पानीपत: दीपावली के कुछ ही दिन ही बाकी रह गए हैं, ऐसे में लोग दीपावली की तैयारियों में पूरे जोर शोर से लगे हुए हैं. दीपावली पर घरों को सजाने के लिए झालरों, मोमबत्तियों समेत अलग-अलग तरह की सजावट के समानों की बिक्री तेज हो चुकी है, वहीं दीपावली में इस बार मिट्टी के बने दीपकों की मांग कम है. लेकिन भारतीय संस्कृति के अनुसार दीपावली पर दीपक जलाने का महत्व होता और दीपावली को दीपोत्सव भी कहा जाता है.
सज गए बाजार
दीपावली को लेकर बाजारों में रौनक दिखने लगी है. बाजार में चाइनीज लाइट और चाइनीज मोमबत्तियों और कलर फुल मोमबत्तियों की डिमांड ज्यादा है और डिमांड के अनुसार बाजार सजकर तैयार हो गए हैं.
काम ना आई सोशल मीडिया पर अपील
मिट्टी के दीपक बनाने वाले लोगों के लिए लोगों सोशल मीडिया पर भी कई प्रकार की अपील की जा रही हैं. लेकिन लोगों की बदलती मानसिकता पर इन अपीलों का भी कई असर देखने को नहीं मिल रहा है. वहीं मिट्टी के बर्तन और दीपक बेचने वाली महिला का कहना है कि पिछले बार की अपेक्षा इस बार बाजार में मिट्टी के दीपक खरीदने वालों की संख्या कम है.
दीपोत्सव की जगह लाइटोत्सव
दीपावली पर मिट्टी के दीए जलाने के पीछे मान्यता है कि जब भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास से वापस लौटे थे, तब उनके स्वागत में अयोध्या वासियों ने अपने घरों में घी के दिए जलाए थे. तब से लेकर आज तक भारतीय प्रतिवर्ष अमावस्या की रात को यह प्रकाश पर्व हर्ष और उल्लास के साथ मनाता है. यही कारण है कि सदियां बीत जाने के बाद भी परंपराएं खत्म नहीं हुई है. हालांकि, इनमें समय के साथ कई बदलाव आए हैं, लेकिन आज भी दीपावली के अवसर पर मिट्टी से बने दीपों को जलाकर रोशनी की जाती है. भले ही फिर इन मिट्टी के दीपों की जगह चाइनीज लाइटों ने ले ली हो.
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