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रेवाड़ी के लाल ने लिया था पुलवामा हमले का बदला, 10 माह के बेटे ने दी थी शहीद पिता को मुखाग्नि

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर आज ही के दिन एक साल पहले जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने हमला किया था. इस हमलें में हमारे 40 जवान शहीद हो गए थे. वहीं इस हमले के 4 दिन बाद यानि 18 फरवरी को पुलवामा का बदला लेते हुए रेवाड़ी के राजगढ़ गांव की माटी के लाल हरी सिंह ने अपनी जान की बाजी लगा दी थी.

martyr hari singh rewari
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Published : Feb 14, 2020, 6:17 PM IST

रेवाड़ी: पूरा देश नम आंखों से भारतमाता के उन वीर सपूतों को याद कर रहा है. जिन्हें पाकिस्तान की नापाक करतूत के कारण पिछले साल हमने अपने खो दिया था. जम्मू-कश्मीर के पिंगलेना में पुलवामा हमले के जिम्मेदार आतंकियों पर कार्रवाई के दौरान मेजर समेत 5 जवान शहीद हो गए थे. इनमें रेवाड़ी के राजगढ़ निवासी हरी सिंह राजपूत भी शामिल थे.

परिवार का एकमात्र सहारा थे हरी सिंह

26 वर्षीय हरी सिंह राजपूत 2011 में बतौर ग्रेनेडियर भर्ती हुए थे. शहीद होने से कुछ दिन पहले ही हरी सिंह को नायक पद के लिए भी प्रमोट किया गया था. शहीद के पिता अंगड़ी राम भी सेना से रिटायर थे. हरी सिंह के शहीद होने से 2 वर्ष पहले ही उनके पिता का भी निधन हो गया था. हरी सिंह पर सरहदों की हिफाजत के साथ-साथ अपने परिवार की भी जिम्मेदारी थी.

रेवाड़ी के लाल ने लिया था पुलवामा हमले का बदला, 10 माह के बेटे ने दी थी शहीद पिता को मुखाग्नि.

बेटे को याद कर मां की आंखों में आया पानी

परिवार में मां पिस्ता देवी, पत्नी राधा, 2 वर्षीय बेटा लक्ष्य और तीन बहनें हैं. जो आज भी गर्व के साथ अपने लाल की शहादत को याद करते हैं. शहीद हरी सिंह की मां ने कहा कि मेरे बेटे ने जो बहादुरी दिखाई उसे आज पूरा देश याद कर रहा है लेकिन बेटे के बिना जिंदगी अब अधूरी सी लगती है. पति के जाने के बाद बेटा ही घर की बागडोर संभाले हुए था लेकिन अब वह भी टूट गई. ये कहते हुए मां की आंखों में पानी आ गया.

'हर घर में हो मेरे हरी सिंह जैसा वीर बेटा'

मां ने बताया कि वह हर जरूरतमंद की मदद करता था. जब गांव के बच्चे सेना की भर्ती देखने जाते थे और उनके पास जाने के लिए किराया नहीं होता था तो हरी सिंह उनकी मदद करता था. उन्होंने कहा कि देश के हर घर में हरी सिंह जैसा एक बहादुर बेटा होना चाहिए. उन्होंने देश की जनता से अपील करते हुए कहा कि हर फौजी की मदद करें. आतंकियों की मदद करके अपने बहादुर बेटों को खोने का काम ना करें.

ये भी पढ़ेंः- 'म्हारा गांव-जगमग गांव' योजना के तहत मिलेगी 24 घंटे बिजली, मुख्य सचिव ने दिए निर्देश

हरी सिंह की याद में बनें खेल परिसर

वहीं भाई की शहादत को याद करते हुए हरि सिंह के चचेरे भाई विजय ने कहा कि वो ऑपरेशन रात की बजाय दिन में चलाया जाता तो आज मेरा भाई हमारे बीच होता क्योंकि आतंकी लगातार अंधेरे का फायदा उठाते आ रहे हैं. हरी सिंह शुरू से ही खेलों के भी शौकीन थे इसलिए उनके भाई ने गांव में एक खेल परिसर बनाए जाने की मांग की ताकि खेल के रुप में भी हरी सिंह की यादें जिंदा रहे.

'आंखों में गर्व के आंसू लिए शहीद भाई को करते हैं याद'

वहीं अपने इकलौते भाई को याद करते हुए बहन रजनी ने भारी मन से कहा कि मेरा भाई बहादुर था वह बहुत बड़ा काम करके गया है इसलिए मुझे और पूरे देश को उस पर आज गर्व है. उन्होंने बताया कि शहीद होने से पहले 16 फरवरी को उनकी फोन पर भाई से बात हुई थी तब उसने कहा था कि मैं ठीक हूं, तुम लोग अपना ख्याल रखना. आंखों में गर्व के आंसू लिए शहीद भाई को याद करते हुए बहन रजनी के बताया कि जब भी भाई छुट्टी आता था तो हम सबके लिए गिफ्ट लाता था, लेकिन अब उनकी यादों के सहारे ही अपना समय बिता रहे हैं.

शहादत के दिन पूरा गांव हो था गमगीन

उस दिन को याद करते हुए हर किसी की आंखों में आंसू आ जाते हैं. हरी सिंह की शहादत की खबर 19 फरवरी की सुबह 6 बजे प्रशासनिक अधिकारियों ने पंचायत को दी थी. खबर से पूरा गांव गमगीन हो गया था. पूरे गांव को गर्व था कि उनका लाल पुलवामा के शहीदों का बदला लेते हुए अपनी जान न्यौछावर कर गया था. उस समय देर रात तक लोगों ने शहादत की बात छुपाते हुए शहीद की पत्नी और मां को जवान के घायल होने की बात बताई थी. एक तरफ वीर हरी सिंह की शहादत पर गर्व था तो दूसरी ओर किसी को ये समझ नहीं आ रहा था कि कैसे परिवार को ये बात बताएं.

गर्व से बढ़कर कुछ भी नहीं

आखिरकार मां और पत्नी को हरी सिंह के शहीद होने की बात बताई गई. अगले दिन राजकीय सम्मान के साथ शहीद हरी सिंह का अंतिम संस्कार किया गया. 10 महीने के बेटे ने शहीद पिता को मुखाग्नि दी थी. परिवार का कहना है कि उनका बेटा तो अब कभी लौटकर वापस नहीं आएगा, लेकिन उसकी शहादत पर हमेशा गर्व रहेगा. बाकी सबके लिए गर्व एक शब्द की तरह होगा लेकिन एक सैनिक के परिवार के लिए गर्व से बढ़कर कुछ नहीं होता.

ये भी पढ़ें: पुलवामा हमले की पहली बरसी पर शहीदों को श्रद्धांजलि दे रहा है कृतज्ञ राष्ट्र

रेवाड़ी: पूरा देश नम आंखों से भारतमाता के उन वीर सपूतों को याद कर रहा है. जिन्हें पाकिस्तान की नापाक करतूत के कारण पिछले साल हमने अपने खो दिया था. जम्मू-कश्मीर के पिंगलेना में पुलवामा हमले के जिम्मेदार आतंकियों पर कार्रवाई के दौरान मेजर समेत 5 जवान शहीद हो गए थे. इनमें रेवाड़ी के राजगढ़ निवासी हरी सिंह राजपूत भी शामिल थे.

परिवार का एकमात्र सहारा थे हरी सिंह

26 वर्षीय हरी सिंह राजपूत 2011 में बतौर ग्रेनेडियर भर्ती हुए थे. शहीद होने से कुछ दिन पहले ही हरी सिंह को नायक पद के लिए भी प्रमोट किया गया था. शहीद के पिता अंगड़ी राम भी सेना से रिटायर थे. हरी सिंह के शहीद होने से 2 वर्ष पहले ही उनके पिता का भी निधन हो गया था. हरी सिंह पर सरहदों की हिफाजत के साथ-साथ अपने परिवार की भी जिम्मेदारी थी.

रेवाड़ी के लाल ने लिया था पुलवामा हमले का बदला, 10 माह के बेटे ने दी थी शहीद पिता को मुखाग्नि.

बेटे को याद कर मां की आंखों में आया पानी

परिवार में मां पिस्ता देवी, पत्नी राधा, 2 वर्षीय बेटा लक्ष्य और तीन बहनें हैं. जो आज भी गर्व के साथ अपने लाल की शहादत को याद करते हैं. शहीद हरी सिंह की मां ने कहा कि मेरे बेटे ने जो बहादुरी दिखाई उसे आज पूरा देश याद कर रहा है लेकिन बेटे के बिना जिंदगी अब अधूरी सी लगती है. पति के जाने के बाद बेटा ही घर की बागडोर संभाले हुए था लेकिन अब वह भी टूट गई. ये कहते हुए मां की आंखों में पानी आ गया.

'हर घर में हो मेरे हरी सिंह जैसा वीर बेटा'

मां ने बताया कि वह हर जरूरतमंद की मदद करता था. जब गांव के बच्चे सेना की भर्ती देखने जाते थे और उनके पास जाने के लिए किराया नहीं होता था तो हरी सिंह उनकी मदद करता था. उन्होंने कहा कि देश के हर घर में हरी सिंह जैसा एक बहादुर बेटा होना चाहिए. उन्होंने देश की जनता से अपील करते हुए कहा कि हर फौजी की मदद करें. आतंकियों की मदद करके अपने बहादुर बेटों को खोने का काम ना करें.

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हरी सिंह की याद में बनें खेल परिसर

वहीं भाई की शहादत को याद करते हुए हरि सिंह के चचेरे भाई विजय ने कहा कि वो ऑपरेशन रात की बजाय दिन में चलाया जाता तो आज मेरा भाई हमारे बीच होता क्योंकि आतंकी लगातार अंधेरे का फायदा उठाते आ रहे हैं. हरी सिंह शुरू से ही खेलों के भी शौकीन थे इसलिए उनके भाई ने गांव में एक खेल परिसर बनाए जाने की मांग की ताकि खेल के रुप में भी हरी सिंह की यादें जिंदा रहे.

'आंखों में गर्व के आंसू लिए शहीद भाई को करते हैं याद'

वहीं अपने इकलौते भाई को याद करते हुए बहन रजनी ने भारी मन से कहा कि मेरा भाई बहादुर था वह बहुत बड़ा काम करके गया है इसलिए मुझे और पूरे देश को उस पर आज गर्व है. उन्होंने बताया कि शहीद होने से पहले 16 फरवरी को उनकी फोन पर भाई से बात हुई थी तब उसने कहा था कि मैं ठीक हूं, तुम लोग अपना ख्याल रखना. आंखों में गर्व के आंसू लिए शहीद भाई को याद करते हुए बहन रजनी के बताया कि जब भी भाई छुट्टी आता था तो हम सबके लिए गिफ्ट लाता था, लेकिन अब उनकी यादों के सहारे ही अपना समय बिता रहे हैं.

शहादत के दिन पूरा गांव हो था गमगीन

उस दिन को याद करते हुए हर किसी की आंखों में आंसू आ जाते हैं. हरी सिंह की शहादत की खबर 19 फरवरी की सुबह 6 बजे प्रशासनिक अधिकारियों ने पंचायत को दी थी. खबर से पूरा गांव गमगीन हो गया था. पूरे गांव को गर्व था कि उनका लाल पुलवामा के शहीदों का बदला लेते हुए अपनी जान न्यौछावर कर गया था. उस समय देर रात तक लोगों ने शहादत की बात छुपाते हुए शहीद की पत्नी और मां को जवान के घायल होने की बात बताई थी. एक तरफ वीर हरी सिंह की शहादत पर गर्व था तो दूसरी ओर किसी को ये समझ नहीं आ रहा था कि कैसे परिवार को ये बात बताएं.

गर्व से बढ़कर कुछ भी नहीं

आखिरकार मां और पत्नी को हरी सिंह के शहीद होने की बात बताई गई. अगले दिन राजकीय सम्मान के साथ शहीद हरी सिंह का अंतिम संस्कार किया गया. 10 महीने के बेटे ने शहीद पिता को मुखाग्नि दी थी. परिवार का कहना है कि उनका बेटा तो अब कभी लौटकर वापस नहीं आएगा, लेकिन उसकी शहादत पर हमेशा गर्व रहेगा. बाकी सबके लिए गर्व एक शब्द की तरह होगा लेकिन एक सैनिक के परिवार के लिए गर्व से बढ़कर कुछ नहीं होता.

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