सोनीपत: ये पुराने रोहतक की उन ग्रामीण सीटों में से है जिन पर 2014 में कांग्रेस को इनेलो से जोरदार टक्कर मिली. राई के अलावा गोहाना और बरोदा में भी मुकाबला कड़ा ही रहा लेकिन जीत हर जगह कांग्रेस की हुई.
राई सीट पर कांग्रेस ने अपने मौजूदा एमएलए जयतीर्थ दहिया को ही टिकट दी थी. जयतीर्थ का यह दूसरा चुनाव था और इस बार भी उनका मुख्य मुकाबला इनेलो के इंद्रजीत दहिया से ही था. 2009 में दोनों में 4666 वोटों का अंतर था, जो 2014 में सिर्फ 3 वोट का रह गया.
जयतीर्थ ने 31.23 प्रतिशत वोट लिए, जो 2009 के 41.12 प्रतिशत वोटों से काफी कम थे. जयतीर्थ के पिता चौधरी रिजकराम यहां से 5 बार (1951, 1962, 1967, 1972, 1977) विधायक रहे. उन्होंने 1983 के सोनीपत लोकसभा उपचुनाव में चौधरी देवीलाल को भी हराया था. वे 1980 में चौधरी भजनलाल के मुकाबले मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी थे.
वहीं इनेलो ने भी अपने 2009 के उम्मीदवार को ही दोबारा चुनाव मैदान में उतारा. इंद्रजीत दहिया ने इस बार कांग्रेस उम्मीदवार को बहुत अच्छी चुनौती दी. लेकिन वे जीत के बेहद करीब आकर भी हार गए. इंद्रजीत ने 2009 में 35.72 प्रतिशत वोट लिए थे जबकि 2014 में उन्हें 31.22 प्रतिशत वोट ही मिले.
2014 के विधानसभा चुनाव में राई सीट पर कांग्रेस और इनेलो दोनों उम्मीदवारों के वोट घटने का बड़ा कारण भाजपा उम्मीदवार कृष्णा गहलावत थी. उद्योगपति परिवार से संबंध रखने वाली कृष्णा गहलावत 1996 में रोहट हलके से विधायक रह चुके हैं. बाद में यह हलका खत्म कर क्षेत्र में खरखोदा बना दिया गया था.
राई सीट पर 2014 में इनका पहला चुनाव था और यहां कृष्णा ने 29.37 प्रतिशत वोट लिए. मोदी लहर की बदौलत ये पार्टी का शानदार प्रदर्शन था क्योंकि 2009 में भाजपा को यहां सिर्फ 3.17 प्रतिशत वोट ही मिले थे. सोनीपत जिले के फरमाना माजरा गांव की कृष्णा गहलावत बंसीलाल सरकार में मंत्री भी रही थी. उनके पति भारतीय सेना में रहे.
उनके बड़े बेटे नरेंद्र की ससुराल राजस्थान के बड़े उद्योगपति और राजनीतिक परिवार मिर्धा परिवार में है. कृष्णा गहलावत के बेटे नरेंद्र और कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा सगे साढू है. कृष्णा गहलावत का ज्यादातर राजनीतिक सफर कांग्रेस और हरियाणा विकास पार्टी के साथ रहा है. वे 2014 में कुछ हफ्ते पहले ही भाजपा में शामिल हुई थी.
राई सीट पर दबदबे की बात करें तो इस सीट पर ज्यादातर विधायक जाट ही बनते रहे हैं. इस बार भी मुकाबला तीन जाट नेताओं में था. एक-दो चुनावों को छोड़कर कांग्रेस और इनेलो ही यहां पहले या दूसरे स्थान पर रहती है. हरियाणा के इतिहास में अब तक की सबसे कम अंतर की हार-जीत इसी सीट पर 3 वोटों से हुई. हरियाणा में अब तक कुल 13 बार 100 से कम वोटों की हार-जीत हुई है.
मुकाबला इतना कांटे का था कि नतीजे देखकर सभी चौंक गए. जयतीर्थ दहिया को 36703 वोट मिले जबकि इनेलो के उम्मीदवार इंद्रजीत दहिया को 36700 मतों से संतोष करना पड़ा था. भाजपा की उम्मीदवार कृष्ण गहलावत को 34523 वोट मिले थे. 2014 के विधानसभा चुनाव में इससे ज्यादा रोमांचक मुकाबला और किसी सीट पर नहीं हुआ था. अब सबको इंतजार है 2019 के विधानसभा चुनाव का जिसमें यहां और ज्यादा कड़े मुकाबले की उम्मीद की जा रही है.