पानीपत: जिले की बुअली कलंदर शाह के आसताने में ईद पर हजारों की तादाद में जायरीन नमाज अता करने के लिए आते थे. जुम्मे के दिन की ये स्पेशल कव्वाली यहां की खास विशेषता है. ईद पर पहले यहां के बाजार और ये दरगाह दुल्हन की तरफ सजती थी. ये अब गुजरे जमाने की बात सी लगने लगी है. कोविड-19 और लॉकडाउन की वजह से सब कुछ बदल गया है. शादी हो या त्योहार सब घर के अंदर ही सिमट कर रह गया है. अब तो ईद पर भी लोग घरों में ही रहकर नमाज अदा कर रहे हैं.
पानीपत की बुअली कलंदर शाह दरगाह अब लॉकडाउन की वजह से बंद है. जिसकी वजह से यहां सन्नाटा पसरा है. गलियां और बाजार सुनसान पड़े हैं. पहले यहां ईद के त्योहार पर विदेशों से भी लोग नमाज पढ़ने आते थे. करीब 700 साल पुरानी दरगाह की विशेष मान्यता है कि ये अजमेर शरीफ और हजरत निजामुद्दीन की तरह सम्मानित है.
यहां बड़ी संख्या में लोग मन्नत मांगने आते हैं और दरगाह के बगल में एक ताला लगा जाते हैं. सालाना उर्स मुबारक पर यहां खास जलसा होता है. उस मौके पर दुनियाभर से उनके अनुयायी आते हैं. इस मकबरे के मुख्य दरवाजे की दाहिनी तरफ प्रसिद्ध उर्दू शायर ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाली पानीपती की कब्र भी है..अब कोरोना महामारी की वजह से से दरगाह बंद पड़ी है.
इस स्तर की पूरी दुनिया मे सिर्फ ढाई दरगाह हैं. पहली पानीपत में बू अली शाह, दूसरी पाकिस्तान में और तीसरी इराक के बसरा में स्थित है. क्योंकि बसरा की दरगाह महिला सूफी की हैं, इसलिए इसे आधा का दर्जा दिया है. लोगों की मान्यता है कि इस दरगाह से कोई खाली हाथ नहीं जाता. फिलहाल तो लोग घर में ही रहकर नमाज अदा कर रहे हैं. कोरोना महामारी की वजह लोग सोशल डिस्टेंस की ज्यादा तवज्जों दे रहे हैं. जिसकी वजह से बाजारों से रौनक खत्म हो गई है. चारों तरफ सन्नाटा पसरा है.
दरगाह में मौजूद हैं जिन्नातों के लगाए पत्थर
पानीपत की इस दरगाह पर आज भी जिन्नातों द्वारा लगाए गए नायाब पत्थर यहां मौजूद हैं. आपको बता दें कि यहां मौसम बताने वाले पत्थर और सोने की जांच करने वाले कसौटी पत्थर और जहर मोहरा नाम के पत्थर की आंख लगे हैं. जहर मोहरा पत्थर अगर कोई विषैला सांप या कोई भी विषैला जीव इंसान को काट ले तो यह पत्थर सारा जहर इंसान के जिस्म से निकाल लेते हैं.
कहा जाता है कि जब जिन्न इस इमारत को रात में बना रहे थे और इमारत लगभग बनकर तैयार होने वाली थी तो सुबह उठकर शहर की किसी महिला ने हाथ से आटा पीसने वाली चक्की को चलाया. उस महिला की चक्की की आवाज सुनकर जिन्न अपना काम अधूरा छोड़ कर चले गए थे.
कौन थे बु अली शाह कलंदर ?
कलंदर शाह का जन्म पानीपत में ही हुआ था और उनके माता-पिता इराक के रहने वाले थे इनकी तालीम पानीपत से ही हो और करीब साढे 700 साल पहले दिल्ली के सुप्रीम कोर्ट में एक जज के तौर पर भी रहे. कलंदर शाह के पिता शेख फखरुद्दीन अपने समय के महान संत और विद्वान थे. इनकी मां हाफिजा जमाल भी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं. कलंदर शाह के जन्मस्थान को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं. कुछ लोगों का मानना है कि उनका जन्म तुर्की में हुआ, जबकि कई लोग अजरबैजान बताते हैं.
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ज्यादातर लोगों के मुताबिक, पानीपत ही उनकी जन्मस्थली है. कलंदर शाह दरगाह के मुफ्ती सैय्यद एजाज अहमद हाशमी बताते हैं कि शेख फखरुद्दीन और हाफिजा जमाल इराक से भारत आए थे. यमुना नदी के किनारे स्थित पानीपत की धरती उन्हें बहुत पसंद आई और दोनों यहीं बस गए. कलंदर शाह की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा पानीपत में हुई. कुछ दिन बाद वे दिल्ली चले गए और कुतुबमीनार के पास रहने लगे.
दिल्ली से शोहरत की खुशबू फैली थी
उस समय दिल्ली के शासकों की अदालत कुतुबमीनार के पास लगती थी. कलंदर शाह उसकी मशविरा कमेटी में प्रमुख थे. इस्लामी कानून पर लिखी उनकी किताबें आज भी इंडोनेशिया, मलेशिया व अन्य मुस्लिम देशों में पढ़ाई जाती हैं. वे सूफी संत ख्वाजा कुतुबद्दीन बख्तियार काकी के शिष्य थे. उन्हें नूमान इब्न सबित और प्रसिद्ध विद्वान इमाम अबू हनीफा का वंशज माना जाता है. उन्होंने पारसी काव्य संग्रह भी लिखा, जिसका नाम दीवान ए हजरत शरफुद्दीन बू अली शाह कलंदर है.
बाद में वह अली कलंदर अल्लहा की ईबादत करने लगे. इन्होंने करनाल जिले में यमुना नदी के अंदर खड़े होकर खुदा की इबादात की. यमुना नदी में खुदा की इबादत करते लगभग 26 साल बीत जाने के बाद शरीर का अधिकांश हिस्सा मछलियों ने खा लिया गया था. इनको अली की बू मिलने के बाद कुछ समय बाद ही इनका देहांत हो गया था. 1190 ई. में कलंदर शाह का जन्म हुआ और 122 साल की उम्र में 1312 ई. में उनका इंतकाल हो गया. आपको बता दें कि मरने से पूर्व भी उन्होंने कहा था कि इनको पानीपत में ही दफनाया जाए.