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लॉकडाउन के बाद पाबंदियों ने तोड़ी पानीपत टेक्सटाइल फैक्ट्रियों में मजदूरों की कमर

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Published : Jun 25, 2020, 8:56 PM IST

पानीपत इंडस्ट्रियल एरिया स्थित कई फैक्ट्रियों में मजदूरों की हालत बेहद खराब हो चुकी है. लॉकडाउन के कारण उनकी आर्थिक स्थिति पर गहरा असर पड़ा है. हालात ये हैं कि अब ये मजदूर भी पलायन करने की सोच रहे हैं. वहीं अब लॉकडाउन में मिली ढील से अभी इन्हें तो कोई खास फायदा होता दिख नहीं रहा है.

labours are facing financial crisis during lockdown in panipat
labours are facing financial crisis during lockdown in panipat

पानीपत: कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन में सबसे ज्यादा मुसीबत मजदूर वर्ग ने झेली है. यही कारण रहा है कि लाखों की तादाद में मजदूरों ने पानीपत, फरीदाबाद और गुरुग्राम जैसे शहरों से पलायन किया. वहीं अब धीरे-धीरे सरकार ने लॉकडाउन में ढील तो दी, लेकिन उद्योग अभी भी पटरी पर वापस नहीं लौटे हैं. इसी को लेकर ईटीवी भारत हरियाणा की टीम ने पानीपत में टेक्सटाइल फैक्ट्रियों का दौरा किया और मजदूरों की मौजूदा हालत जानने की कोशिश की.

24 घंटे की जगह सिर्फ 12 घंटे चल रहे डाइंग हाउस

इन दिनों मजदूर लॉकडाउन के साथ सरकार के आदेशों की भी मार झेल रहे हैं. एक तरफ जहां कोरोना हर तरफ फैला हुआ है तो दूसरी ओर जल संरक्षण को लेकर संबंधित विभाग के अधिकारियों ने डाइंग हाउसों को सिर्फ 12 घंटे ही चलाने की अनुमति दी है. जिससे कंपनियों को कोस्ट काफी महंगी आती है. साथ ही साथ डाइंग हाउस बंद होने की कगार पर पहुंच गए हैं.

लॉकडाउन की मार झेल रहे पानीपत के ये मजदूर, देखें ग्राउंड रिपोर्ट

ईटीवी भारत के कैमरे पर डाइंग हाउस में काम कर रहे मजदूरों ने बताया कि कोरोना वायरस के कारण काम बिल्कुल ठप हो चुका है. रंग रोगन का काम बिल्कुल बंद पड़ चुका है. उन्होंने ये भी बताया कि जिला प्रसास ने काफी संख्या में ब्लीच हाउसों को बंद करवा दिया है. ऐसे में मजदूरों के पास पलायन के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचता है.

प्रशासन की पाबंदियों से परेशान लेबर

मजदूर ब्रिजेश कुमार और अमित ने बताया कि लॉकडाउन में प्रशासन ने डाइंस हाउस पर काफी तरह की पाबंदियां लगा रखी हैं. यही कारण है कि मजदूरों के पालन पोषण पर इसका गहरा असर पड़ रहा है. पानीपत की ओम एंटरप्राइज में काम कर रहे मजदूरों को अब अपने मालिक का ही सहारा है.

इन मजदूरों का कहना है कि फैक्ट्री तो लगभग बंद ही पड़ी है. कहीं हफ्तेभर में कोई एक काम आता है, इसलिए मालिक के पास भी तनख्वाह देने के पैसे नहीं है. मजदूरों ने बताया कि मालिक सैलरी तो नहीं दे रहे, लेकिन खर्चे-पानी के पैसे दे रहे हैं, ताकि हमें पलायन करने की जरूरत महसूस ना हो. उन्होंने कहा कि अब वो इसी इंतजार में हैं कि कब पहली की तरह फैक्ट्री दोबारा से शुरू हो और उनका जीवन दोबारा से पटरी पर लौट सके.

ये भी पढ़ें- लॉकडाउन के चलते आर्थिक संकट में कुम्हार, हालात देखकर पसीज जाएगा दिल

पानीपत: कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन में सबसे ज्यादा मुसीबत मजदूर वर्ग ने झेली है. यही कारण रहा है कि लाखों की तादाद में मजदूरों ने पानीपत, फरीदाबाद और गुरुग्राम जैसे शहरों से पलायन किया. वहीं अब धीरे-धीरे सरकार ने लॉकडाउन में ढील तो दी, लेकिन उद्योग अभी भी पटरी पर वापस नहीं लौटे हैं. इसी को लेकर ईटीवी भारत हरियाणा की टीम ने पानीपत में टेक्सटाइल फैक्ट्रियों का दौरा किया और मजदूरों की मौजूदा हालत जानने की कोशिश की.

24 घंटे की जगह सिर्फ 12 घंटे चल रहे डाइंग हाउस

इन दिनों मजदूर लॉकडाउन के साथ सरकार के आदेशों की भी मार झेल रहे हैं. एक तरफ जहां कोरोना हर तरफ फैला हुआ है तो दूसरी ओर जल संरक्षण को लेकर संबंधित विभाग के अधिकारियों ने डाइंग हाउसों को सिर्फ 12 घंटे ही चलाने की अनुमति दी है. जिससे कंपनियों को कोस्ट काफी महंगी आती है. साथ ही साथ डाइंग हाउस बंद होने की कगार पर पहुंच गए हैं.

लॉकडाउन की मार झेल रहे पानीपत के ये मजदूर, देखें ग्राउंड रिपोर्ट

ईटीवी भारत के कैमरे पर डाइंग हाउस में काम कर रहे मजदूरों ने बताया कि कोरोना वायरस के कारण काम बिल्कुल ठप हो चुका है. रंग रोगन का काम बिल्कुल बंद पड़ चुका है. उन्होंने ये भी बताया कि जिला प्रसास ने काफी संख्या में ब्लीच हाउसों को बंद करवा दिया है. ऐसे में मजदूरों के पास पलायन के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचता है.

प्रशासन की पाबंदियों से परेशान लेबर

मजदूर ब्रिजेश कुमार और अमित ने बताया कि लॉकडाउन में प्रशासन ने डाइंस हाउस पर काफी तरह की पाबंदियां लगा रखी हैं. यही कारण है कि मजदूरों के पालन पोषण पर इसका गहरा असर पड़ रहा है. पानीपत की ओम एंटरप्राइज में काम कर रहे मजदूरों को अब अपने मालिक का ही सहारा है.

इन मजदूरों का कहना है कि फैक्ट्री तो लगभग बंद ही पड़ी है. कहीं हफ्तेभर में कोई एक काम आता है, इसलिए मालिक के पास भी तनख्वाह देने के पैसे नहीं है. मजदूरों ने बताया कि मालिक सैलरी तो नहीं दे रहे, लेकिन खर्चे-पानी के पैसे दे रहे हैं, ताकि हमें पलायन करने की जरूरत महसूस ना हो. उन्होंने कहा कि अब वो इसी इंतजार में हैं कि कब पहली की तरह फैक्ट्री दोबारा से शुरू हो और उनका जीवन दोबारा से पटरी पर लौट सके.

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