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किसानों पर लाठीचार्ज बना सरकार के गले की फांस, यमुनानगर में भी धरना शुरू - किसानों पर लाठीचार्ज हरियाणा

हरियाणा में इस समय किसान और सरकार आमने सामने हैं. पीपली रैली को लेकर पहले किसानों को अनुमति दी गई और फिर अन्नदाताओं पर पुलिस ने लाठियां भांजी, जिसके बाद पूरे देश में हरियाणा सरकार की फजीहत हुई है. वहीं मंगलवार से पूरे प्रदेश में किसानों के धरने भी शुरू हो गए हैं.

armers are still doing protest against three ordinances on the agriculture sector
किसानों पर लाठीचार्ज बनीं सरकार के लिए गले की फांस
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Published : Sep 15, 2020, 4:13 PM IST

Updated : Sep 15, 2020, 4:19 PM IST

यमुनानगर: किसानों पर लाठीचार्ज होते ही अब पूरे हरियाणा में किसान आंदोलन की आग पहुंच गई. मनोहर सरकार ने किसान नेताओं से बातचीत के लिए तीन सांसदों की कमेटी बनाकर इस मुद्दे को सामान्य करने की कोशिश की, लेकिन सरकार में सहयोगी जेजेपी ने भी सरकार की कार्रवाई को निंदनीय बताया. विपक्ष भी सरकार को घेरने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही. निर्दलीय विधायक बलराज कुंडु ने तो सीएम से गृह मंत्री अनिल विज पर कार्रवाई की मांग कर दी. तीन अध्यादेश का तो पहले से ही किसान विरोध कर रहे थे, लेकिन पुलिसिया कार्रवाई ने किसानों के आंदोलन को और मजबूत कर दिया है और ये मुद्दा अब सरकार के लिए गले की फांस बनता जा रहा है.

और बड़ा होगा आंदोलन

यमुनानगर में मंगलवार को किसानों ने जिला सचिवालय का घेराव किया और राज्य सरकार के साथ ही मोदी सरकार के खिलाफ भी जमकर नारेबाजी की. किसानों का कहना है कि केंद्र सरकार की ओर से जो 3 नए अध्यादेश लागू किए गए हैं, वो बिल्कुल किसान विरोधी हैं इन्हें केंद्र सरकार जल्द वापस ले नहीं तो किसान एक बड़ा आंदोलन करने को मजबूर होंगे. जिसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी.

किसानों ने किया जिला सचिवालय का घेराव

सरकार से तीन मांग

किसान यूनियन के जिला युवा प्रधान का कहना है कि वे 15 से 20 सितंबर तक सांकेतिक धरना देंगे, यदि सरकार ने फिर भी उनकी मांगे नहीं मानी तो उनका प्रदर्शन लगातार जारी रहेगा. उनका कहना है कि उनकी सरकार से तीन मांगें हैं. पहली मांग है कि सरकार एमएसपी गारंटी कानून बनाएं, उनकी दूसरी मांग है कि मंडी के बाहर और मंडी के अंदर टैक्स माफ किया जाए. तीसरी मांग है कि भंडारण की व्यवस्था पहले की तरह ही की जाए ताकि व्यापारी लूट कसोट ना कर सकें.

कोरोना काल में भी डटे रहे किसान

इतिहास गवाह रहा है कि चुनाव में राजनीतिक पार्टियां किसानों से बड़े-बड़े वादे कर देती है, लेकिन सत्ता मिलते ही सरकारों के लिस्ट में सबसे अंतिम स्थान किसानों का ही होता है, फिर भी देश की गिरती अर्थ व्यव्यस्था को किसान ने ही संभाला है. कोरोना के चलते जहां पहली तिमाही में जीडीपी में 23.9 फीसद की नेगेटिव ग्रोथ दर्ज की गई है वहीं इस स्थिति में भी कृषि क्षेत्र में 3.4 प्रतिशत की उत्पादन वृद्धि दर्ज हुई है, फिर भी किसानों की बात सुनने की बजाय सरकारें लाठीचार्ज करती हैं.

पढ़ें- बीजेपी सांसदों के साथ भाकियू नेता चढूनी की वार्ता फेल, कृषि मंत्री से नहीं मिलेंगे

यमुनानगर: किसानों पर लाठीचार्ज होते ही अब पूरे हरियाणा में किसान आंदोलन की आग पहुंच गई. मनोहर सरकार ने किसान नेताओं से बातचीत के लिए तीन सांसदों की कमेटी बनाकर इस मुद्दे को सामान्य करने की कोशिश की, लेकिन सरकार में सहयोगी जेजेपी ने भी सरकार की कार्रवाई को निंदनीय बताया. विपक्ष भी सरकार को घेरने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही. निर्दलीय विधायक बलराज कुंडु ने तो सीएम से गृह मंत्री अनिल विज पर कार्रवाई की मांग कर दी. तीन अध्यादेश का तो पहले से ही किसान विरोध कर रहे थे, लेकिन पुलिसिया कार्रवाई ने किसानों के आंदोलन को और मजबूत कर दिया है और ये मुद्दा अब सरकार के लिए गले की फांस बनता जा रहा है.

और बड़ा होगा आंदोलन

यमुनानगर में मंगलवार को किसानों ने जिला सचिवालय का घेराव किया और राज्य सरकार के साथ ही मोदी सरकार के खिलाफ भी जमकर नारेबाजी की. किसानों का कहना है कि केंद्र सरकार की ओर से जो 3 नए अध्यादेश लागू किए गए हैं, वो बिल्कुल किसान विरोधी हैं इन्हें केंद्र सरकार जल्द वापस ले नहीं तो किसान एक बड़ा आंदोलन करने को मजबूर होंगे. जिसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी.

किसानों ने किया जिला सचिवालय का घेराव

सरकार से तीन मांग

किसान यूनियन के जिला युवा प्रधान का कहना है कि वे 15 से 20 सितंबर तक सांकेतिक धरना देंगे, यदि सरकार ने फिर भी उनकी मांगे नहीं मानी तो उनका प्रदर्शन लगातार जारी रहेगा. उनका कहना है कि उनकी सरकार से तीन मांगें हैं. पहली मांग है कि सरकार एमएसपी गारंटी कानून बनाएं, उनकी दूसरी मांग है कि मंडी के बाहर और मंडी के अंदर टैक्स माफ किया जाए. तीसरी मांग है कि भंडारण की व्यवस्था पहले की तरह ही की जाए ताकि व्यापारी लूट कसोट ना कर सकें.

कोरोना काल में भी डटे रहे किसान

इतिहास गवाह रहा है कि चुनाव में राजनीतिक पार्टियां किसानों से बड़े-बड़े वादे कर देती है, लेकिन सत्ता मिलते ही सरकारों के लिस्ट में सबसे अंतिम स्थान किसानों का ही होता है, फिर भी देश की गिरती अर्थ व्यव्यस्था को किसान ने ही संभाला है. कोरोना के चलते जहां पहली तिमाही में जीडीपी में 23.9 फीसद की नेगेटिव ग्रोथ दर्ज की गई है वहीं इस स्थिति में भी कृषि क्षेत्र में 3.4 प्रतिशत की उत्पादन वृद्धि दर्ज हुई है, फिर भी किसानों की बात सुनने की बजाय सरकारें लाठीचार्ज करती हैं.

पढ़ें- बीजेपी सांसदों के साथ भाकियू नेता चढूनी की वार्ता फेल, कृषि मंत्री से नहीं मिलेंगे

Last Updated : Sep 15, 2020, 4:19 PM IST
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