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मजदूरों के पलायन से धान की खेती पर पड़ा बुरा असर, किसानों ने मजबूरी में चुनी वैकल्पिक फसल!

कृषि मजदूरों की कमीं की वजह से हरियाणा में किसानों को धान की बिजाई के लिए काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, किसानों का कहना है कि मजदूरी इतनी बढ़ गई है कि मजबूरी में नरमा और ग्वार जैसी फसलें बोने को विवश हो गए हैं.

labour migration affects paddy cultivation in haryana
मजदूरों के पलायन से धान की खेती पर पड़ा बुरा असर
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Published : Jul 2, 2020, 5:54 PM IST

सिरसा: हरियाणा के किसानों को धान की बिजाई के सीजन में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. इन किसानों की इस चिंता की मुख्य वजह है लॉकडाउन के दौरान हुए कृषि मजदूरों का पलायन. लाखों की संख्या में बिहार और उत्तरप्रदेश के मजदूर गृह क्षेत्र चले गए हैं.

बिहार एवं उत्तरप्रदेश से आने वाले मजदूर धान की रोपाई में माहिर माने जाते हैं, लेकिन लॉकडाऊन के दौरान ही भारी संख्या में मजदूरों का पलायन हो चुका है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हरियाणा के करीब 595 शेल्टर होम में 17 हजार प्रवासी मजदूरों को ठहराया हुआ है, लेकिन वो खेतों से काफी दूर हैं, ऐसे में अब किसानों को अपनी खेती बर्बाद होने की चिंता सताने लगी है.

मजदूरों के पलायन से धान की खेती पर पड़ा बुरा असर, देखिए रिपोर्ट

मजदूरों का टोटा, रोपाई-बिजाई हुई महंगी

अगर हरियाणा के सिरसा की बात करें तो यह जिला भी धान की खेती में बड़ा योगदान देता रहा है. पिछले साल करीब 1 लाख हेक्टेयर में धान की खेती की गई थी, लेकिन इस बार मजदूरों की कमी यहां के किसानों को भी खलने लगी है और वो उन मजदूरों से महंगी मजदूरी पर धान की रोपाई करवा रहे हैं, जो इस काम में निपुण नहीं है. उनका कहना है कि यूपी और बिहार के मजदूरों से 4 से 5 हजार रुपये में रोपाई हो जाती थी, लेकिन इस बार दोगुनी मजदूरी लग रही है.

धान की रोपाई के रेट में भी उछाल आने लगी हैं. पिछली बार प्रति एकड़ धान की रोपाई का दाम 3700 से 3900 था. अब यह रेट पांच हजार रुपए तक पहुंच गए हैं. यहां करीब 15 मई से धान की पनीरी तैयार करने का सिलसिला शुरू होता है. 15 जून से रोपाई का काम शुरू हो जाता है. क्योंकि अब राज्य में प्रवासी मजदूरों की घर वापसी हो गयी है, तो ऐसे में इन मजदूरों की घर वापसी के बाद दोनों ही राज्य में बड़ी संख्या में धान का रकबा कम हो सकता है.

वैकल्पिक खेती के लिए मजबूर हुए किसान

दोगुनी मजदूरी होने से किसानों को काफी नुकसान हो रहा है. किसानों का कहना है कि धान की रोपाई में यूपी और बिहार के मजदूर ही कुशल और निपुण होते हैं. उनके लगाए हुए धान की फसल अच्छे से खेतों में लगते है, लेकिन इस बार उन्हें यूपी और बिहार के मजदूरों की कमी खल रही है. स्थानीय ग्रामीण मजदूरों से ही धान की रोपाई करवानी पड़ रही है, लेकिन डर है कि इन अकुशल मजदूरों के लगाए बीजों से फसल तैयार होगी भी या नहीं.

सिरसा में 40% धान की बिजाई में कमी

वहीं सिरसा के कृषि अधिकारी का कहना है कि पिछली बार सिरसा में करीब 1 लाख हेक्टेयर में धान की बिजाई हुई थी, लेकिन इस बार 40% ही हो पाई है. उन्होंने कहा कि सिरसा में बारिश और मजदूर नहीं होने के कारण धान की बिजाई अभी तक पूरी तरह से नहीं हो पाई है. वहीं उन्होंने कहा कि सरकार की मेरा पानी मेरी विरासत योजना के तहत सिरसा में करीब 9200 किसानों ने धान की फसल नहीं लगाने के लिए रजिस्ट्रेशन किया है. जिससे करीब बारह हजार हेक्टेयर भूमि पर धान नहीं लगाया जाएगा. इस बार धान की बजाय किसान वैकल्पिक फसल के रूप में नरमा और ग्वार जैसी फसलें बोने को विवश हो गए हैं.

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सिरसा कृषि विभाग की तरफ से जारी आंकड़े.

देखिए वीडियो- गोहाना पुलिस मर्डर: वारदात के वक्त गाड़ी चला रहा था आरोपी संदीप

सिरसा: हरियाणा के किसानों को धान की बिजाई के सीजन में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. इन किसानों की इस चिंता की मुख्य वजह है लॉकडाउन के दौरान हुए कृषि मजदूरों का पलायन. लाखों की संख्या में बिहार और उत्तरप्रदेश के मजदूर गृह क्षेत्र चले गए हैं.

बिहार एवं उत्तरप्रदेश से आने वाले मजदूर धान की रोपाई में माहिर माने जाते हैं, लेकिन लॉकडाऊन के दौरान ही भारी संख्या में मजदूरों का पलायन हो चुका है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हरियाणा के करीब 595 शेल्टर होम में 17 हजार प्रवासी मजदूरों को ठहराया हुआ है, लेकिन वो खेतों से काफी दूर हैं, ऐसे में अब किसानों को अपनी खेती बर्बाद होने की चिंता सताने लगी है.

मजदूरों के पलायन से धान की खेती पर पड़ा बुरा असर, देखिए रिपोर्ट

मजदूरों का टोटा, रोपाई-बिजाई हुई महंगी

अगर हरियाणा के सिरसा की बात करें तो यह जिला भी धान की खेती में बड़ा योगदान देता रहा है. पिछले साल करीब 1 लाख हेक्टेयर में धान की खेती की गई थी, लेकिन इस बार मजदूरों की कमी यहां के किसानों को भी खलने लगी है और वो उन मजदूरों से महंगी मजदूरी पर धान की रोपाई करवा रहे हैं, जो इस काम में निपुण नहीं है. उनका कहना है कि यूपी और बिहार के मजदूरों से 4 से 5 हजार रुपये में रोपाई हो जाती थी, लेकिन इस बार दोगुनी मजदूरी लग रही है.

धान की रोपाई के रेट में भी उछाल आने लगी हैं. पिछली बार प्रति एकड़ धान की रोपाई का दाम 3700 से 3900 था. अब यह रेट पांच हजार रुपए तक पहुंच गए हैं. यहां करीब 15 मई से धान की पनीरी तैयार करने का सिलसिला शुरू होता है. 15 जून से रोपाई का काम शुरू हो जाता है. क्योंकि अब राज्य में प्रवासी मजदूरों की घर वापसी हो गयी है, तो ऐसे में इन मजदूरों की घर वापसी के बाद दोनों ही राज्य में बड़ी संख्या में धान का रकबा कम हो सकता है.

वैकल्पिक खेती के लिए मजबूर हुए किसान

दोगुनी मजदूरी होने से किसानों को काफी नुकसान हो रहा है. किसानों का कहना है कि धान की रोपाई में यूपी और बिहार के मजदूर ही कुशल और निपुण होते हैं. उनके लगाए हुए धान की फसल अच्छे से खेतों में लगते है, लेकिन इस बार उन्हें यूपी और बिहार के मजदूरों की कमी खल रही है. स्थानीय ग्रामीण मजदूरों से ही धान की रोपाई करवानी पड़ रही है, लेकिन डर है कि इन अकुशल मजदूरों के लगाए बीजों से फसल तैयार होगी भी या नहीं.

सिरसा में 40% धान की बिजाई में कमी

वहीं सिरसा के कृषि अधिकारी का कहना है कि पिछली बार सिरसा में करीब 1 लाख हेक्टेयर में धान की बिजाई हुई थी, लेकिन इस बार 40% ही हो पाई है. उन्होंने कहा कि सिरसा में बारिश और मजदूर नहीं होने के कारण धान की बिजाई अभी तक पूरी तरह से नहीं हो पाई है. वहीं उन्होंने कहा कि सरकार की मेरा पानी मेरी विरासत योजना के तहत सिरसा में करीब 9200 किसानों ने धान की फसल नहीं लगाने के लिए रजिस्ट्रेशन किया है. जिससे करीब बारह हजार हेक्टेयर भूमि पर धान नहीं लगाया जाएगा. इस बार धान की बजाय किसान वैकल्पिक फसल के रूप में नरमा और ग्वार जैसी फसलें बोने को विवश हो गए हैं.

labour migration affects paddy cultivation in haryana
सिरसा कृषि विभाग की तरफ से जारी आंकड़े.

देखिए वीडियो- गोहाना पुलिस मर्डर: वारदात के वक्त गाड़ी चला रहा था आरोपी संदीप

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