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पानीपत में खस्ताहाल हैं रैन बसेरे, फुटपाथ पर सोने को मजबूर हैं बेघर

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Published : Jan 5, 2020, 3:57 PM IST

पानीपत की ऐतिहासिक नगरी में लाखों रुपये से बने रैन बसेरे नगर निगम की लापरवाही के कारण जर्जर हो चुके हैं. जिसके कारण इस हाड़ कंपाती ठंड में गरीबों को रात फुटपाथ पर गुजारनी पड़ रही है.

Poor sleeping on sidewalk due to shabby night shelter in panipat
पानीपत में खस्ताहाल में पड़े हुए हैं रैन बसेरे

पानीपत: ऐतिहासिक नगरी में लाखों रुपये की लागत से बनाए गए रैन बसेरे नगर निगम की लापरवाही के कारण जर्जर हो चुके हैं. जिसके कारण गरीब, मजदूर और ठेला रेहड़ी लगाकर अपना गुजारा करने वाले रोगों को सर्द भरी रात फुटपाथ पर गुजारनी पड़ रही है. वहीं नगर निगम प्रशासन कुंभकर्णीय नींद में सोया हुआ है.

रैनबसेरे के टूटे दरवाजे और फटे गद्दे बता रहे हैं नगर निगम की लापरवाही
स्थानीय बस स्टैंड पर दो साल पहले लाखों रुपये से बनाए गए रैन बसेरे की हालत खस्ता है. यह रैन बसेरा प्रतिवर्ष सर्दियों में नगर निगम की ओर से खोले जाते हैं ताकि रात में बाहर से आने वाले जरूरतमंद और बेसहारा लोग रात गुजार सकें. लेकिन दुसरे को शरण देने के लिए बनाए गए रैन बसेरे खुद अपनी बदहाली का रोना रो रहा है. टूटे दरवाजे और फटे गद्दे बता रहे हैं कि नगर निगम इसके प्रति कितना जागरूक है.

पानीपत में खस्ताहाल पड़े हैं रैन बसेरे

इसे भी पढ़ें: विधायक के छूते ही गिरने लगीं दीवार से टाइल्स, ऐसे हैं टोहाना के रैन बसेरे

फुटपाथ पर रात गुजारने को मजबूर हैं गरीब
गरीब और मजदूर लोग स्टेशन के पास बने धर्मशालाओं में ठहरते हैं. लेकिन धर्मशाला देर रात को बंद हो जाती है.जिसके कारण गरीबों को फुटपाथ पर ही अपनी रात काटनी पड़ती है. ऐसे लोगों पर नगर निगम प्रशासन बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रहा है.

पानीपत: ऐतिहासिक नगरी में लाखों रुपये की लागत से बनाए गए रैन बसेरे नगर निगम की लापरवाही के कारण जर्जर हो चुके हैं. जिसके कारण गरीब, मजदूर और ठेला रेहड़ी लगाकर अपना गुजारा करने वाले रोगों को सर्द भरी रात फुटपाथ पर गुजारनी पड़ रही है. वहीं नगर निगम प्रशासन कुंभकर्णीय नींद में सोया हुआ है.

रैनबसेरे के टूटे दरवाजे और फटे गद्दे बता रहे हैं नगर निगम की लापरवाही
स्थानीय बस स्टैंड पर दो साल पहले लाखों रुपये से बनाए गए रैन बसेरे की हालत खस्ता है. यह रैन बसेरा प्रतिवर्ष सर्दियों में नगर निगम की ओर से खोले जाते हैं ताकि रात में बाहर से आने वाले जरूरतमंद और बेसहारा लोग रात गुजार सकें. लेकिन दुसरे को शरण देने के लिए बनाए गए रैन बसेरे खुद अपनी बदहाली का रोना रो रहा है. टूटे दरवाजे और फटे गद्दे बता रहे हैं कि नगर निगम इसके प्रति कितना जागरूक है.

पानीपत में खस्ताहाल पड़े हैं रैन बसेरे

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फुटपाथ पर रात गुजारने को मजबूर हैं गरीब
गरीब और मजदूर लोग स्टेशन के पास बने धर्मशालाओं में ठहरते हैं. लेकिन धर्मशाला देर रात को बंद हो जाती है.जिसके कारण गरीबों को फुटपाथ पर ही अपनी रात काटनी पड़ती है. ऐसे लोगों पर नगर निगम प्रशासन बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रहा है.

Intro:


एंकर --पानीपत की ऐतिहासिक और औद्योगिक नगरी में लाखों रुपए की लागत से बनाए गए भवन रात के समय खाली पड़े हैं और ट्रेनों से रात-देर रात में उतरने वाले यात्री, बाजारों में भीख मांगकर गुजारा करने वाले और घुमंतु परिवारों के लोग सारी रात फुटपाथ पर खुले आसमान के नीचे तेज सर्दी में ठिठुरते हुए गुजारने को मजबूर हैं, लेकिन नगर निगम व प्रशासनिक अधिकारियों का ध्यान इस ओर नहीं है। नगर निगम द्वारा नहीं बनाये गए रैनबसेरे।






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वीओ- बरसात और सर्दी आते ही लोग अपने लिए तरह-तरह की व्यवस्था में लग जाते हैं, लेकिन वे लोग क्या करें जिनके पास सर छुपाने के लिए एक अदद छत तक नहीं है। उनके नसीब में तो हर भयावहरात फुटपाथ पर ही गुजारनी लिखी होती है। ऐसे में पानीपत शहर में फुटपाथ पर जिंदगी बिता रहे लोगों का हाल जानने के लिए हमने ने देर रात शहर के फुटफाथ का जायजा लिया। फुटपाथ पर सो रहे लोगों के दुख-दर्द को जानने की कोशिश की।


वीओ -- जानकारी के अनुसार नगर निगम की ओर से स्थानीय बस स्टैंड पर दो वर्ष पूर्व लाखों रुपए की लागत से रैन बसेरा बनाया था। इन दिनों कड़ाके की सर्दी शुरू हो गई है, प्रतिवर्ष यह भवन सर्दियों के मौसम में नगर निगम की ओर से खोले जाते हैं, ताकि रात में बाहर से आने वाले जरूरतमंद और बेसहारा लोग रात गुजार सकें। इन भवनों में नगर निगम कर्मचारी की ड्यूटी भी रहती है और सभी सुविधाएं निशुल्क दी जाती हैं। लेकिन यह सब सिर्फ कागजों तक ही सिमित हे

वीओ --हालांकि पानीपत बस स्टैंड पर रैन बसेरा रात में खुला रहता है जिसकी हालत खुद दयनीय बनी हे दरवाजे टूटे हे अंदर रजाई तो नहीं रजाई के फ़टी रुई जरूर बिखरी पड़ी हे , लेकिन इस रैन बसेरे का प्रचार-प्रसार नहीं है। कई नए लोगों को इसका पता नहीं है। रेलवे स्टेशन से लेकर बस स्टैंड तक कहीं भी रैन बसेरे के सांकेतिक बोर्ड भी नहीं लगे हैं। यह रेन बसेरा रेलवे स्टेशन से दो किमी दूर है। रात को 10 बजे व मध्य रात को आधा दर्जन ट्रेनों की आवाजाही होती है तथा ज्यादातर ट्रेनों से कई लोग उतरते हैं, जो दूरदराज ग्रामीण इलाकों के होते हैं एवं प्लेटफार्म टिकट के अभाव में आरपीएफ के डर की वजह से उन्हें रेलवे स्टेशन छोड़ना पड़ता है। कई लोग ऑटो रिक्शा व अन्य साधनों से रात में ही गंतव्य पर पहुँच जाते हैं तो कई ऐसे भी होते हैं जिनके पास गांव जाने का किराया तक नहीं होता तथा वह धर्मशालाओं में भी नहीं ठहर सकते।

वीओ - हालांकि धर्मशालाओं में भी ताले लग जाते हैं। रेलवे स्टेशन के पास धर्मशालाओं के बंद रहने से ऐस लोगों की फुटपाथों पर ही रात गुजारना मजबूरी है। लोगो का कहना है कि इस तरह तरह के कई परिवार स्टेशन रोड के सामने मुख्य रोड के किनारे ही सारी रात तेज सर्दी में गुजारते हैं। नगर निगम द्वारा यदि रैनबसेरा रात में खुल जाए तो फुटपाथों पर सोने वाले ऐसे लोग या ऐसे परिवार कम से कम तेज सर्दी में आश्रय ले सकते हैं।

Conclusion:बाईट -- फुटपाथी लोग
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