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नशे की लत में बर्बाद हो रहा बचपन, प्रशासन नाक के नीचे बिक रहे प्रतिबंधित पदार्थ - हरियाणा की सड़कों पर नशा बिक्री

Children Drugs Addiction: अक्सर युवाओं में बढ़ती नशे की लत की बातों पर चर्चा होती रही है, लेकिन क्या आपको पता है, सड़कों पर भीख मांगने वाले और कूड़ा बीनने वाले ज्यादातर बच्चें नशे का शिकार हो चुके हैं. सस्ता नशा करने वाले ये बच्चे आए दिन सड़कों पर मदहोशी में मिल जाते हैं, अगर ऐसा ही चलता रहा तो ये अनदेखी भविष्य को बर्बाद करने वाली है.

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जिम्मेदार कौन? नशे की लत में बर्बाद हो रहा बचपन
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Published : Sep 24, 2021, 7:51 PM IST

पानीपत: ये सच है कि बचपन अच्छाई बुराई और जीवन के उतार चढ़ाव से परे होता है. बचपन जिंदगी का सबसे सुनहरा वक्त होता है, लेकिन ये बच्चों को देख कर आपका बातों से भरोसा ऊठ जाएगा, जिस उम्र में बच्चों के हाथ में खिलौने और कलम होनी चाहिए, उस उम्र में इन बच्चों के हाथ में नशा है. 5 से 10 साल की जिस उम्र में बच्चे कल्पनाओं को संजोते हैं. उस उम्र में ये नशे के आवेश में है.

ये बच्चे पानीपत शहर में पूरा दिन बाजार में भीख मांगते हैं, कूड़ा बीनते हैं. जिससे नशे लायक पैसे का जुगाड़ हो सके. बड़ी बात ये है कि ये नशा काफी सस्ता और आसानी से मिल जाता है. ये बच्चे टायर पंक्चर में इस्तेमाल होने वाली ट्यूब का इस्तेमाल नशे के लिए करते हैं. इसे पॉलिथीन में डाल कर रगड़ते हैं और एक सांस में सूंधकर मदहोश हो जाते हैं. इनकी जिंदगी बस ऐसे सुबह-शाम नशे में बर्बाद हो रही है. जिसकी न किसी को फिक्र है न गरज.

नशे की लत में बर्बाद हो रहा बचपन, देखिए वीडियो

बड़ी बात यह है कि हरियाणा में इन ट्यूब्स को बेचने पर प्रतिबंध है. सीडब्ल्यूसी और डीसीडब्ल्यू यह सभी बाल हित के लिए बनाई गई संस्थाएं हैं जो ऐसे बच्चों को रेस्क्यू कर उनकी काउंसलिंग करती है, लेकिन इन संस्थाओं का ध्यान सिर्फ चाइल्ड लेबर की ओर है. चौक-चौराहे पर भीख मांगते बच्चे सभी को नजर आते हैं, लेकिन इनकी और कोई ध्यान नहीं देता. शहर में ज्यादातर बच्चे नशे का शिकार हो चुके हैं और जो बचे हैं इन्हें देख कर वो भी नशा करने की सोचते हैं.

ये पढ़ें- नशे में 'उड़ता बचपन', बच्चों की ऐसी नशे की लत देख दंग रह जाएंगे आप

शहर में कुछ समाजिक संस्थाएं कभी-कभी अभियान चलाकर इन बच्चों को शेल्टर होम भेजवाने की कोशिश करती हैं. समाजसेवी सविता आर्य का कहना है कि समाजिक लोग तो समाज के लिए काम करते हैं, लेकिन असली दायित्व तो प्रशासन का होता है. जिसे उन्हें इमानदारी से निभाना चाहिए ताकि एक भी बचपन बेकार ना जाए.

क्या कहते हैं डॉक्टर: डॉक्टर नारायण डबास का कहना है कि केमिकल को सूंघने से सोचने समझने की क्षमता बिल्कुल ना के बराबर हो जाती है. आंत का सिकुड़ना धीरे-धीरे शुरू होता है और उसके बाद सीधा इफेक्ट इसका लीवर पर होता है. उन्होंने कहा कि नशे से भूख लगना कम हो जाता है और अगर लगातार इसका सेवन किया जाए मौत भी हो सकती है.

ये पढे़ं- करनाल में भीख मांगता बचपन, सीडब्ल्यूसी ने 15 बच्चे किए रेस्क्यू

हरियाणा में हर साल बड़ी तादात में बच्चे नशे की गर्क में डूब रहे हैं. ज्यादातर बच्चे सड़कों पर रहने वाले हैं, जिन्हें सही और गलत बताने वाला कोई नहीं होता. ऐसे में मुमकिन होता है कि ये बच्चें अपने नशे की लत को पूरा करने के लिए गलत रास्ते पर निकल पड़ते हैं और अपराधिक प्रवृति के हो जाते हैं, ऐसें जरूरी हो जाता है कि समय रहते इन बच्चों का ध्यान रखा जाए, ताकि देश का भविष्य सुरक्षित रह सके.

ये पढ़ें- किसान आंदोलन: जूठन में 'भविष्य' तलाशता बचपन

पानीपत: ये सच है कि बचपन अच्छाई बुराई और जीवन के उतार चढ़ाव से परे होता है. बचपन जिंदगी का सबसे सुनहरा वक्त होता है, लेकिन ये बच्चों को देख कर आपका बातों से भरोसा ऊठ जाएगा, जिस उम्र में बच्चों के हाथ में खिलौने और कलम होनी चाहिए, उस उम्र में इन बच्चों के हाथ में नशा है. 5 से 10 साल की जिस उम्र में बच्चे कल्पनाओं को संजोते हैं. उस उम्र में ये नशे के आवेश में है.

ये बच्चे पानीपत शहर में पूरा दिन बाजार में भीख मांगते हैं, कूड़ा बीनते हैं. जिससे नशे लायक पैसे का जुगाड़ हो सके. बड़ी बात ये है कि ये नशा काफी सस्ता और आसानी से मिल जाता है. ये बच्चे टायर पंक्चर में इस्तेमाल होने वाली ट्यूब का इस्तेमाल नशे के लिए करते हैं. इसे पॉलिथीन में डाल कर रगड़ते हैं और एक सांस में सूंधकर मदहोश हो जाते हैं. इनकी जिंदगी बस ऐसे सुबह-शाम नशे में बर्बाद हो रही है. जिसकी न किसी को फिक्र है न गरज.

नशे की लत में बर्बाद हो रहा बचपन, देखिए वीडियो

बड़ी बात यह है कि हरियाणा में इन ट्यूब्स को बेचने पर प्रतिबंध है. सीडब्ल्यूसी और डीसीडब्ल्यू यह सभी बाल हित के लिए बनाई गई संस्थाएं हैं जो ऐसे बच्चों को रेस्क्यू कर उनकी काउंसलिंग करती है, लेकिन इन संस्थाओं का ध्यान सिर्फ चाइल्ड लेबर की ओर है. चौक-चौराहे पर भीख मांगते बच्चे सभी को नजर आते हैं, लेकिन इनकी और कोई ध्यान नहीं देता. शहर में ज्यादातर बच्चे नशे का शिकार हो चुके हैं और जो बचे हैं इन्हें देख कर वो भी नशा करने की सोचते हैं.

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शहर में कुछ समाजिक संस्थाएं कभी-कभी अभियान चलाकर इन बच्चों को शेल्टर होम भेजवाने की कोशिश करती हैं. समाजसेवी सविता आर्य का कहना है कि समाजिक लोग तो समाज के लिए काम करते हैं, लेकिन असली दायित्व तो प्रशासन का होता है. जिसे उन्हें इमानदारी से निभाना चाहिए ताकि एक भी बचपन बेकार ना जाए.

क्या कहते हैं डॉक्टर: डॉक्टर नारायण डबास का कहना है कि केमिकल को सूंघने से सोचने समझने की क्षमता बिल्कुल ना के बराबर हो जाती है. आंत का सिकुड़ना धीरे-धीरे शुरू होता है और उसके बाद सीधा इफेक्ट इसका लीवर पर होता है. उन्होंने कहा कि नशे से भूख लगना कम हो जाता है और अगर लगातार इसका सेवन किया जाए मौत भी हो सकती है.

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हरियाणा में हर साल बड़ी तादात में बच्चे नशे की गर्क में डूब रहे हैं. ज्यादातर बच्चे सड़कों पर रहने वाले हैं, जिन्हें सही और गलत बताने वाला कोई नहीं होता. ऐसे में मुमकिन होता है कि ये बच्चें अपने नशे की लत को पूरा करने के लिए गलत रास्ते पर निकल पड़ते हैं और अपराधिक प्रवृति के हो जाते हैं, ऐसें जरूरी हो जाता है कि समय रहते इन बच्चों का ध्यान रखा जाए, ताकि देश का भविष्य सुरक्षित रह सके.

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