सिरसा: नौकरी बहाली की मांग को लेकर पीटीआई शिक्षकों का धरना और अनशन 29वें दिन भी लघु सचिवालय में जारी रहा. पीटीआई स्टेट कमेटी के आह्वान पर सोमवार को प्रदर्शनकारी शिक्षकों ने लघु सचिवालय से रोष मार्च निकाला.
सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए प्रदर्शनकारी शिक्षक बरनाला रोड स्थित कैबिनेट मंत्री रणजीत सिंह के आवास पर पहुंचे. यहां भी सरकार पर बेवजह नौकरी से हटाए जाने के आरोप लगाते हुए नारेबाजी की. इसके बाद कैबिनेट मंत्री ने आकर प्रदर्शनकारी शिक्षकों को शांत करवाया और उनके समक्ष सरकार का पक्ष रखा.
कैबिनेट मंत्री ने उन्हें बताया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर सरकार ने कार्रवाई की है लेकिन उनके प्रति सरकार का रवैया सकारात्मक है. मुख्यमंत्री खट्टर ने उनकी पैरवी के लिए स्पेशल कमेटी का गठन किया है. कमेटी सभी संभावनाओं पर विचार कर रही है. शीघ्र ही उनकी मांगों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार कर उचित कदम उठाया जाएगा. इसके बाद प्रदर्शनकारियों ने कैबिनेट मंत्री रणजीत सिंह को मांगों से संबंधित ज्ञापन सौंपा.
प्रदर्शनकारी पीटीआई शिक्षक सत्यपाल सिंह ने बताया कि राज्य कमेटी के आह्वान पर प्रदेशभर के विधायकों को ज्ञापन देने का कार्य किया गया है. इसी कड़ी में उन्होंने सिरसा में कैबिनेट मंत्री रणजीत सिंह चौटाला को मांग पत्र सौंपा है. उन्होंने सहानुभूति पूर्वक विचार कर उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया है.
क्या है पीटीआई शिक्षकों का मामला?
बता दें कि, भूपेंद्र हुड्डा की सरकार में 1983 पीटीआई अध्यापकों की भर्ती की गई थी. जो विद्यार्थीे भर्ती परीक्षा में फेल हो गए थे. उन्होंने भर्ती में अनियमतिता का आरोप लगाते हुए इसके खिलाफ पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट में याचिका दायर की. याचिका में कहा गया था कि सैकड़ों चयनित उम्मीदवारों का शैक्षिक रिकॉर्ड बेहद खराब है.
आरोप में ये भी कहा गया था कि 90 फीसदी मेधावी उम्मीदवार मौखिक परीक्षा में असफल रहे. उन्हें 30 में से 10 नंबर भी नहीं आए. इसी के साथ ये भी आरोप लगा था कि इंटरव्यू के लिए तय किए गए 25 अंक को बदलकर 30 कर दिया गया.
इन सबके मद्देनजर 30 सितंबर 2013 को पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट ने पीटीआई भर्ती को रद्द कर दिया था. इसके खिलाफ चयनित पीटीआई शिक्षकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए आठ अप्रैल को अपना फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि साल 2010 में पीटीआई भर्ती में नियमों का उल्लंघन किया गया था. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने हाइकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा.
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