यमुनानगर: यमुनानगर में छठ महापर्व की तैयारी जोरों पर हैं. शनिवार शाम को अस्ताचल गामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा, इसके बाद रविवार को उदयगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत पूरा होगा. यमुनानगर में बाड़ी माजरा पुल के नजदीक शनिवार शाम और रविवार सुबह सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाएगा.
40-50 हजार श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद
यमुनानगर जिले में तीन जगह छठ पर्व का आयोजन किया जाता है. उनमें सबसे बड़ा आयोजन बाड़ी माजरा पुल के पास किया जाता है. यहां 40 से 50 हजार श्रद्धालु सूर्य को अर्घ्य देने के लिए आते हैं. इसके साथ-साथ चिट्टा मंदिर के पास और हमीदा हेड के पास भी श्रद्धालुओं का तांता लग रहता है.
गश्त में मौजूद रहेंगे सुरक्षाकर्मी
यमुनानगर के बाड़ी माजरा में छठ पर्व पर होने वाली भीड़ को देखते हुए पुलिस कर्मियों की भी तैनाती की गई है. पुलिसकर्मियों ने यहां का जायजा भी लिया है.
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मेयर ने लिया जायजा
यमुनानगर जगाधरी के मेयर मदन चौहान ने छठ की तैयारियों का जायजा लेते हुए कहा कि छठ पूजा के उपलक्ष्य में उन्होंने संबंधित सभी अधिकारियों की मीटिंग भी ली है और आज वह खुद जायजा लेने पहुंचे हैं. किसी तरह की कोई भी गंदगी ना हो इसीलिए यहां सभी घाटों पर सफाई करवाई जा रही है और जहां भी कमी नजर आ रही है, उसको अभी दुरुस्त कर लिया जाएगा. क्योंकि शनिवार शाम से यमुना किनारे लोग काफी बड़ी संख्या में पूजा करने के लिए इकट्ठा होते हैं.
छठी मईया की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम का एक राजा था. उनकी पत्नी का नाम था मालिनी. दोनों की कोई संतान नहीं थी. इस बात से राजा और रानी दोनों की दुखी रहते थे. संतान प्राप्ति के लिए राजा ने महर्षि कश्यप से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया. यह यज्ञ सफल हुआ और रानी गर्भवती हुईं.
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लेकिन रानी को मरा हुआ बेटा पैदा हुआ. इस बात से राजा और रानी दोनों बहुत दुखी हुए और उन्होंने संतान प्राप्ति की आशा छोड़ दी. राजा प्रियव्रत इतने दुखी हुए कि उन्होंने आत्महत्या का मन बना लिया, जैसे ही वो खुद को मारने के लिए आगे बड़े षष्ठी देवी प्रकट हुईं.
षष्ठी देवी ने राजा से कहा कि जो भी व्यक्ति मेरी सच्चे मन से पूजा करता है मैं उन्हें पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं. यदि तुम भी मेरी पूजा करोगे तो तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी. राजा प्रियव्रत ने देवी की बात मानी और कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि के दिन देवी षष्ठी की पूजा की. इस पूजा से देवी खुश हुईं और तब से हर साल इस तिथि को छठ पर्व मनाया जाने लगा.
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