सोनीपत : दिल्ली क्राइम ब्रांच द्वारा नकली दवा के सिंडिकेट का भंडोफोड़ किए जाने के बाद इसके तार हरियाणा से भी जुड़ रहे हैं. सोनीपत के गन्नौर में बादशाही रोड पर फूड सप्लीमेंट की आड़ में कैंसर की नकली दवा बनाई जा रही थी. लगभग 5 साल से चल रही फैक्ट्री के मालिक राम कुमार को दिल्ली की क्राइम ब्रांच से गिरफ्तार कर चुकी है. बताया जा रहा है फूड सप्लीमेंट बनाते हुए आरोपी कैंसर की नकली दवा बेचने वाले गिरोह से जुड़ गया और उनके लिए दवा तैयार करने लगा. फैक्टरी में कभी निरीक्षण ही नहीं हुआ था. (fake drug factory sonipat) (fake medicines gang arrests)
दिल्ली पुलिस की तरफ से गिरोह के सदस्यों को पकड़े जाने के बाद यहां छापा मारा गया. यहां पर केंद्रीय खाद्य औषधि प्रशासन, राज्य खाद्य औषधि प्रशासन, ड्रग विभाग, फूड इंस्पेक्टर और राज्य आयुर्वेदिक अधिकारी की टीम ने छापा मारा था. यहां पर कैल्शियम कार्बोनेट और स्टार्च (मक्की का आटा) के 20 बोरे मिले. इनके दो-दो सैंपल लेकर जांच को भेजे गए हैं. फैक्टरी में मिली मशीनों को सील कर दिया है. बताया गया है कि यहां पर चार साल पहले तक फूड सप्लीमेंट बनाया जाता था. उसके बाद कैंसर की नकली दवा तैयार की जाने लगी.
स्टेट आयुर्वेद अधिकारी डॉ. दिलीप मिश्रा ने कहा है कि आयुर्वेद से जुड़ा लाइसेंस था लेकिन आयुर्वेद से जुड़ा कोई भी उत्पाद नहीं बनाया जा रहा है. फूड से जुड़े लाइसेंस भी उसके पास था लेकिन आयुर्वेद से जुड़ा रिकॉर्ड ना मिलने के कारण नोटिस देकर लाइसेंस को कैंसिल कर दिया गया है. फूड सेफ्टी ऑफिसर आगे की कार्रवाई कर रहे हैं.
सोनीपत के जिला खाद्य सुरक्षा अधिकारी वीरेंद्र सिंह गहलावत ने बताया कि टीम ने शनिवार तो छापा मारा था, फैक्टरी में 20 बोरे में कच्चा माल मिला है उसकी पैकिंग पर स्टार्च व कैल्शियम कार्बोनेट लिखा है. उनके सैंपल लेकर जांच को भेज दिए गए हैं. यह फैक्टरी केंद्रीय अधिकारियों की निगरानी में थी.
मिली जानकारी के अनुसार दिल्ली क्राइम ब्रांच की टीम और ड्रग विभाग के गाजियाबाद, नोएडा व बुलंदशहर के अधिकारियों की टीम ने कैंसर की नकली दवा बनाने वाली फैक्टरी पकड़ी थी. यहां बिना लाइसेंस के दवाओं का स्टॉक और बनाने का काम किया जा रहा था. टीम ने इसके बाद गन्नौर में छापा मारकर बादशाही रोड स्थित आरडीएम बायोटेक कंपनी से मालिक रामकुमार को गिरफ्तार किया था. यहां पर फूड सप्लीमेंट बनाने की फैक्टरी है, उसने यह फैक्टरी वर्ष 2016 में लगाई थी. इसके लिए केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन से लाइसेंस लिया गया था. इतना ही नहीं वर्ष 2020 में उसने जिला आयुर्वेदिक अधिकारी कार्यालय से भी देशी दवा बनाने का लाइसेंस लिया था. इस फैक्टरी में वह फूड सप्लीमेंट जिनोव्हे के नाम से बनाया जाता था. इसको यहां पर प्रोटीन पाउडर के रूप में तैयार किया जाता था, जिससे किसी को शक ना हो. वहीं गाजियाबाद ले जाने के बाद इसको कैंसर की दवा के रूप में पैक कर दिया जाता था. इस फैक्टरी में कभी जिला, प्रदेश व केंद्र की किसी टीम ने जांच नहीं की.
दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने किया था भंडाफोड़- दरअसल दिल्ली पुलिस ने मंगलवार को बताया कि आठ करोड़ रुपये मूल्य के इंटरनेशन ब्रांड की नकली दवाएं जब्त की गईं और इस सिलसिले में दिल्ली-एनसीआर से सात लोगों को गिरफ्तार किया गया है. गिरफ्तारियों के साथ, दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने अंतर्राष्ट्रीय सिंडिकेट का भंडाफोड़ करने का दावा किया है जो नकली जीवन रक्षक दवाओं का निर्माण कर रहा था. एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, हमने भारी मात्रा में खुली दवाएं, पैकेट, पैकेजिंग सामग्री और मशीनरी उपकरण भी जब्त किए हैं.
आरोपियों की पहचान पाबित्रा नारायण प्रधान, शुभम मन्ना, पंकज सिंह बोहरा, अंकित शर्मा उर्फ अंकू उर्फ भज्जी, राम कुमार उर्फ हरबीर, एकांश वर्मा और प्रभात कुमार के रूप में हुई है. अपराध शाखा के डीसीपी रवींद्र यादव ने कहा- आईएससी अपराध शाखा को दिल्ली में महत्वपूर्ण इनपुट मिले थे, जो नकली जीवन रक्षक कैंसर दवाओं के निर्माण-सह आपूर्ति में एक अंतरराष्ट्रीय गिरोह की संलिप्तता के बारे में था. आरोपी लंबे समय से पूरे भारत में सक्रिय थे.
आरोपी कैंसर रोगियों की बीमारी का फायदा उठा रहे थे, उन्हें नकली दवाएं उपलब्ध कराकर झूठी उम्मीदें देते थे, और निर्दोष व्यक्तियों के कीमती जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे थे जो पहले से ही कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से पीड़ित थे. पुलिस को पता चला कि आरोपी प्रधान और शुभम गाजियाबाद से अपना गोदाम चला रहे थे, जहां से देश भर में नकली दवाएं पहुंचाई जाती थीं.
मामले में पहली गिरफ्तारी प्रगति मैदान के बाहरी इलाके से हुई जहां बोहरा दोपहिया वाहन (बाइक) से दवा देने आया था. उसकी निशानदेही पर प्रधान और अन्य आरोपियों को नोएडा से पकड़ा गया. अधिकारी ने कहा- पूछताछ के दौरान, हमें पता चला कि प्रधान ने 2012 में चीन से एमबीबीएस पूरा किया था. एमबीबीएस कोर्स के दौरान, उनके बैच-मेट, रसेल (बांग्लादेश का मूल निवासी) ने सूचित किया कि वह कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली नकली दवाओं के निर्माण के लिए आवश्यक एपीआई (वास्तविक फार्मास्युटिकल सामग्री) प्रदान कर सकता है. उन्होंने उसे आगे बताया कि उपरोक्त दवाओं की भारत और चीन के बाजारों में बहुत भारी मांग है और यह अत्यधिक महंगी हैं. इसके बाद, प्रधान ने अपने चचेरे भाई शुभम मन्ना और अन्य सहयोगियों को शामिल किया और कैंसर के इलाज के लिए नकली दवाओं का निर्माण शुरू कर दिया.
(Agency Input)