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बदल रहा है युवाओं में नशा करने का तरीका, 12 से 18 साल की आयु के युवा हो रहे शिकार

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Published : Feb 7, 2020, 7:12 AM IST

ज्यादातर मरीजों का कहना है कि उन्होंने शौकिया तौर पर नशे का सेवन करना शुरू किया. कब ये जानलेवा हो गया इसका पता ही नहीं चला. कुछ मरीजों ने नशा करने के लिए घर का सामान तक बेच दिया. ज्यादातर युवा सही जानकारी ना होने और गलत संगत की वजह से नशे का शिकार हो रहे हैं.

Drug addiction in Sirsa
Drug addiction in Sirsa

सिरसा: हरियाणा का सिरसा जिला कॉटन, गेहूं और किन्नू की खेती के लिए जाना जाता है. प्रदेश की सियासत में भी ये जिला अलग ही पहचान रखता है, लेकिन ये पहचान अब बदलती जा रही है. अब सिरसा खेती या सियासत के लिए मशहूर नहीं, बल्कि नशे के लिए बदनाम हो चुका है.

इन नशों का हो रहा है इस्तेमाल
नशे की तस्करी शहर के नौजवानों के भविष्य को अंधकार में धकेल रही है. दशकों पहले अफीम, चूरापोस्त, गांजा से शुरू होने वाले नशे के कारोबार में अब चिट्टा यानी हेराइन, स्मैक, नशीली दवाइयां-इंजेक्शन शामिल हो गए हैं. डॉक्टर्स के मुताबिक 12 से 18 साल के युवा नशे की चपेट में ज्यादा आ रहे हैं.

वीडियो पर क्लिक कर देखें नशे पर स्पेशल रिपोर्ट

नशे के लिए घर का सामान बेच रहे युवा
ज्यादातर मरीजों का कहना है कि उन्होंने शौकिया तौर पर नशे का सेवन करना शुरू किया. कब ये जानलेवा हो गया इसका पता ही नहीं चला. कुछ मरीजों ने नशा करने के लिए घर का सामान तक बेच दिया. ज्यादातर युवा सही जानकारी ना होने और गलत संगत की वजह से नशे का शिकार हो रहे हैं.

बदल गया है नशे का चलन
अब यहां के लोगों में वाहनों के टॉयर, ट्यूब और पैट्रोल सूंघकर नशे का चलन भी बढ़ गया है. हालात ये हैं कि सिरसा नशे के मामले हरियाणा के सभी जिलों से सबसे ऊपर है. नागरिक अस्पताल के मनोचिकित्सक ने युवाओं के नशे में फंसने के कई कारण बताएं हैं.

ये भी पढ़ें- हरियाणा में विदेशी फैला रहे हैं नशे का जाल, युगांडा, नाइजीरियन और बंगलादेशियों की संख्या ज्यादा

हैरानी की बात ये है कि नशा करने वालों में अब लड़कियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. डॉक्टर्स के मुताबिक नशा लड़कियों को लड़कों के मुकाबले ज्यादा तेजी से नुकसान पहुंचाता है. 12 से 18 साल के युवा नशे की लत में ज्यादा फंस रहे हैं. जो बेहद चिंताजनक हैं.

सिरसा: हरियाणा का सिरसा जिला कॉटन, गेहूं और किन्नू की खेती के लिए जाना जाता है. प्रदेश की सियासत में भी ये जिला अलग ही पहचान रखता है, लेकिन ये पहचान अब बदलती जा रही है. अब सिरसा खेती या सियासत के लिए मशहूर नहीं, बल्कि नशे के लिए बदनाम हो चुका है.

इन नशों का हो रहा है इस्तेमाल
नशे की तस्करी शहर के नौजवानों के भविष्य को अंधकार में धकेल रही है. दशकों पहले अफीम, चूरापोस्त, गांजा से शुरू होने वाले नशे के कारोबार में अब चिट्टा यानी हेराइन, स्मैक, नशीली दवाइयां-इंजेक्शन शामिल हो गए हैं. डॉक्टर्स के मुताबिक 12 से 18 साल के युवा नशे की चपेट में ज्यादा आ रहे हैं.

वीडियो पर क्लिक कर देखें नशे पर स्पेशल रिपोर्ट

नशे के लिए घर का सामान बेच रहे युवा
ज्यादातर मरीजों का कहना है कि उन्होंने शौकिया तौर पर नशे का सेवन करना शुरू किया. कब ये जानलेवा हो गया इसका पता ही नहीं चला. कुछ मरीजों ने नशा करने के लिए घर का सामान तक बेच दिया. ज्यादातर युवा सही जानकारी ना होने और गलत संगत की वजह से नशे का शिकार हो रहे हैं.

बदल गया है नशे का चलन
अब यहां के लोगों में वाहनों के टॉयर, ट्यूब और पैट्रोल सूंघकर नशे का चलन भी बढ़ गया है. हालात ये हैं कि सिरसा नशे के मामले हरियाणा के सभी जिलों से सबसे ऊपर है. नागरिक अस्पताल के मनोचिकित्सक ने युवाओं के नशे में फंसने के कई कारण बताएं हैं.

ये भी पढ़ें- हरियाणा में विदेशी फैला रहे हैं नशे का जाल, युगांडा, नाइजीरियन और बंगलादेशियों की संख्या ज्यादा

हैरानी की बात ये है कि नशा करने वालों में अब लड़कियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. डॉक्टर्स के मुताबिक नशा लड़कियों को लड़कों के मुकाबले ज्यादा तेजी से नुकसान पहुंचाता है. 12 से 18 साल के युवा नशे की लत में ज्यादा फंस रहे हैं. जो बेहद चिंताजनक हैं.

Intro:एंकर - हरियाणा का सिरसा जिला जो राजस्थान और पंजाब की सीमा से लगता हुआ है। जिसका इतिहास बहुत पुराना है और यह एक प्राचीन नगर है। जो कृषि में कॉटन, गेहूं व किन्नू की खेती में अव्वल रहा है तो वहीं सामाजिक कार्य गौसेवा, रक्तदान, देहदान व नेत्रदान में भी पूरे देश में इसकी अलग पहचान है। जिसका सियासत में भी एक अलग मुकाम है। लेकिन यह ऐतिहासिक नगर अब नशे की चंगुल में बुरी तरह से फंस गया है। आज इस जिला में नशीले पदार्थों की तस्करी नौजवानों के भविष्य को अंधकार में धकेल रहा है। कई दशकों पहले अफीम, चूरापोस्त, गांजा से शुरू होने वाले नशे के कारोबार में अब चिट्टा यानी हेराइन, स्मैक, नशीली दवाइयां-इंजैक्शन इसमें जुड़ गए हैं। वहीं अब यहां के लोगों में वाहनों की टॉयर व ट्यूब सूंघना, पैट्रोल सुंघकर नशे का चलन भी बढ़ गया है। इसके नशे में फंसने के सबसे बड़ा उदाहरण है कि आज सिरसा में नशे के मामले हरियाणा के सभी जिलों से सबसे ऊपर है। वहीं नागरिक अस्पताल के मनोचिकित्सक ने इस जिले के युवाओं के तेज़ी से नशे में फंसने के कई कारण बताएं है। जिसकी वजह से यहां के युवक इलाज के बाद भी नशे की लत में दोबारा पड़ जाते हैं। और नशे की इस मार से महिलाएं भी बच नहीं पाई है।Body:

वीओ - सिरसा के नागरिक अस्पताल के मनोचिकित्सक पंकज शर्मा ने बताया कि उन्होंने सिरसा में नशा करने वालो को तीन भागों में रखा है जिसमे 12 से 18 साल , 18 से 25 साल और तीसरा 25 से 40 साल के लोग हैं। उन्होंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति 40 वर्ष की आयु तक नशा नही करता तो उसके नशे की लत में फंसने की उम्मीद कम होती है। लेकिन 12 से 18 वर्ष के युवक है नशे की लत में सबसे ज्यादा फंसते जा रहे हैं। उनका कहना है कि इस उम्र में बच्चों में किसी चीज को लेकर सबसे ज्यादा उत्सुकता होती है और उस उत्सुकता के कारण वो ऐसे कुछ गलत चीजों को ट्राय करता है और उसका आदि हो जाता है। वहीं उन्होंने कहा कि जो दूसरा 18 से 25 साल वाला ग्रुप है , वह पहली बार अपने माता पिता से जॉब , होस्टल , स्टडी के चक्कर मे बाहर जाता है। और पहली बार उसके हाथ में पैसे होते हैं जिसके सही इस्तेमाल के बारे में वो समझ नही पाता और आसपास के लोगों के प्रभाव में आकर वो इस तरह के नशे की ओर चला जाता है। उन्होंने बताया कि तीसरा जो 25 से 40 साल के लोगों का ग्रुप है , उसमें लोग अपनी शादी शुदा जिंदगी में एंट्री कर चुका होता है , उसकी जॉब चल रही होती है , उसके साथ उसके बच्चों की जिम्मेदारी उसके ऊपर होती है। जिसमे व्यक्ति सामाजिक, आर्थिक , पारिवारिक जैसे कई तरह के तनाव होता मेहोता है जिसे दूर करने के लिए वो नशा का सहारा लेता है।

विओ - उन्होंने कहा कि हेरोइन के मरीजों के ट्रीटमेंट में कई तरह की दिक्कतें सामने आती हैं। क्योंकि हेरोइन व्यक्ति के सभी अंगों पर असर करता है और जबतक कोई उसे छोड़ने की सोचता है तब तक हेरोइन उस व्यक्ति के शरीर को बहुत प्रभावित कर चुका होता है। उन्होंने कहा कि लोग के इंजेक्शन से नशा लेने की वजह से उन्हें हेपेटाइटिस बी-सी, एचआईवी जैसी खतरनाक बीमारी होने के चांस बहुत ज़्यादा हो जाती है , जिसके लिए उन्हें 20 से 25 दिन तक एडमिट कर के उनका ट्रीटमेंट करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि इसके साथ हम मरीज के पेरेंट्स और रिश्तेदारों को भी समझाते हैं कि इस तरह के मरीजों के साथ आपको किस तरह का बर्ताव करना है। उन्होंने कहा कि इन सब के बाबजूद भी सक्सेस रेट बहुत कम होती है क्योंकि इस तरह के मरीज नशे की लत में इस कदर चले जाते हैं कि वह इलाज के बाद भी इसमे दोबारा चले जाते हैं। उन्होंने कहा कि कई बार समाज में उसे तिरस्कार का सामना करना पड़ता है उसके चक्कर मे भी वह इसकी तरफ वापस चले जाते हैं।


वीओ - उन्होंने कहा कि जब तक मरीज और उसके रिश्तेदार मानसिक रूप से नशे के खिलाफ नही जाते तब तक लोगों के इसमे बार बार वापस लौटने के चांस होते हैं। इसके साथ ही एक नशे के मरीज साथ सामाजिक समस्या हो जाती है जैसे उसकी नौकरी छूट जाती है , शादीशुदा जिंदगी में दिक्कतें आ जाती है और उसपर लीगल केस भी हो जाते हैं जिसकी वजह से वह वापस नशे की तरफ़ चले जाते हैं। उन्होंने कहा कि इन सभी फैक्ट्स से सिर्फ स्वास्थ्य विभाग डील नही कर सकते इसमें समाज के सभी भागों को सहायता करनी चाहिए । उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश यही होनी चाहिए कि बच्चों को इसके प्रभाव में आने से पहले ही रोका जाए और लोगों को इसके लिए अवेयर किया जाए। उन्होंने कहा कि महिलाऐं भी इस नशे की चंगुल में फंतसी जा रहीं हैं। जिसमें ज्यादातर वो महिलाएँ हैं जो ऑर्केस्ट्रा या व्यूटी पार्लर में काम करती हैं उनमें इस तरह के केस सामने आ रहे हैं । ये बहुत ही खतरनाक स्थिति है क्योंकि महिलाओं का शरीर किसी भी तरह से इस प्रकार के नशे को बर्दाश्त नहीं कर सकता है।

विओ - वहीं नागरिक अस्पताल के नशा मुक्ति केंद्र में अपना इलाज करवाने आये मरीजों ने भी उनके नशे की लत में फंसने की समान वजह ही बताई कि उन्होंने शौकिया तौर पर नशा लेना शुरू किया था लेकिन बाद में उन्हें इसकी लत पड़ गयी , कुछ ने कहा अच्छी स्टडी करने के बाद भी उन्हें जॉब नही मिल रही थी जिसकी वजह से तनाव में आकर उन्होंने नशा करना शुरू कर दिया। मौजूदा समय में नशे की लत से बाहर निकलने की कोशिश करने वालों के परिवार के साथ समाज को भी उनका साथ देना जरूरी हो गया है। क्योंकि नशा छोड़ने के बाद भी समाज में ऐसे लोगों के प्रति लोग संदेह भरी निगाहों से देखते हैं उनका तिरस्कार करते हैं जिसकी वजह से वह व्यक्ति फिर से नशे की दलदल में वापस जाने को मजबूर हो जाता है।

बाइट पंकज शर्मा, मनोचिकित्सक

बाइट पीड़ित











Conclusion:
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