सोनीपत: मंगलवार को फैसला हो जाएगा कि बरोदा का दंगल कौन जीतता है. पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपने गढ़ को बचा पाते हैं या फिर मुख्यमंत्री मनोहर लाल बरोदा में कमल खिलाने में सफल होते हैं. मंगलवार को मोहाना के बिट्स कॉलेज में सुबह सात बजे से ही मतगणना शुरू हो जाएगी. इसके लिए 14 टेबल पर 20 राउंड में मतगणना पूरी होगी.
कांग्रेसी विधायक श्रीकृष्ण हुड्डा के निधन के बाद खाली हुई बरोदा विधानसभा में उपचुनाव की घोषणा होते ही कांग्रेस से पहले बीजेपी सक्रिय हो गई थी. दो महीने से ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री मनोहर लाल और उनकी सरकार के सभी मंत्री बरोदा में डेरा डाले रहे.
प्रत्याशियों की घोषणा के बाद सियासी पारा पूरी तरह चरम पर पहुंच गया था. मुख्य मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी इंदुराज नरवाल उर्फ भालू और बीजेपी प्रत्याशी अंतरराष्ट्रीय पहलवान योगेश्वर दत्त के बीच माना जा रहा है. इनेला प्रत्याशी जोगेंद्र सिंह और एलएसपी प्रत्याशी राजकुमार सैनी भी कांग्रेस और बीजेपी के हार-जीत का गणित बिगाड़ सकते हैं.
बता दें कि बरोदा को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गढ़ माना जाता रहा है. कांग्रेस प्रत्याशी श्रीकृष्ण हुड्डा यहां से तीन बार विधानसभा पहुंचे थे. बरोदा से बीजेपी एक बार भी नहीं जीती है, इसलिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इस सीट को जीतने के लिए पूरा जोर लगा रखा है.
बरोदा का चुनावी इतिहास
बता दें कि बरोदा विधानसभा सीट हरियाणा के सोनीपत जिले में आती है. साल 1967 से लेकर 2005 तक बरोदा विधानसभा क्षेत्र आरक्षित रहा है. साल 2009 से ये क्षेत्र सामान्य हो गया है. सामान्य सीट होने पर यहां से कांग्रेस के श्रीकृष्ण हुड्डा लगातार 2009, 2014 और 2019 के विधानसभा क्षेत्रों में विजयी होते रहे हैं. 2019 में बरोदा में कुल 68 प्रतिशत वोट पड़े थे. 2019 में कांग्रेस से श्रीकृष्ण हुड्डा ने बीजेपी के योगेश्वर दत्त को 4840 वोटों के मार्जिन से हराया था.
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बरोदा में अब तक किसने लहराया परचम?
सबसे पहले 1967 विधानसभा आम चुनावों में कांग्रेस के रामधारी यहां से विजयी हुए, जबकि इसके अगले ही साल 1968 के चुनावों में विशाल हरियाणा पार्टी से श्याम चंद जीते. 1972 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी से फिर श्याम चंद बने. देश में इमरजेंसी हटने के बाद साल 1977 के चुनावों में देवी लाल के नेतृत्व में इस सीट से जनता पार्टी के भाले राम, 1982 में लोकदल से फिर भाले राम, 1987 में लोकदल से रिटायर्ड आईएएस अधिकारी किरपा राम पूनिया, इसके बाद 1991 में जनता पार्टी से रमेश कुमार खटक, 1996 में समता पार्टी से फिर रमेश कुमार, 2000 के चुनावों में इनेलो से एक बार फिर रमेश कुमार जबकि 2005 के चुनावों में इनलो से रामफल चिराना विजयी हुए.