यमुनानगर: " पीला रतुआ " किसानों की फसल को लगने वाले एक ऐसी बीमारी है, जिससे फसल को काफी नुकसान पहुंचता है. हालांकि इन फसलों को लगने वाली इस बीमारी को लेकर कृषि विभाग के अधिकारी गांव-गांव जाकर किसानों को जागरूक भी कर रहे हैं और समय-समय पर दवाइयों के छिड़काव के बारे में भी जानकारी दी जा रही है, ताकि ये ना फैले.
वहीं किसानों का कहना है कि कई बार छिड़काव के बाद भी पीला रतवा बढ़ रहा है. पीला रतुए जिसे "यलो रेस्ट" भी कहा जाता है, प्रदेश में गेहूं की फसल में लगने वाला ये प्रमुख रोग है. इस बार प्रदेश में ये बीमारी ज्यादा बढ़ रही है. इसका प्रकोप दिसंबर के अंत या जनवरी के शुरुआत में होता है.
पीला रतुआ रोग के लक्षण
इससे फसल को बहुत अधिक हानि होती है. रोग के लक्षण, पीले रंग की धारियों के रूप में पत्तियों पर दिखाई देते हैं. इनमें से हल्दी जैसा पीला चूर्ण निकलता है तथा पीला पाउडर जमीन पर भी गिरा हुआ दिखाई देता है.
पीली धारियां मुख्यत पत्तियों पर ही पाई जाती हैं. तापमान बढ़ने पर मार्च के अंत में पत्तियों की पीली धारियां काले रंग में बदल जाती हैं. इसका प्रकोप अधिक ठंड और नमी वाले मौसम में बहुत ही संक्रमण होता है.
यमुनानगर जिले में अभी तक 1086 एकड़ भूमि में ये पीला रतुआ अपना प्रकोप दिखा चुका है. किसान ने बताया कि फसल में पीला रतुआ बहुत ज्यादा है. उनका कहना है कि इसमें हमने 10 दिन पहले भी स्प्रे किया था, लेकिन ये फिर दोबारा से आ गया. मौसम की नमी के कारण यह ज्यादा फैल रहा है. अगर इसकी रोकथाम ना हो तो फसल का काफी नुकसान हो जाता है.
ऐसे करें बाचाव
किसानों को पिले रतुए की जानकारी देते फील्ड में पहुंचे कृषि विभाग के अधिकारी राकेश जांगड़ा ने बताया कि वो समय-समय पर किसानों को जागरूक करते रहते हैं. उन्होंने बताया कि गेहूं की फसल पर इसका प्रभाव ज्यादा पड़ता है. फसल मे अगर यह सीवियर कंडीशन में आ जाए तो 20 - 25 परसेंट तक फसल को नुकसान हो जाता है. शुरुआत में ही किसान को चाहिए कि अगर इस रोग के लक्षण दिखे तो फसल पर दवाई का छिड़काव करें. उन्होंने बताया कि इसकी दवाई के लिए हरियाणा सरकार 50% अनुदान दे रही है.
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