सिरसा: कहते हैं गरीब का कोई ठिकाना नहीं होता. पेट की आग बुझ जाए जहां, वहीं आशियाना होता है. ये दुख प्रवासी मजदूरों से बेहतर शायद ही कोई समझ सकता है. लॉकडाउन के बाद से प्रवासी मजदूर रोजगार की तलाश में भटकने को मजबूर हैं. हरियाणा के सिरसा जिले में रह रहे करीब 110 प्रवासी मजदूर बिहार से आए हैं. वो बिहार जहां अभी चुनाव है. जहां दावा है कि सुशासन की बयार है.
चुनावी मौसम में एक बार फिर विकास के दावे हैं और रोजगार के सपने. लेकिन इन मजदूरों के लिए शायद अभी तक बिहार की सरकार के दावों और वादों में कोई जगह नहीं है.
परेशानियों से जूझ रहे मजदूर
लॉकडाउन लगा तो प्रवासी मजदूर अपने-अपने घर चल पड़े, लेकिन पेट की आग घर में बैठने से नहीं बुझती. दो जून की रोटी को मोहताज हुए तो ये प्रवासी मजदूर फिर निकल पड़े पराये प्रदेश. अनलॉक में जब से छूट मिली है तब से देश में लगभग सभी उद्योग और कारोबार खुल गए हैं. मजदूर भी वापस अपने घरों और राज्यों से अपने कार्यस्थल पर आने लगे हैं, लेकिन अभी भी उनपर रोजगार का खतरा मंडरा रहा है और रोजगार की वजह से ही ये मजदूर हजारों रुपए का किराया चुकाकर आ रहे हैं.
बिहार से आए मजदूरों ने बताया कि हम एक लाख 10 हजार रुपये देकर निजी बस करके यूपी और बिहार से सिरसा रोजगार के लिए आए हैं. ताकि हम अपने घर का गुजारा कर सके. यूपी सरकार और बिहार सरकार से अपील करते हुए मजदूरों ने कहा कि अगर सरकार कुछ करे तो हम लोग अपने घरों से हजारों किलोमीटर की दूरी तय करके काम करने दसरे प्रदेश में ना आना पड़े.
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आपने सुना इन मजदूरों का दर्द. रोजगार की तलाश में इधर-उधर भटकते ये मजदूर दो जून की रोटी के लिए मशक्कत कर रहे हैं. किसी भी राज्य की सरकार हो. ना तो इनके लिए घोषणापत्र में कोई जगह देखने को मिलती है और ना ही नेताओं के भाषणों में. देश की आर्थिक स्थिति के सतंभ माने जाने वाले ये मजदूर आज भी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं.