सिरसा: त्योहारी सीजन शुरू हो चुका है. दशहरा होने के बाद अब दीपावली-2022 (Preparation for Deepawali in Haryana) का सभी को बड़े ही बसब्री से इंतजार है. कुम्हारों के चाक की रफ्तार भी तेज हो गई है. गांवों और शहरों में मिट्टी का बर्तन बनाने वाले कुम्हार दिन रात काम कर रहे हैं. कुम्हारों को उम्मीद है कि दीपावली (Diwali 2022) पर इस बार लोगों के घर आंंगन मिट्टी के दीये से रोशन होंगे और उनके कारोबार को दोबारा बुरे दिन नहीं देखने पड़ेंगे. दो साल कोरोना महामारी की वजह से देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से तहस नहस हो गई थी, लेकिन अब कारीगरों का कामकाज फिर से पटरी पर लौट आया है.
सिरसा में बड़े पैमाने पर तैयार होते हैं दीये: कारीगरों की पूरी उम्मीद है कि अब उनका काम पहले की तरह से बेहतर तरीके से चलेगा. त्योहारी सीजन में मिट्टी के दीयों के प्रति रुझान एक बार फिर से बड़ा है. सिरसा में बड़े पैमाने पर मिटटी के दीये तैयार किए जाते हैं. मिट्टी के दिए सिरसा से हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, चंडीगढ़, हिमाचल सहित दूसरे राज्यों में सप्लाई किए जाते हैं.
कोरोना महामारी के कारण मिट्टी के दीये बनाने वाले कारीगरों का कामकाज सिमटकर रह गया था. कोरोना खत्म होने की संभावना के बाद अब कारीगरों का कामकाज पटरी पर लौट आया है. कारीगर मनीष प्रजापति अब तक करीब 4 लाख मिट्टी के दीये बनाकर देश के अनेक राज्यों में दीयों की सप्लाई कर चुके हैं. मनीष और उसका परिवार रोजाना करीब 16 घंटे की मेहनत करता है और एक दिन में करीब 4 हजार दीये बनाते हैं. चाइनीज लड़ियों के बजाए मिट्टी के दीयों के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है.
चाइनीज झालरों का बहिष्कार: दरअसल पिछले वर्ष चीन के साथ तनाव को देखते हुए सोशल मीडिया पर जमकर चीनी उत्पादों के खिलाफ अभियान चला था, जिसमें दिवाली के मौके पर चाइनीज झालरों के बहिष्कार की बात कही गई थी. वहीं पीएम मोदी के 'वोकल फार लोकल' की अपील का भी लोगों पर जबरदस्त असर पड़ा और दिवाली के मौके पर दीयों की बिक्री भी जमकर हुई थी. ऐसा लग रहा है कि 'वोकल फॉर लोकल' की अपील का असर इस बार भी लोगों के बीच दिख रहा है और लोग चायनीज झालरों के बजाय मिट्टी के दीयों को प्राथमिकता दे रहे हैं, इससे कुम्हारों में बेहद खुशी है.
फिर मिलेंगे दीया और बाती: आधुनिकता के इस दौर में भी मिट्टी के दीये की पहचान बरकरार रखने के कारण कुम्हारों के कुछ कमाई की उम्मीद बन गई है. कुम्हारों का कहना है कि इस बार की दीपावली में एक बार फिर दीया और बाती का मिलन होगा और लोगों के घर आंगन मिट्टी के दीये से रोशन होंगे.
पटरी पर लौटी कुम्हार की कला: चाक की तेजी का असर ये है कि बाजार में भी मिट्टी के दीये बिकने के लिए पहुंच गए हैं और लोगों ने अभी से दीयों की खरीदारी भी शुरू कर दी है. चाइनीज झालरों व मोमबत्तियों की चकाचौंध ने दीयों के प्रकाश को गुमनामी के अंधेरे में धकेल दिया था. मगर पिछले दो वर्षों से लोगों की सोच में खासा बदलाव आया और एक बार फिर गांव की लुप्त होती इस कुम्हारी कला के पटरी पर लौटने के संकेत मिलने लगे हैं. कुम्हारी कला से निर्मित खिलौने दियाली सुराही व अन्य मिट्टी के बर्तनों की माँग बढ़ी तो कुम्हारों के चेहरे खिल (Deepawali diyas special) गए.
इको फ्रेंडली होंगे दीये: मिट्टी से निर्मित मूर्तियां दीये और खिलौने पूरी तरह इको फ्रेंडली होते हैं. इसकी बनावट रंगाई और पकाने में किसी भी प्रकार का केमिकल प्रयोग नहीं किया जाता है. (eco friendly earthen lamps) दीये पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं.
पारंपरिक कला उद्योग से जुड़े हैं लोग: मनीष प्रजापति के अनुसार सदियों से पारंपरिक कला उद्योग से अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में उनके परिवार के लोगों का भरपूर सहयोग मिलता रहा है। उनके पिता दादा और अब वे और साथ में उनके बच्चे भी इसी काम में जुटे हुए है। वहीं मनीष और उसके परिवार को नौकरी का कोई लगाव नहीं है बल्कि पारंपरिक कला उद्योग से मिलने वाली कमाई से ही उसके परिवार की संतुष्टि दिखाई दे रही है। कुम्हारी कला भी एक रही है जो समाज के एक बड़े वर्ग कुम्हार जाति के लिए रोजी-रोटी का बड़ा सहारा रहा.
दीयों का धार्मिक महत्व: हिंदू परंपरा में मान्यता है कि मिट्टी का दीपक जलाने से घर में सुख समृद्धि और शांति का वास होता है. मिट्टी को मंगल ग्रह का प्रतीक माना जाता है. मंगल साहस पराक्रम में वृद्धि करता है और तेल को शनि का प्रतीक माना जाता है. शनि को न्याय और भाग्य का देवता कहा जाता है. मिट्टी का दीपक जलाने से मंगल और शनि की कृपा प्राप्त होती है.
प्रकाश का पर्व दीपावली: 24 अक्टूबर को मनाई जाएगी. दीपोत्सव के पर्व की (festival of light) महत्ता को देखते गए बाजारों में मिट्टी के दीयों की मांग एकाएक काफी बढ़ गई है. इन दिनों कुम्हार लगातार मिट्टी के दीये तैयार करने में लगे हुए हैं. मिट्टी के दीयों की बढ़ती मांग को देखकर कुम्हार के चाक की स्पीड भी काफी तेज हो गई है. इस साल भी मिट्टी के दीयों की बिक्री खूब तेजी से हो रही है. दीपावली में दीये बनाने के लिए उन्होंने एक महीना पहले से ही तैयारी कर ली है.
मिट्टी के दीयों का स्टॉक: दीपावली के दिन केवल मिट्टी के दीये में तेल डालकर दीये जलाए जाते हैं. इससे जहां घर पवित्र होता है वहीं पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं (Pollution Free Diwali) होता है. कीट पतंग भी समाप्त हो जाता है. मिट्टी के दीयों का इस्तेमाल दीपावली के साथ-साथ छठ पूजा में भी जमकर होता है. जिसकी वजह से दीयों की बिक्री इन दिनों बढ़ी हुई है.
मिट्टी के दीयों के बढ़ी है मांग: नवरात्रि के प्रथम दिन से ही मिट्टी के दीयों की बिक्री शुरू हो जाती है. लोग मंदिरों में दीपक जलाने के लिए मिट्टी के दीये का ही प्रयोग करते हैं. पिछले कुछ सालों से मिट्टी के दीयों की मांग बढ़ी है. बता दें कि चाइनीस लाइटों के आगे दीये की रोशनी फीकी हो गई थी, लेकिन पिछले करीब 3 वर्षो से अधिकांश लोगों ने चाइनीस लाइटों का बहिष्कार कर दिया है. लोगों का मानना है कि हम जो पैसे देकर चाइनीज लाइट खरीदते हैं वह पैसे विदेशों में जाता है. यही कारण है कि एक बार फिर से कुम्हार की चाक ने स्पीड पकड़ लिया है. उनकी रोजी रोटी एक बार फिर से चलने लगी. घर से लेकर सरकारी कार्यालय तक मिट्टी के दीयों से दिवाली में लोग सजाते हैं.
बाजार में हर वैरायटी के हैं मिट्टी के दिए: दिवाली के लिए बाजार सज धज कर तैयार हैं. दीपावली के मौके पर बाजार में मिट्टी के दीए भी हर वैरायटी के मौजूद हैं. छोटे दिए बड़े दिए के अलावा कढ़ाई किये हुए दीये भी बाजार में मौजूद हैं जो अपनी खूबसूरती से लोगों को आकर्षित करती है. बाजारों में दीये 500 रुपये सैकड़ा है. जैसे-जैसे दिवाली नजदीक आती जाएगी दीयों के दामों में उछाल होता जाएगा. लोगों ने दिवाली की तैयारी को लेकर पहले से ही बाजारों में दीये और अन्य सामानों की खरीदारी करना शुरू कर दिया है.