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पानीपत में शौर्य दिवस पर बोले राज्यपाल, काला आम स्मारक को महाराष्ट्र और हरियाणा सरकार मिलकर करें विकसित

पानीपत के काला आम स्मारक स्थल (kala amb in panipat) पर तीसरे युद्ध में मारे गए मराठों की याद में शनिवार को शौर्य दिवस मनाया गया. इस कार्यक्रम में भारी संख्या में महाराष्ट्र से भी लोग पहुंचे थे. कार्यक्रम में महाराष्ट्र की संस्कृति की झलक और पराक्रम देखने को मिला.

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पानीपत में शौर्य दिवस पर बोले राज्यपाल, कहा- काला आम स्मारक को महाराष्ट्र और हरियाणा सरकार मिलकर करें विकसित
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Published : Jan 14, 2023, 7:54 PM IST

काला आम स्मारक स्थल पर मराठों की याद में शौर्य दिवस मनाया गया.

पानीपत: जिले के काला आम स्मारक स्थल (kala amb panipat history) को हरियाणा और महाराष्ट्र सरकारों को मिलकर भव्य बनाना चाहिए, दोनों सरकारों को इस दिशा में कदम उठाने चाहिए, प्रदेश के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने शनिवार को काला अंब टूरिस्ट कॉम्प्लेक्स (kala amb haryana) में आयोजित मराठा शौर्य दिवस के दौरान यह बात कही. इस दौरान उन्होंने मराठों की गौरव गाथा के बारे में बताया.

राज्यपाल ने कहा कि वह खुद महाराष्ट्र जाएंगे और महाराष्ट्र सरकार से इस संबंध में अनुरोध करेंगे. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रदेश के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय थे, इस दौरान उन्होंने शहीद हुए शौर्य वीरों को श्रद्धांजलि भी दी. कार्यक्रम में हरियाणा के डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला, राज्यसभा सांसद कृष्ण लाल पंवार, लोकसभा सांसद संजय भाटिया और महाराष्ट्र सरकार के शिक्षा मंत्री पहुंचे थे.

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कार्यक्रम में महाराष्ट्र की संस्कृति की झलक और पराक्रम देखने को मिला.

पानीपत में अहमद शाह अब्दाली और सदाशिव भाऊ के बीच लड़े गए तीसरे युद्ध का गवाह है काला आम. इस पर्यटक स्थल का काला आम नाम क्यों पड़ा ? इसके बारे में हम आपको विस्तार से बताते हैं. काला अंब स्मारक उन मराठों की याद में बनवाया गया था, जिन्होंने 14 जनवरी 1761 में अहमद शाह अब्दाली के साथ पानीपत की तीसरी लड़ाई लड़ी थी. मराठा सेनाओं का नेतृत्व सदाशिवराव भाऊ, विश्वासराव और महादाजी शिंदे ने किया था. जिस जगह यह लड़ाई लड़ी गई थी, ठीक उसी जगह पर एक बड़ा विशाल आम का पेड़ हुआ करता था.

पढ़ें: इनेलो नेता अर्जुन चौटाला ने INLD YOUTH एप किया लॉन्च, 25 रुपये रखी मेंबरशिप फीस

इस युद्ध में लगभग तीस हजार के करीब सैनिक मारे गए थे. इन तीस हजार सैनिकों का जो खून बहा, वह आम के पेड़ के नीचे आकर इकट्ठा हो गया था. जब सीजन में उस आम के वृक्ष पर फल लगे, तो वह भी काले रंग के ही थे. जब यह विशालकाय पेड़ सूख गया, तो इसकी लकड़ी भी काले रंग की थी. जिससे दो बड़े दरवाजे बनाए गए थे. एक दरवाजा पानीपत के म्यूजियम में और दूसरा करनाल के म्यूजियम में रखा गया है. एक तरह से यह युद्धों की यादगार बन गया था.

पढ़ें: राहुल गांधी को भारत जोड़ो नहीं, कांग्रेस जोड़ो यात्रा करनी चाहिए- कंवरपाल गुर्जर

काला आम स्मारक स्थल पर मराठों की याद में शौर्य दिवस मनाया गया.

पानीपत: जिले के काला आम स्मारक स्थल (kala amb panipat history) को हरियाणा और महाराष्ट्र सरकारों को मिलकर भव्य बनाना चाहिए, दोनों सरकारों को इस दिशा में कदम उठाने चाहिए, प्रदेश के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने शनिवार को काला अंब टूरिस्ट कॉम्प्लेक्स (kala amb haryana) में आयोजित मराठा शौर्य दिवस के दौरान यह बात कही. इस दौरान उन्होंने मराठों की गौरव गाथा के बारे में बताया.

राज्यपाल ने कहा कि वह खुद महाराष्ट्र जाएंगे और महाराष्ट्र सरकार से इस संबंध में अनुरोध करेंगे. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रदेश के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय थे, इस दौरान उन्होंने शहीद हुए शौर्य वीरों को श्रद्धांजलि भी दी. कार्यक्रम में हरियाणा के डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला, राज्यसभा सांसद कृष्ण लाल पंवार, लोकसभा सांसद संजय भाटिया और महाराष्ट्र सरकार के शिक्षा मंत्री पहुंचे थे.

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कार्यक्रम में महाराष्ट्र की संस्कृति की झलक और पराक्रम देखने को मिला.

पानीपत में अहमद शाह अब्दाली और सदाशिव भाऊ के बीच लड़े गए तीसरे युद्ध का गवाह है काला आम. इस पर्यटक स्थल का काला आम नाम क्यों पड़ा ? इसके बारे में हम आपको विस्तार से बताते हैं. काला अंब स्मारक उन मराठों की याद में बनवाया गया था, जिन्होंने 14 जनवरी 1761 में अहमद शाह अब्दाली के साथ पानीपत की तीसरी लड़ाई लड़ी थी. मराठा सेनाओं का नेतृत्व सदाशिवराव भाऊ, विश्वासराव और महादाजी शिंदे ने किया था. जिस जगह यह लड़ाई लड़ी गई थी, ठीक उसी जगह पर एक बड़ा विशाल आम का पेड़ हुआ करता था.

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इस युद्ध में लगभग तीस हजार के करीब सैनिक मारे गए थे. इन तीस हजार सैनिकों का जो खून बहा, वह आम के पेड़ के नीचे आकर इकट्ठा हो गया था. जब सीजन में उस आम के वृक्ष पर फल लगे, तो वह भी काले रंग के ही थे. जब यह विशालकाय पेड़ सूख गया, तो इसकी लकड़ी भी काले रंग की थी. जिससे दो बड़े दरवाजे बनाए गए थे. एक दरवाजा पानीपत के म्यूजियम में और दूसरा करनाल के म्यूजियम में रखा गया है. एक तरह से यह युद्धों की यादगार बन गया था.

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