सिरसा: डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला सिरसा दौरे पर पहुंचे. जहां उन्होंने जेजेपी कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की. इसके बाद मीडिया से बातचीत के दौरान डिप्टी सीएम ने एसवाईएल मामले पर प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि सरकरा को इस मामले पर सभी पार्टियों की बैठक बुलानी चाहिए.
दुष्यंत चौटाला ने कहा कि इस मामले में हरियाणा और पंजाब सरकार के बीच पिछले दिनों बैठक भी हुई थी, जिसमें उन्होंने सीएम मनोहर लाल से भी गुजारिश की थी कि सरकार के अलावा हरियाणा की दूसरी पार्टियों के नेताओं के साथ भी सर्वदलीय बैठक आने वाले विधानसभा सत्र के दौरान बुलाई जाए,ताकि हरियाणा एसवाईएल को लेकर अपनी रणनीति बना सके.
'सुप्रीम कोर्ट पानी के वितरण पर कदम उठाए'
इसके साथ ही उन्होंने पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह पर हमला बोलते हुए कहा कि हरियाणा को पानी देना उनका अधिकार नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने भी हरियाणा के पक्ष में अपना फैसला सुनाया है. डिप्टी सीएम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को पानी के वितरण पर कदम उठाना चाहिए और एसवाईएल नहर का निर्माण कार्य पूरा कराना चाहिए.
क्या है पूरा विवाद?
यह पूरा विवाद साल 1966 में हरियाणा राज्य के बनने से शुरू हुआ था. उस वक्त हरियाणा के सीएम पंडित भगवत दयाल शर्मा थे और पंजाब के सीएम ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफिर नए नए गद्दी पर बैठे थे. पंजाब और हरियाणा के बीच जल बंटवारे को लेकर सतलुज-यमुना लिंक नहर परियोजना के अंतर्गत 214 किलोमीटर लंबा जल मार्ग तैयार करने का प्रस्ताव था. इसके तहत पंजाब से सतलुज को हरियाणा में यमुना नदी से जोड़ा जाना है.
इसका 122 किलोमीटर लंबा हिस्सा पंजाब में होगा तो शेष 92 किलोमीटर हरियाणा में. हरियाणा समान वितरण के सिद्धांत मुताबिक कुल 7.2 मिलियन एकड़ फीट पानी में से 4.2 मिलियन एकड़ फीट हिस्से पर दावा करता रहा है लेकिन पंजाब सरकार इसके लिए राजी नहीं है. हरियाणा ने इसके बाद केंद्र का दरवाजा खटखटाया और साल 1976 में केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी की जिसके तहत हरियाणा को 3.5 मिलियन एकड़ फीट पानी का आवंटन किया गया.
क्या है नहर की अहमियत?
इस नहर के निर्माण से हरियाणा के दक्षिणी हिस्से की बंजर जमीन को सींचा जा सकेगा. हरियाणा ने नहर के अपने हिस्से का निर्माण 1980 में करीब 250 करोड़ रुपये खर्च कर पूरा कर लिया था. पंजाब में नहर के निर्माण पर आने वाले खर्च का कुछ हिस्सा हरियाणा को देना था. हरियाणा ने 1976 में ही एक करोड़ रुपये की पहली किश्त पंजाब सरकार को दी थी लेकिन पंजाब ने नहर बनाने की दिशा में कोई काम नहीं किया. विवाद गहराया तो दोनों राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं दायर की.