सिरसा: बीते दिनों उत्तरभारत में हुई बरसात से मौसम में अचानक बदलाव हो गया. इस दौरान किसानों को काफी नुकसान हुआ है क्योंकि पक्की हुई गेहूं और सरसों की फसल बेमौसम बरसात से काफी प्रभावित हुई है. हरियाणा में भारी बारिश और ओलावृष्टि से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. वहीं, जिला सिरसा में लाखों एकड़ फसल नष्ट हुई थी. जिसके मुआवजे के लिए किसान सरकार से गुहार लगा रहे हैं.
इसी कड़ी में मंगलवार को इनेलो की ओर से सिरसा के डीसी पार्थ गुप्ता को ज्ञापन सौंपकर मुआवजे की मांग की गई. इनेलो विधायक अभय चौटाला के बड़े बेटे और सिरसा जिला परिषद के चेयरमैन कर्ण चौटाला ने डीसी से मुलाकात की. इस दौरान पीड़ित किसानों को उचित मुआवजा देने की मांग की गई है. मीडिया से बातचीत करते हुए कर्ण चौटाला ने बीजेपी-जेजेपी और कांग्रेस पर भी जमकर निशाना साधा है.
जिला परिषद के चेयरमैन कर्ण चौटाला ने कहा कि सिरसा जिला में करीब 65 गांवों में फसल नष्ट हुई है. जिसके मुआवजे की मांग को लेकर आज उन्होंने इनेलो कार्यकर्ताओं सहित डीसी को ज्ञापन सौंपा है. कर्ण चौटाला ने कहा कि सिरसा जिला में 100 फीसदी फसल ख़राब हुई है. जिसका मुआवजा जल्द से जल्द पीड़ित किसानों को मिलना चाहिए. कर्ण चौटाला ने इनेलो की परिवर्तन यात्रा पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इनेलो की परिवर्तन यात्रा को जनसमर्थन मिल रहा है.
कर्ण चौटाला ने सीएम मनोहर लाल पर तंज कसते हुए कहा कि इनेलो की यात्रा के सफल होने के बाद सीएम मनोहर लाल को भी मजबूरन सड़कों पर आना पड़ा है. उन्होंने कहा कि हरियाणा की जनता जल्द ही भाजपा जजपा गठबंधन से पीछा छुड़ाएगी. राहुल गांधी के मामले में कर्ण चौटाला ने कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस ने भी इनेलो के साथ ऐसा ही बर्ताव किया था. उनके दादा ओम प्रकाश चौटाला को कांग्रेस ने एक षड्यंत्र के तहत जेल भेजा था. उन्होंने कहा कि जो काम कांग्रेस ने कुछ साल पहले किया था वही काम आज भाजपा कर रही है. पहले इस तरह का काम कांग्रेस ने शुरू किया था और अब भाजपा ने शुरू किया है.
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कर्ण चौटाला ने सभी राजनीतिक पार्टियों को नसीहत देते हुए कहा कि किसी भी राजनीतिक दल को इस तरह के काम करने चाहिए. भाजपा विपक्ष को कमजोर करने का काम नहीं करे. देश की जनता ने भाजपा को सत्ता में बैठाया है, तो जनता के काम करें न कि विपक्ष को कमजोर करे. भाजपा सरकार को यू टर्न सरकार बताते हुए कहा कि पहले यह सरकार किसानों और सरपंचों से बिना बातचीत किए कानून बनती है. उसके बाद जब सरपंच और किसान कानूनों का विरोध करते है, तो सरकार को अपने कानूनों को या तो वापस लेना पड़ता है या फिर कानून में बदलाव करना पड़ता है.