चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. राज्य के बड़े नेता रहे वीरभद्र सिंह के निधन के बाद प्रतिभा सिंह के प्रति लोगों में सहानुभूति थी, जिसका लाभ कांग्रेस को मिला. साथ ही प्रियंका गांधी की लोकप्रियता भी वहां साफ दिखी. चुनाव प्रचार के दौरान प्रियंका गांधी की रैलियों में उमड़ी भीड़ कांग्रेस की सबसे बड़ी उम्मीद थी. इस बार केंद्रीय नेतृत्व की ओर से प्रियंका गांधी ने ही प्रचार का मोर्चा संभाले रखा.

Himachal Pradesh Assembly Election
37 साल से रिवाज बरकरार.

इस पहाड़ी राज्य को 1952 से ही देखें तो पता चलता है कि अधिकांश समय कांग्रेस ने शासन किया है. 1998 में सबसे रोचक रिजल्ट आया था. भाजपा और कांग्रेस 31-31 सीटों पर जीती थी और यह चुनावी मैच टाई हो गया था. लेकिन कांग्रेस से अलग होकर पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम की बनाई पार्टी ने अपने 5 विधायकों का समर्थन धूमल को देकर हिमाचल में कमल खिला दिया था. ऐसे मौकों पर उसका मैनेजमेंट अक्सर कारगर रहता है और मोदी के शासन में इसमें और सुधार आया है. यही कारण है कि कांग्रेस को अपने जीते हुए प्रत्याशियों पर अधिक नजर रखनी पड़ रही है.

हार के कारणः राज्य में सत्ताधारी दल के विरोध में कहीं न कहीं लहर थी, जिसका परिणाम था कि उसके 8 मंत्री चुनाव हार गए. मगर सवाल था कि इस लहर की दिशा में कौन नाव उतारने में कामयाब होगा. एक साल पहले जिस तरह की तैयारी आम आदमी पार्टी (आप) ने की थी, उससे लग रहा था कि यह चुनाव उसका होगा, मगर सत्येंद्र जैन के जेल जाते ही 'आप' ने हथियार डाल दिए और इस राज्य के लिए कुछ भी प्रयास नहीं किया. इस मौके को कांग्रेस ने भुनाया. हालांकि, कांग्रेस पूरे दमखम से उतरती तो कुछ और सीटें जीत सकती थी, मगर इस पार्टी का अपना एक कल्चर है और चाहकर भी वह उसे बदल नहीं पा रही है.

Himachal Pradesh Assembly Election
2017 विधानसभा चुनाव के नतीजे.

दूसरा प्रमुख कारण वहां रोजगार की भारी कमी और प्रतिभा पलायन है. राज्य सरकार के कर्मचारी और पेंशनर्स पुरानी पेशन योजना (ओपीएस) लागू करने की पुरजोर मांग करते रहे हैं और कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड में लागू के बाद हिमाचल में यह मांग और तेज हो चली थी. चूंकि भाजपा इसके पक्ष में नहीं थी और कांग्रेस ने लागू करने का आश्वासन दिया था, इसलिए एक बड़ा तबका उसके साथ हो लिया. उद्योग धंधे न होने से सेना में वहां के लोग बड़ी संख्या में भर्ती होने जाते हैं. केंद्र की नई अग्निपथ योजना से वे भी नाराज थे. इनके अलावा एक और महत्वपूर्ण बात है कि हिमाचल में ग्रामीण इलाका काफी बड़ा है और शहरी इलाका छोटा. भाजपा शहरी लोगों की पार्टी मानी जाती है, इसलिए भी कांग्रेस को परसेप्शन का लाभ मिला.

सत्ता में आने के बाद कांग्रेस की चुनौतीः सत्ता में आने के बाद कांग्रेस के सामने लाखों अधिक युवाओं को तत्काल रोजगार देने की चुनौती होगी. कांगड़ा, मंडी और सोलन जैसे कुछ इंडस्ट्रियल पैकेट हैं, वहां संसाधन और सुविधाएं देकर उनका विकास करना होगा. केंद्र की तरफ से मिलने वाला जीएसटी क्षतिपूर्ति की साढ़े तीन हजार करोड़ से अधिक की राशि अब नहीं मिलेगी. इसके अलावा हजारों करोड़ के कर्ज से भी राज्य को उबारना किसी भगीरथ प्रयास से कम नहीं होगा. सरकारी कर्मचारियों को उम्मीद है कि एनपीएस से हटाकर नई सरकार जल्द उन्हें ओपीएस से जोड़ेगी. इससे भी राज्य के बजट पर एक बोझ बढ़ेगा. लेकिन फिलहाल तो कांग्रेस के लिए जश्न का समय है. उनके नेताओं के थिरकते कदमों में इस समय समस्याओं की बेड़ियां लगाना शायद उचित नहीं होगा.

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