रोहतक: हरियाणा में गरमाया बॉन्ड पॉलिसी का मुद्दा अब ठंडा पड़ गया है. बांड पॉलिसी के खिलाफ PGIMS में पिछले 54 दिन से आंदोलन कर रहे एमबीबीएस विद्यार्थियों की हड़ताल अब खत्म हो चुकी है. हेल्थ यूनिवर्सिटी की वीसी डॉ. अनीता सक्सेना ने जूस पिलाकर छात्रों की हड़ताल खत्म (mbbs students call off strike) करवाई है. वहीं सरकार द्वारा बॉन्ड पॉलिसी में सरकार द्वारा संशोधित पॉलिसी से अब एमबीबीएस स्टूडेंट्स (students agreed haryana government) सहमत हो गए हैं.
संशोधित अधिसूचना जारी: दरअसल प्रदेश सरकार ने 3 दिन पहले ही बॉन्ड पॉलिसी को लेकर संशोधित अधिसूचना जारी की है. 30 नवंबर को एमबीबीएस विद्यार्थियों और सरकार के बीच हुई बातचीत के बाद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने जो ऐलान किया था उन सब बिंदुओं को संशोधित अधिसूचना में शामिल किया गया है. इस अधिसूचना का पिछले 3 दिन से एमबीबीएस विद्यार्थी अध्ययन कर रहे थे. जिसके बाद आंदोलन खत्म (Strike against Haryana bond policy ends) करने का निर्णय लिया गया है.
क्या बोले MBBS छात्र ?: वहीं आंदोलन का नेतृत्व कर रहे एमबीबीएस विद्यार्थी पंकज बिट्टू ने कहा कि मुख्यमंत्री के साथ हुई बैठक में तय बिंदुओं पर गजट नोटिफिकेशन जारी किया गया है. इस गजट नोटिफिकेश में सरकार ने जो संशोधन किए हैं वह पॉजीटिव और विद्यार्थियों के हित में हैं. इस नोटिफिकेशन में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार ने एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी होने के बाद सरकारी नौकरी की गारंटी दी है. अगर सरकारी नौकरी नहीं मिली तो बॉन्ड की राशि भी नहीं देनी होगी. साथ ही हारिजी से जुड़े मुद्दे समेत अन्य मांगों पर भी सरकार ने पूरा आश्वासन दिया है. इसलिए हड़ताल खत्म करने का निर्णय लिया गया है.
यूनिवर्सिटी की वीसी क्या बोलीं?: हेल्थ यूनिवर्सिटी रोहतक की वीसी डॉ. अनीता सक्सेना ने कहा कि विद्यार्थियों के हाथ में संशोधित पॉलिसी के गजट नोटिफिकेशन की कॉपी आ गई है. जिसका इन विद्यार्थियों ने अध्ययन किया और संशोधित पॉलिसी उन्हें पसंद है. इसलिए उन्होंने इस पॉलिसी को स्वीकार कर लिया है. सबसे बड़ा मुद्दा बॉन्ड का था, उससे भी विद्यार्थी सहमत हो गए हैं.
'छात्रों पर दर्ज FIR वापस ले सरकार' : वहीं वीसी ने ये भी कहा कि कुछ छात्रों पर हड़ताल के समय जो एफआईआर दर्ज की गई थी. उसमें यूनिवर्सिटी का कोई रोल नहीं था. लेकिन फिर भी सरकार के पास छात्रों की पेरवी की गई है कि छात्रों पर दर्ज एफआईआर वापिस ली जाए. वहीं उनका कहना है कि अब पॉलिसी में जो बदलाव हुए है उसके मुताबिक छात्रों को सरकारी नौकरी दी जाएगी. अगर किसी वजह से सरकारी नौकरी नहीं दी जाती तो बॉन्ड का पैसा स्टूडेंसट्स को नहीं देना पड़ेगा. इसके साथ ही अगर कम पैसे की नौकरी किसी छात्र की लगती है तो उससे ईएमआई भी नहीं ली जाएगी.
न्यू बॉन्ड पॉलिसी से छात्र सहमत: वहीं उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि अब जो 30 लाख रुपये की बॉन्ड छात्र देंगे उसमे फीस भी शामिल होगी. फीस समेत छात्रों को 30 लाख रुपये से भी कम का बॉन्ड भरना होगा साथ ही लड़कियों को इसमें 10 फीसदी छूट दी गई है और ये सब स्टूडेंट्स को तभी देना है जब सरकारी नौकरी छात्रों की लग जाएगी. साथ ही कॉन्ट्रेक्चूअल में भी अमाउंट तय किया जाएगा. अगर अमाउंट ज्यादा होगा तो ईएमआई कटेगा. यदि अमाउंट 90 से 93 हजार तक या इससे कम होगा तभी ईएमआई कटेगी वरना नहीं कटेगी.
जानिए कब शुरू हुई थी छात्रों की हड़ताल: गौरतलब है कि बॉन्ड पॉलिसी के खिलाफ PGIMS रोहतक में MBBS विद्यार्थियों का आंदोलन एक नवंबर से शुरू हुआ था. उस दिन विद्यार्थियों ने रोष मार्च भी निकाला था. फिर 2 नवंबर से विद्यार्थियों ने पीजीआईएमएस में निदेशक कार्यालय के बाहर धरने की शुरुआत की थी. मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर व राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय के पीजीआईएमएस में आने से पहले 4 नवंबर की रात को कार्यक्रम स्थल के बाहर धरना दिया था. पुलिस ने आंदोलनकारी विद्यार्थियों को जबरन हिरासत में ले लिया था. जिसके बाद उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई.
सरकार नहीं मानी तो और तेज हुआ आंदोलन: अगले दिन मुख्यमंत्री से आंदोलनकारियों की मुलाकात भी कराई गई लेकिन मुख्यमंत्री ने बॉन्ड पॉलिसी वापस लेने से इंकार कर दिया. इसके बाद आंदोलन और तेज हो गया. इस आंदोलन में विभिन्न राजनीतिक व सामाजिक संगठनों का समर्थन भी छात्रों को खूब मिला. आंदोलन में पीजीआईएमएस के रेजीडेंट डॉक्टर्स भी शामिल हुए और ओपीडी का भी बहिष्कार कर दिया. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रतिनिधिमंडल ने भी धरनास्थल पर पहुंचकर एमबीबीएस विद्यार्थियों की हौसला अफजाई की थी. वहीं 24 नवंबर से एमबीबीएस विद्यार्थी भी क्रमिक भूख हड़ताल पर बैठ गए.
सरकार और छात्रों की बातचीत बेनतीजा: इस बीच स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों से 2 दौर की वार्ता हुई लेकिन सहमति नहीं बन पाई. फिर 30 नवंबर को मुख्यमंत्री के साथ एमबीबीएस विद्यार्थियों व रेजीडेंट डॉक्टर्स ने चंडीगढ़ में कई घंटे तक चर्चा की. मुख्यमंत्री ने बॉन्ड राशि 40 लाख रुपये की बजाय 30 लाख रुपये और समय सीमा 7 साल की बजाय 5 साल करने की घोषणा की थी. एमबीबीएस विद्यार्थियों ने तो उस समय इस प्रस्ताव को नकार दिया और आंदोलन जारी रखा. लेकिन रेजीडेंट डॉक्टर्स 2 दिसंबर से काम पर लौट आए. एमबीबीएस विद्यार्थी 30 नवंबर के बाद से ही बॉन्ड पॉलिसी को लेकर संशोधित अधिसूचना का इंतजार कर रहे थे. यह अधिसूचना अब बुधवार को यानी 21 दिसबंर 2022 को जारी हुई है.
क्या है बॉन्ड पॉलिसी: दरअसल हरियाणा सरकार द्वारा एमबीबीएस छात्रों के लिए लाई गई बॉन्ड पॉलिसी के तहत डॉक्टरों को स्नातक और स्नातकोत्तर की स्टडी पूरी होने के बाद एक निश्चित समय अवधि के लिए राज्य सरकार द्वारा चल रहे अस्पतालों में काम करने की आवश्यकता होती है. अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो उन्हें इस के तौर पर जुर्माना देना था. हरियाणा में सरकारी संस्थाओं में पढ़ने वाले मेडिकल के छात्रों को प्रवेश के समय त्रिपक्षीय फॉर्म पर साइन करने होते हैं. 40 लाख के इस बोर्ड के तहत यह सुनिश्चित किया गया था कि एमबीबीएस छात्र 7 साल तक सरकार के लिए काम करेंगे.
इतना ही नहीं राज्य सरकार का यह भी तर्क था कि हरियाणा में डॉक्टरों की कमी है जिसकी वजह से उन्हें इस तरह का बॉन्ड लाना पड़ा है. यानी सरकार कहीं ना कहीं डॉक्टरों की कमी को देखते हुए भी इस को एक आधार मान रही थी. वहीं सरकार यह भी तर्क दे रही थी कि ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टर जाना पसंद नहीं करते. इसलिए भी इस बोर्ड के तहत उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करना होगा.
विद्यार्थियों की ये थी मांगें: छात्र लगातार सरकार की इस पॉलिसी का विरोध कर रहे थे. वे इसे न्याय संगत नहीं मानते थे. उनका कहना था कि अगर साधारण आदमी इसे समझना चाहे तो जो कुछ इस तरह है कि अभी हमारी मौजूदा साल की फीस फीस 52 हजार है, जो कि सरकार ने अब सीधी 10 लाख कर दी थी. उनका कहना था कि सरकार हमें जॉब्स सिक्योरिटी देने के लिए तैयार नहीं है.उनका कहना था कि सरकार तर्क दे रही है कि यह बॉन्ड पॉलिसी इसलिए बनाई गई है क्योंकि डॉक्टर की कमी है, और छात्र इससे बंधे रहे.
छात्रों का ये भी कहना था कि अगर सच में ही डॉक्टरों की कमी है तो फिर वह छात्रों को नौकरी देने के लिए सरकार तैयार क्यों नहीं होती. वे कहते हैं कि हरियाणा और देश में 11 हजार मरीजों पर एक डॉक्टर है, जबकि डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन के मुताबिक एक हजार लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए. जब डॉक्टरों की कमी है तो फिर नौकरी देने का वादा सरकार क्यों नहीं करती. साथ ही छात्रों की ये भी मांग थी कि हड़ताल के दौरान जिन छात्रों पर एफआईआर दर्ज है वो भी सरकार वापस ले.
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छात्र कहते थे कि हम तो ग्रामीण क्षेत्रों में भी काम करने के लिए तैयार है. लेकिन सरकार नौकरी ही नहीं देना चाहती. उनका कहना था कि 40 लाख के बॉन्ड की ईएमआई करीब 68 हजार पड़ेगी, वह डॉक्टर कैसे पूरी करेंगे. अगर हम नौकरी के लिए रिफ्यूज करते हैं तो फिर सरकार बॉन्ड लेना चाहती है, तो ले लें. अगर सरकार हमारी सेवाएं लेना चाहती है तो वह हम पर कंपलसरी एक साल के ग्रामीण क्षेत्र में कार्य करने का बॉन्ड भरवा ले. अगर सरकार को हमें नौकरी देने में दिक्कत आ रही है तो वह इस संबंध में हमारे सामने स्थिति को स्पष्ट करे.