पानीपत: इंसानियत की मिसाल पेश करने वाले लोगों की इस दुनिया में कमी नहीं, कोई भूखे को खाना देता है. कोई मरीज का इलाज करता है तो कोई गरीब को शिक्षा, लेकिन आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो हमेशा ऊपर वाले को कोसते रहते हैं कि उन्हें उसने कुछ नहीं दिया. वो गरीब हैं खुद के लिए गुजर-बसर भारी पड़ रहा है तो दूसरों का क्या भला करें. ऐसा ही सोचने वाले लोगों के लिए पानीपत का ललवा एक शानदार जवाब है. गरीबी को झेलते हुए भी ललवा वो काम करता है जो इंसानियत के लिए गजब मिसाल है.
एक आम इंसान किसी मृत व्यक्ति को ही देख ले तो सहम जाता है. दिमाग ने ना जाने कैसे ख्याल आते हैं. ऐसा स्वभाविक भी है मौत का खौफ किसी भी परेशान कर सकता है. जरा सोचिए किसी दुर्घटना में वो मौत हुई हो तो और भी भयानक स्थिति होती है. देश में रेल से मरने वालों की खबरें अब आम हो गई है.
कोई दुर्घटना में जान गवां देता है कोई अपनी जीवनलीला समाप्त करने ट्रैक पर पहुंच जाता है. ऐसे में मर गय शख्स के बॉडी की क्या दशा होती है कल्पना करना भी बेहद दर्दनाक होता है, लेकिन ललवा में इन शवों को देखकर इंसानियत जाग उठती है.
'अधिकारी फोन करते हैं, ललवा लाश उठाकर चल पड़ता है'
ललवा उन टूकड़े हुए कटे हुए लावारिस लाश को उठा कर पोस्टमार्टम के लिए मुर्दाघर तक पहुंचाता है. एक सधारण ऑटो चालक है. जो मुश्किल से अपने परिवार का पेट पालता है, लेकिन किसी भी वक्त उसे इस काम के लिए बुलाया जाता है तो वो वक्त की परवाह किए बगैर ऑटो लेकर चल पड़ता है. बस अधिकारी फोन करते हैं और ललवा हाजिर हो जाता है. वो 16 साल की उम्र से ही लवारिस लाशों को उठा कर अस्पताल पहुंचाता है. जिनकी शिनाख्त नहीं हो पाती उनका अंतिम संस्कार करता है.
ललवा को ये काम करते हुए 20 साल हो गए हैं. पानीपत जिले में घरौंडा से लेकर समालखा, इसराना, मतलोड़ा तक ललवा को मृत शरीर को उठाने के लिए बुलाया जाता है. शुक्रवार देर रात को भी ललवा ने घरोंडा जाकर रेलवे स्टेशन से एक मृत व्यक्ति शरीर को उठा कर अस्पताल पहुंचाया. लोगों का कहना है कि उसके कर्मों की फल उसके बच्चों को मिलने वाली है आज उसके बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ लिख रहे हैं.
क्या कहना है ललवा की पत्नी का
वहीं ललवा की पत्नी का कहना है कि, ''बच्चे तो डरते हैं देर रात को जब वो जाते हैं, लेकिन मुझे अच्छा लगता है कि मेरे पति काम कर रहे हैं. मैंने कभी उन्हें इस काम को मना करने के लिए नहीं रोका.''
वहीं पुलिस अधिकारी सुरेंद्र सिंह का भी कहना है कि, ''पिछले 20 सालों से काम कर रहा है और जिस धर्म के कार्य में लगा हुआ है. निश्चित रूप से उसका उसके कर्मों का फल उसके परिवार को मिलेगा. मृत व्यक्ति की हालत कैसी भी हो ललवा उसे कपड़े में डालता है और उसको लेकर पानीपत के सिविल हॉस्पिटल चल पड़ता है. पहले उसे कुछ कमाई नहीं होती थी, लेकिन अब पुलिस भी उस के इस काम की एवज में 200 और 300 रूपये देती है जिससे उसके आने जाने का खर्चा चलता है.