सिरसा: जिले में जन्मी सविता वधवा ई-रिक्शा (Sirsa Savita E-Rickshaw) चलाकर अपनी दो बेटियों का पेट भरने को मजबूर हैं. ऐसा नहीं है कि सविता के आगे-पीछे कोई नहीं है. कहने को तो सविता का ससुराल भी है और घर भी है. लेकिन ना तो सविता को ससुराल वालों ने अपनाया और ना ही घर वालों ने, लेकिन सलाम है सविता के इस जज्बे को. जो ना तो परिस्थितियों के आगे झुकी और ना ही बुरे समय में हार मानी. यहीं वजह है कि आज सविता आत्मनिर्भर बन चुकी हैं. सविता ने ईटीवी भारत हरियाणा के साथ बातचीत में अपना दर्द साझा किया.
सविता ने कहा कि मां-बाप ने मेरी शादी करवाकर खुद को मुझसे अलग कर लिया. जिसके बाद ससुराल वालों का रवैया भी सविता के लिए ठीक नहीं रहा. हर दिन कोई ना कोई बहाना बनाकर सविता से साथ मारपीट की जाती. इस बात की जानकारी जब सविता ने अपने मायके दी तो वहां से यही जवाब आता कि हम कुछ नहीं कर सकते. अगर तू यहां आई तो हम तुझे ससुराल भेज देंगे. अब सविता के पास कोई रास्ता नहीं बचा था. घर वाले उसे अपनाने से इंकार कर रहे थे और ससुराल में रोजाना होते अत्याचार. इस बीच सविता ने साहसिक फैसला किया. वो अपनी दो बेटियों और एक बेटे को लेकर बहादुरगढ़ चली गई.
करीब 20 साल बहादुरगढ़ रहीं सविता
बहादुरगढ़ में सविता ने लोगों के घर काम किया. लोगों के झूठे बर्तन साफ किए. इसके बाद अपनी बेटियों के नाम से टिफिन सेंटर चलाया. जैसे-तैसे करके सविता ने वहां गुजर बसर किया. लेकिन समय के थपेड़ों की मार एक बार फिर सविता पर आफत बनकर टूटी. कोरोना महामारी के बाद लगे लॉकडाउन की वजह से उसका सारा काम बंद हो गया. ना टिफिन सर्विस चली और घरों में भी काम मिलना बंद हो गया. इसके बाद भी सविता ने हार नहीं मानी. सविता ने करीब 20 साल बाद वापस सिरसा लौटने का फैसला किया.
सविता की मजबूरी से सशक्त बनने की कहानी
अब सिरसा में सविता ई-रिक्शा चालकर अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रही हैं. बता दें कि सविता का साल 2017 में एक्सिडेंट हो गया था. जिसके बाद से सविता पैरालाइज्ड का शिकार हो गईं. इन सब कठिनाइयों के बाद भी ना तो सविता का जज्बा कम हुआ और ना ही हिम्मत. सविता की 2 बेटियां हैं और एक बेटा है. सविता की 1 बेटी 9वीं कक्षा की छात्रा है और दूसरी बेटी ग्रेजुएट है. ईटीवी भारत हरियाणा से बातचीत में सविता ने बताया कि मेरे पास दो बेटियां हैं. मेरी बेटियों के भविष्य के बारे में मेरे अलावा कोई सोचने वाला नहीं है. उन्होंने बताया कि घर में मेरे पापा हैं, भाई हैं, लेकिन मेरे साथ कोई भी नहीं खड़ा. जिसकी वजह से वो रिक्शा चलाकर अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रही हैं.
'भीख मांगने से अच्छा है मेहनत करो'
सविता ने कहा कि मैं बहादुरगढ़ से 20 साल बाद सिरसा आई हूं, लेकिन आज भी यहां हालात नहीं बदले हैं. आज भी सिरसा में लड़कियों को आजादी नहीं है. लड़का चाहे कुछ भी करे, लेकिन लड़की कुछ करे तो वो गलत. उन्होंने बताया कि मैं मेरी बेटियों को बेटे के बराबर समझती हूं और ये सोच हम सभी को बदलनी पड़ेगी. सवारियों के व्यवहार को लेकर जब सविता से पूछा गया तो सविता ने बताया कि लोग बहुत ही अजीब तरीके से उन्हें देखते हैं, लेकिन मुझे फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि मुझे मेरे बच्चों का भविष्य सुधारना है. सविता ने कहा कि भीख मांगने से अच्छा है कि मेहनत करो.
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जब सविता के सहयोगी ई-रिक्शा चालकों से बात की गई तो उन्होंने बताया कि बहुत अच्छा लगता है कि एक महिला ई-रिक्शा चला रही है. अपने बच्चों का पेट भर रही है. उन्होंने बताया कि सविता सिरसा में इकलौती महिला ई-रिक्शा चालक हैं. उन्होंने बताया कि सविता के इस जज्बे से हमें भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है कि परिस्थितियों के आगे कभी हारना नहीं चाहिए, बल्कि लड़ना चाहिए. वहीं सविता ने सरकार से मांग की है कि सरकार द्वारा उसकी बेटियों को पढ़ाने में उसकी मदद की जाए और उन्हें सरकारी नौकरी दी जाए.