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किसानों की फसलों पर मंडराया 'जलेबी' का संकट, जानें क्या है इससे बचने के उपाय?

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Published : Feb 26, 2020, 1:54 PM IST

मौसम की करवट और बढ़ती ठंड ने एक बार फिर रेवाड़ी के किसानों की चिंता बढ़ा दी है. इस बार चिंता पानी की कमी या प्रशासन की लापरवाही को लेकर नहीं बल्की फसलों में लगने वाली बीमारी जलेबी की है. जानिए बीमारी से जुड़े कुछ अहम बातों को...

white rust disease in rewari
रेवाड़ी के किसानों की फसलों पर 'जलेबी' का संकट

रेवाड़ीः मौसम में अचानक आए बदलाव की वजह से गेहूं और सरसों की फसल में बीमारियों का संक्रमण भी गहरा गया है. सरसों में इस समय सफेद रतुआ और जड़ों में जिंक की कमी के लक्षण दिखाई देने लगे हैं. रेवाड़ी के किसानों का अनुमान है कि सफेद रतुआ की इस बीमारी से किसानों को 20 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है. वहीं कृषि विशेषज्ञों ने भी इस बीमारी से निपटने के लिए किसानों को कई अहम उपाय बताए हैं.

किसानों की बढ़ी चिंता

रेवाड़ी के किसान मनीराम ने बताया कि उनकी फसलों में भी सफेद रतुए की बीमारी लगी हुई है. जिसके चलते वो काफी परेशान है. उन्होंने कहा कि सफेद रतुए की बीमारी सरसों और गेहूं की फसल को भारी नुकसान पहुंचाती है. किसानों ने सरकार से अपनी बर्बाद फसलों को लेकर मुआवजे की मांग की है.

मौसम की करवट और बढ़ती ठंड ने एक बार फिर रेवाड़ी के किसानों की चिंता बढ़ा दी है.

बढ़ी संक्रमण की आशंका

बावल कृषि अनुसंधान केंद्र में कृषि विशेषज्ञ जोगिंदर यादव ने रतुए से प्रभावित फसलों का निरीक्षण कर किसानों को इनके उपाय भी सुझाए हैं. फसल विशेषज्ञों ने बारिश के बाद फसलों में संक्रमण बढ़ने की आशंका जताई और बचाव के लिए किसानों को भी उपाय सुझाए हैं. उन्होंने बताया कि सफेद रतुआ बीमारी का शुरुआती दौर में ही उपाय किया जा सकता है लेकिन फसल के पकने के बाद इसका कोई इलाज नहीं है.

ये भी पढ़ेंः हरियाणा बजट: मनोहर सरकार से कुछ खास उम्मीदें लगाए बैठा है युवा

ऐसे फैल रहा है सफेद रतुआ

कृषि विशेषज्ञ जोगिंदर यादव ने बताया कि कृषि विभाग समय-समय पर फसलों में होने वाली बीमारियों को लेकर किसानों को अवगत कराते रहते हैं. इस बार मौसम में ज्यादा नमी रहने के कारण सफेद रतुए की बीमारी ज्यादा फैली है. उन्होंने बताया कि इस बार ज्यादा धुंध पड़ी और मौसम में भी बदलाव आया है. जिससे फसलों को धूप कम मिली और धूप कम मिलने के कारण ज्यादा नमी रही.

क्या है सफेद रतुआ

सरसों की फसल पर लगे सफेद पाउडर को सफेद रतुआ कहा जाता है और देसी भाषा में किसान इसे जलेबी के नाम से भी जानते हैं. सफेद रतुआ के संक्रमण की पहचान है जब पत्तियों पर सफेद रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. उसके बाद ऊपरी सतह पर पीलापन दिखाई देने लगता है.

फसलों में रोग की अधिकता की वजह से पौधे का ऊपरी हिस्सा भी मुड़ जाता है और फूल वाली टहनियां भी टेड़ी मेड़ी होने लगती हैं. इसमें फलियां भी नहीं बनती जिससे उत्पादन पर भी बुरा असर पड़ता है.

ये है उपाय:

सरसों की फसल में सफेद रतुआ से बचाव के लिए डाइथेन एम 45 या इंडोफिल एम 45 की 600 ग्राम मात्रा 200 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ छिड़काव किया जा सकता है.

गेहूं में जिंक की कमी से फसल में हल्के भूरे रंग के पत्ते हो जाते हैं. जिससे बचाव के लिए एक किलोग्राम जिंक सल्फेट 200 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें. 500 ग्राम जिंक सल्फेट 100 लीटर पानी में घोल बनाकर भी प्रति एकड़ छिड़काव किया जा सकता है.

रेवाड़ीः मौसम में अचानक आए बदलाव की वजह से गेहूं और सरसों की फसल में बीमारियों का संक्रमण भी गहरा गया है. सरसों में इस समय सफेद रतुआ और जड़ों में जिंक की कमी के लक्षण दिखाई देने लगे हैं. रेवाड़ी के किसानों का अनुमान है कि सफेद रतुआ की इस बीमारी से किसानों को 20 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है. वहीं कृषि विशेषज्ञों ने भी इस बीमारी से निपटने के लिए किसानों को कई अहम उपाय बताए हैं.

किसानों की बढ़ी चिंता

रेवाड़ी के किसान मनीराम ने बताया कि उनकी फसलों में भी सफेद रतुए की बीमारी लगी हुई है. जिसके चलते वो काफी परेशान है. उन्होंने कहा कि सफेद रतुए की बीमारी सरसों और गेहूं की फसल को भारी नुकसान पहुंचाती है. किसानों ने सरकार से अपनी बर्बाद फसलों को लेकर मुआवजे की मांग की है.

मौसम की करवट और बढ़ती ठंड ने एक बार फिर रेवाड़ी के किसानों की चिंता बढ़ा दी है.

बढ़ी संक्रमण की आशंका

बावल कृषि अनुसंधान केंद्र में कृषि विशेषज्ञ जोगिंदर यादव ने रतुए से प्रभावित फसलों का निरीक्षण कर किसानों को इनके उपाय भी सुझाए हैं. फसल विशेषज्ञों ने बारिश के बाद फसलों में संक्रमण बढ़ने की आशंका जताई और बचाव के लिए किसानों को भी उपाय सुझाए हैं. उन्होंने बताया कि सफेद रतुआ बीमारी का शुरुआती दौर में ही उपाय किया जा सकता है लेकिन फसल के पकने के बाद इसका कोई इलाज नहीं है.

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ऐसे फैल रहा है सफेद रतुआ

कृषि विशेषज्ञ जोगिंदर यादव ने बताया कि कृषि विभाग समय-समय पर फसलों में होने वाली बीमारियों को लेकर किसानों को अवगत कराते रहते हैं. इस बार मौसम में ज्यादा नमी रहने के कारण सफेद रतुए की बीमारी ज्यादा फैली है. उन्होंने बताया कि इस बार ज्यादा धुंध पड़ी और मौसम में भी बदलाव आया है. जिससे फसलों को धूप कम मिली और धूप कम मिलने के कारण ज्यादा नमी रही.

क्या है सफेद रतुआ

सरसों की फसल पर लगे सफेद पाउडर को सफेद रतुआ कहा जाता है और देसी भाषा में किसान इसे जलेबी के नाम से भी जानते हैं. सफेद रतुआ के संक्रमण की पहचान है जब पत्तियों पर सफेद रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. उसके बाद ऊपरी सतह पर पीलापन दिखाई देने लगता है.

फसलों में रोग की अधिकता की वजह से पौधे का ऊपरी हिस्सा भी मुड़ जाता है और फूल वाली टहनियां भी टेड़ी मेड़ी होने लगती हैं. इसमें फलियां भी नहीं बनती जिससे उत्पादन पर भी बुरा असर पड़ता है.

ये है उपाय:

सरसों की फसल में सफेद रतुआ से बचाव के लिए डाइथेन एम 45 या इंडोफिल एम 45 की 600 ग्राम मात्रा 200 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ छिड़काव किया जा सकता है.

गेहूं में जिंक की कमी से फसल में हल्के भूरे रंग के पत्ते हो जाते हैं. जिससे बचाव के लिए एक किलोग्राम जिंक सल्फेट 200 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें. 500 ग्राम जिंक सल्फेट 100 लीटर पानी में घोल बनाकर भी प्रति एकड़ छिड़काव किया जा सकता है.

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