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इस समय बढ़ सकता है पीला रतुआ रोग का प्रकोप, ऐसे करें फसल की देखभाल - यमुनानगर

जिले में मौसम के बदलाव को देखते गेहूं में पीला रतुआ रोग बढ़ सकता है. जिसके लिए कृषि अधिकारियों ने किसानों को हिदायत दी हैं.

पीला रतुआ रोग की जांच करते अधिकारी
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Published : Mar 23, 2019, 12:07 PM IST

यमुनानगर: जिले में ज्यादातर क्षेत्रों में गेहूं की बुवाई हो गई है. इस समय नमी वाले तराई क्षेत्रों में गेहूं की फसल पीला रतुआ बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है, ऐसे में समय रहते किसानों को इस रोग का प्रबंधन करना चाहिए.कृषि अधिकारियों की माने तो हरियाणा में सबसे ज्यादा पीला रतुआ के केस यमुनानगर में ट्रेस हुए हैं. जिसे देखते हुए अधिकारियों ने किसानों को हिदायत दी है.

क्लिक कर देखें वीडियो

रोग के लक्षण एवं पहचान:

  • इस बीमारी के लक्षण ज्यादातर नमी वाले क्षेत्रों में ज्यादा देखने को मिलते हैं
  • पोपलर और यूकेलिप्टस के आस-पास उगाई गई फसल में ये रोग पहले आता है
  • पीला रतुआ बीमारी में गेहूं की पत्तों पर पीले रंग का पाउडर बनता है
  • जिसे हाथ से छूने पर हाथ पीला हो जाता है
  • पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीले रंग की धारी दिखाई देती है
  • पहले ये रोग 10-15 पौधों पर एक गोल दायरे में शुरु होता है, बाद में पूरे खेत में फैल जाता है
  • तापमान बढ़ने पर पीली धारियां पत्तियों की निचली सतह पर काले रंग में बदल जाती है
    क्लिक कर सुनिए कृषि अधिकारी ने क्या दी हिदायत

पीला रतुआ रोग का जैविक उपचार:

  • एक किग्रा. तम्बाकू की पत्तियों का पाउडर 20 किग्रा. लकड़ी की राख के साथ मिलाकर बीज बुवाई या पौध रोपण से पहले खेत में छिड़काव करें
  • गोमूत्र और नीम का तेल मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर लें और 500 मिली. मिश्रण को प्रति पम्प के हिसाब से फसल में तर-बतर छिड़काव करें
  • गोमूत्र 10 लीटर व नीम की पत्ती दो किलो और लहसुन 250 ग्राम का काढ़ा बनाकर 80-90 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ छिड़काव करें
  • पांच लीटर मट्ठे को मिट्टी के घड़े में भरकर सात दिनों तक मिट्टी में दबा दें, उसके बाद 40 लीटर पानी में एक लीटर मट्ठा मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें

पीला रतुआ रोग का रासायनिक उपचार:

  • रोग के लक्षण दिखाई देते ही 200 मिली. प्रोपीकोनेजोल 25 ई.सी. या पायराक्लोट्ररोबिन प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें
  • रोग के प्रकोप और फैलाव को देखते हुए दूसरा छिड़काव 10-15 दिन के अंतराल में करें

यमुनानगर: जिले में ज्यादातर क्षेत्रों में गेहूं की बुवाई हो गई है. इस समय नमी वाले तराई क्षेत्रों में गेहूं की फसल पीला रतुआ बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है, ऐसे में समय रहते किसानों को इस रोग का प्रबंधन करना चाहिए.कृषि अधिकारियों की माने तो हरियाणा में सबसे ज्यादा पीला रतुआ के केस यमुनानगर में ट्रेस हुए हैं. जिसे देखते हुए अधिकारियों ने किसानों को हिदायत दी है.

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रोग के लक्षण एवं पहचान:

  • इस बीमारी के लक्षण ज्यादातर नमी वाले क्षेत्रों में ज्यादा देखने को मिलते हैं
  • पोपलर और यूकेलिप्टस के आस-पास उगाई गई फसल में ये रोग पहले आता है
  • पीला रतुआ बीमारी में गेहूं की पत्तों पर पीले रंग का पाउडर बनता है
  • जिसे हाथ से छूने पर हाथ पीला हो जाता है
  • पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीले रंग की धारी दिखाई देती है
  • पहले ये रोग 10-15 पौधों पर एक गोल दायरे में शुरु होता है, बाद में पूरे खेत में फैल जाता है
  • तापमान बढ़ने पर पीली धारियां पत्तियों की निचली सतह पर काले रंग में बदल जाती है
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पीला रतुआ रोग का जैविक उपचार:

  • एक किग्रा. तम्बाकू की पत्तियों का पाउडर 20 किग्रा. लकड़ी की राख के साथ मिलाकर बीज बुवाई या पौध रोपण से पहले खेत में छिड़काव करें
  • गोमूत्र और नीम का तेल मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर लें और 500 मिली. मिश्रण को प्रति पम्प के हिसाब से फसल में तर-बतर छिड़काव करें
  • गोमूत्र 10 लीटर व नीम की पत्ती दो किलो और लहसुन 250 ग्राम का काढ़ा बनाकर 80-90 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ छिड़काव करें
  • पांच लीटर मट्ठे को मिट्टी के घड़े में भरकर सात दिनों तक मिट्टी में दबा दें, उसके बाद 40 लीटर पानी में एक लीटर मट्ठा मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें

पीला रतुआ रोग का रासायनिक उपचार:

  • रोग के लक्षण दिखाई देते ही 200 मिली. प्रोपीकोनेजोल 25 ई.सी. या पायराक्लोट्ररोबिन प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें
  • रोग के प्रकोप और फैलाव को देखते हुए दूसरा छिड़काव 10-15 दिन के अंतराल में करें
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एंकर    यमुनानगर इस समय गेहूं में बढ़ सकता है पीला रतुआ रोग का प्रकोप। समय से करें प्रबंधन ।तापमान दिन में बढ़ रहा है ऐसे में समय पीला रतुआ के बढ़ने के आसार बहुत है। हरियाणा में सबसे ज्यादा पीला रतुआ के केस यमुनानगर में ट्रेस हुए हैं।
इसलिए यमुनानगर के कृषि अधिकारी ने किसान की फसल को पीला रतुआ से बचाने के लिए कई हिदायते दी है जिससे किसान अपनी फसल को पीला रतुआ से बचा सकते है।

वीओ   इस समय ज्यादातर क्षेत्रों में गेहूं की बुवाई हो गई है, इस समय नमी वाले तराई क्षेत्रों में गेहूं की फसल पीला रतुआ बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है, ऐसे में समय रहते किसानों को इस रोग का प्रबंधन करना चाहिए।ज्यादातर नमी वाले क्षेत्रों में ज्यादा देखने को मिलते हैं, साथ ही पोपलर व यूकेलिप्टस के आस-पास उगाई गई फसल में ये रोग पहले आती है। पत्तों पर पीला होना ही पीला रतुआ नहीं है पीला रंग होने के कारण फसल में पोषक तत्वों की कमी जमीन में नमक की मात्रा ज्यादा होना व पानी का ठहराव भी हो सकता है। पीला रतुआ बीमारी में गेहूं की पत्तों पर पीले रंग का पाउडर बनता है जिसे हाथ से छूने पर हाथ पीला हो जाता है।

वीओ   कृषि अधिकारी राकेश जांगड़ा ने बताया की जैसे मौसम में बदलाव हो रहा है दिन का तापमान हाई है।ऐसे में पीला रतुआ की संभावना बढ़ जाती है किसान भाई समय पर दवाई का झिड़काव करे।यमुनानगर के कुछ इलाकों में है लेकिन कृषि विभाग किसानों को इसके प्रति जागरूक करने के कार्यक्रम करता रहता है चौपाल व अन्य कार्यक्रम चलते रहते है। अम्बाला करनाल में भी कुछ केस मिले है पहले ये हज़ारो हेक्टेयर में फैल जाता था लेकिन अब ये पूरी तरह कंट्रोल हो जाता है इसके लिए हम लगातार प्रयास करते रहते है।हमारे यहाँ जिले में 90 हज़ार हेक्टेयर गेंहू होता है ।63 /64 के लगभग केस आये है जो ट्रेसबल है और किसान भी अब जागरूक है अब इसपे आसानी से कंट्रोल हो जाता है।


बाइट राकेश जांगड़ा कृषि अधिकारी
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