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चाइनीज लाइटों के आगे फीकी पड़ी दीपोत्सव पर दीपक की लौ

आने वाले 27 अक्टूबर यानी रविवार को दीपावली मनाई जाएगी. लेकिन दीपों की जगह चाइनीज रंग बिरंगी चमकीली लाइटों ने ले ली है, जिसके चलते मिट्टी के दीपक बनाने वाले लोगों के चहरों से पर इस बार भी उदासी दूर नहीं हो पाई है.

चाइनीज लाइटों के आगे फीकी पड़ी दीपोंत्सव पर दीपक की लो
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Published : Oct 25, 2019, 7:53 PM IST

पानीपत: दीपावली के कुछ ही दिन ही बाकी रह गए हैं, ऐसे में लोग दीपावली की तैयारियों में पूरे जोर शोर से लगे हुए हैं. दीपावली पर घरों को सजाने के लिए झालरों, मोमबत्तियों समेत अलग-अलग तरह की सजावट के समानों की बिक्री तेज हो चुकी है, वहीं दीपावली में इस बार मिट्टी के बने दीपकों की मांग कम है. लेकिन भारतीय संस्कृति के अनुसार दीपावली पर दीपक जलाने का महत्व होता और दीपावली को दीपोत्सव भी कहा जाता है.

सज गए बाजार
दीपावली को लेकर बाजारों में रौनक दिखने लगी है. बाजार में चाइनीज लाइट और चाइनीज मोमबत्तियों और कलर फुल मोमबत्तियों की डिमांड ज्यादा है और डिमांड के अनुसार बाजार सजकर तैयार हो गए हैं.

काम ना आई सोशल मीडिया पर अपील
मिट्टी के दीपक बनाने वाले लोगों के लिए लोगों सोशल मीडिया पर भी कई प्रकार की अपील की जा रही हैं. लेकिन लोगों की बदलती मानसिकता पर इन अपीलों का भी कई असर देखने को नहीं मिल रहा है. वहीं मिट्टी के बर्तन और दीपक बेचने वाली महिला का कहना है कि पिछले बार की अपेक्षा इस बार बाजार में मिट्टी के दीपक खरीदने वालों की संख्या कम है.

चाइनीज लाइटों के आगे फीकी पड़ी दीपोंत्सव पर दीपक की लो

दीपोत्सव की जगह लाइटोत्सव
दीपावली पर मिट्टी के दीए जलाने के पीछे मान्यता है कि जब भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास से वापस लौटे थे, तब उनके स्वागत में अयोध्या वासियों ने अपने घरों में घी के दिए जलाए थे. तब से लेकर आज तक भारतीय प्रतिवर्ष अमावस्या की रात को यह प्रकाश पर्व हर्ष और उल्लास के साथ मनाता है. यही कारण है कि सदियां बीत जाने के बाद भी परंपराएं खत्म नहीं हुई है. हालांकि, इनमें समय के साथ कई बदलाव आए हैं, लेकिन आज भी दीपावली के अवसर पर मिट्टी से बने दीपों को जलाकर रोशनी की जाती है. भले ही फिर इन मिट्टी के दीपों की जगह चाइनीज लाइटों ने ले ली हो.


ये भी पढ़ें:धनतेरस पर बाजारों में बढ़ी रौनक, सोने-चांदी से सजे बाजार

पानीपत: दीपावली के कुछ ही दिन ही बाकी रह गए हैं, ऐसे में लोग दीपावली की तैयारियों में पूरे जोर शोर से लगे हुए हैं. दीपावली पर घरों को सजाने के लिए झालरों, मोमबत्तियों समेत अलग-अलग तरह की सजावट के समानों की बिक्री तेज हो चुकी है, वहीं दीपावली में इस बार मिट्टी के बने दीपकों की मांग कम है. लेकिन भारतीय संस्कृति के अनुसार दीपावली पर दीपक जलाने का महत्व होता और दीपावली को दीपोत्सव भी कहा जाता है.

सज गए बाजार
दीपावली को लेकर बाजारों में रौनक दिखने लगी है. बाजार में चाइनीज लाइट और चाइनीज मोमबत्तियों और कलर फुल मोमबत्तियों की डिमांड ज्यादा है और डिमांड के अनुसार बाजार सजकर तैयार हो गए हैं.

काम ना आई सोशल मीडिया पर अपील
मिट्टी के दीपक बनाने वाले लोगों के लिए लोगों सोशल मीडिया पर भी कई प्रकार की अपील की जा रही हैं. लेकिन लोगों की बदलती मानसिकता पर इन अपीलों का भी कई असर देखने को नहीं मिल रहा है. वहीं मिट्टी के बर्तन और दीपक बेचने वाली महिला का कहना है कि पिछले बार की अपेक्षा इस बार बाजार में मिट्टी के दीपक खरीदने वालों की संख्या कम है.

चाइनीज लाइटों के आगे फीकी पड़ी दीपोंत्सव पर दीपक की लो

दीपोत्सव की जगह लाइटोत्सव
दीपावली पर मिट्टी के दीए जलाने के पीछे मान्यता है कि जब भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास से वापस लौटे थे, तब उनके स्वागत में अयोध्या वासियों ने अपने घरों में घी के दिए जलाए थे. तब से लेकर आज तक भारतीय प्रतिवर्ष अमावस्या की रात को यह प्रकाश पर्व हर्ष और उल्लास के साथ मनाता है. यही कारण है कि सदियां बीत जाने के बाद भी परंपराएं खत्म नहीं हुई है. हालांकि, इनमें समय के साथ कई बदलाव आए हैं, लेकिन आज भी दीपावली के अवसर पर मिट्टी से बने दीपों को जलाकर रोशनी की जाती है. भले ही फिर इन मिट्टी के दीपों की जगह चाइनीज लाइटों ने ले ली हो.


ये भी पढ़ें:धनतेरस पर बाजारों में बढ़ी रौनक, सोने-चांदी से सजे बाजार

Intro:

एंकर --- हिंदुस्तान के महत्वपूर्ण त्यौहार दीपावली पर चायनीज लाइट ने
की दीपो की रौनक कम ,बाजारों में नजर आ रही चायनीज लाइटों की लहर
,स्थानीय दीपक निर्माताओ में छायी मयूषी ,नहीं मिलेगी वातावरण में देशी
घी से महकाने वाली खुसबू ,

Body:वीओ -- रामायण के समय से शुरू राम के आगमन पर मनाई गयी दीपो की दीपावली
पर अब आधुनिक हो रहे समाज की मार साफ नजर आ रही हे बाजारों में भी
चायनीज लाइटों की भरमार हे,लेकिन एक समय था जब दीपावली के दिन ख़ुशी में
लोग घरो में देशी घी के दीपक जलाते थे ,लेकिन आज के इस आधुनिक दौर में
बिजली से जगमग करने वाली सामग्री बाजार में मौजूद हे ,वंही मिटी के दीपक
बनाकर बाजार में बेचने वालो का कहना हे की समय के साथ माहोल भी बदल रहा
हे दूसरी और अपनी रोजी रोटी के लिए साल भर मिटी के बर्तन बनाकर बेचकर
अपना गुजर करते थे लेकिन आज समय की मार के साथ उन्हें बर्तन बनाने के लिए
मिटी भी नहीं मिल पा रही हे जिसके चलते लोग चायनीज लाइट खरीदने पर मजबूर
हे

Conclusion:बाइट -- शकुंतला , बर्तन निर्माता
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