चंडीगढ़/पानीपत: पानीपत में हुए तीन युद्धों ने भारत की तकदीर लिखी. ईटीवी भारत की खास पेशकश युद्ध के पहले एपिसोड में हमने आपको बताया काबुल से आए जहीरउद्दान मोहम्मद बाबर ने कैसे इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली के तख्त पर कब्जा किया.
हमारी टीम ने पानीपत में युद्दों पर लंबे समय से स्टडी कर रहे इतिहासकार रमेश पुहाल और कुरुक्षेत्र संग्राहलय के इतिहसकार जितेन्द्र राणा से भी पानीपत के दूसरे युद्ध के बारे में जानकारी की. तो चलिए युद्ध की दूसरी कड़ी में पेश है पानीपत की दूसरी लड़ाई की कहानी.
पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी को पराजित कर खुद बाबर दिल्ली का सुल्तान बना. जब वो भारत में घुसा तो सिर्फ काबूल का शासक था, लेकिन पानीपत की लड़ाई के बाद मुगल वंश का विस्तार काबूल से भारत तक हो चुका था. उसने 1527 में खानवा 1528 मैं चंदेरी और 1529 में आगरा जीतकर खुद को सफल राजा बना दिया. उसने चार साल तक दिल्ली में राज भोगा और 1530 ई० में उसकी मृत्यु हो गई.
हुमायूं और शेरशाह में भी हुआ था घमासान युद्ध
बाबर की मौत के बाद उसका बेटा हुमायूं गद्दी पर बैठा. हुमायूं ने साल 1530 से 1540 तक दिल्ली की गद्दी पर राज किया, लेकिन 26 जून 1539 उत्तरी बिहार के चौसा में और 17 मई, 1540 ई. में बाबर को शेरशाह सूरी ने दो बार युद्ध में हराया और फिर खुद दिल्ली का शासक बन गया.
शेर शाह सूरी 1540 से 1545 तक गद्दी पर रहा और एक युद्द में तोप के गोले की चपेट में आने से मर गया शेर शाह सूरी के बाद उसका बेटा इस्लाम शाह दिल्ली का सुल्तान बना. उसने सात साल तक राज किया.
गद्दी की खातिर किया था अपनों का कत्ल
उसके बाद इस्लाम शाह के 12 साल के बेटे को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया गया, लेकिन साल 1553 में उसके चचेरे भाई आदिल शाह ने ही गद्दी के खातिर उसे मार दिया. आदिल शाह ने पूरा राज हथिया लिया, मगर वो इस राज काज को ज्यादा संभाल नहीं पाया.
1555 में हुमायूं की दिल्ली वापसी हुई
हुमायूं फिर लौटा और उसने दोबारा दिल्ली सल्तनत पर कब्जा जमा लिया, लेकिन वो भी ज्यादा दिन सत्ता भोग नहीं पाया. इतिहासकार कहते हैं कि 22 फरवरी 1555 को हुमायूं ने गद्दी संभाली और 27 जनवरी 1556 ई. को पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरने की वजह से उसकी मौत हो गई.
13 साल का अकबर बना दिल्ली का सुल्तान
जब हुमायूं की मौत हुई तो उस वक्त उसका बेटा अकबर महज 13 साल का था. इस नाजुक मौके पर हुमायूं के खास सिपहसलार उसके सेनापति बैरम खां ने काफी ईमानदारी दिखाई. बैरम खां ने 13 साल के अकबर को मुगल सम्राट बनाया और खुद उसका संरक्षक बना.
यहां से शुरू होता है इतिहास का अगला अध्याय. क्योंकि यहीं से तैयार होने लगी थी पानीपत की दूसरी लड़ाई की रणनीति. उस वक्त सूरी वंश बिखर चुका था. मुगल वंश के फिर प्रभाव में आने की वजह से सूरी छोटे-छोटे रियासतों तक सीमित रह गए. उधर शेर शाह सूरी का भतीजा आदिल दिल्ली की गद्दी हाथ से निकल जाने की वजह से तड़प रहा था.
यही वो समय था जब हेम चंद्र मौर्य ने इतिहास में अपने बलबूते अपना नाम दर्ज करवाना शुरू कर दिया था. पानीपत की दूसरी लड़ाई में अगर हेमू को हीरो कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.
कौन था हेमू ?
हेमू... हरियाणा के रेवाड़ी जिले का रहना वाला एक व्यवसायी था. जो नमक का कारोबार करता था. उस समय नमक बेचना इतनी आम बात नहीं थी. नमक बेचना किसी राज्य में अव्वल दर्जे का काम माना जाता था. इसकी डील सेना के जरिए हुआ करती थी.
बताया जाता है कि हेमू एक संपन्न व्यक्ति था. इसी वजह से वो शेरशाह सूरी का सबसे करीबी बन चुका था. यहां तक की सूरी ने उसे सेनापति का दर्जा तक दिया था, लेकिन सूरियों के किस्सों में उसे धोखेबाज भी बताया गया.
'विश्वासघात का भी लगा दाग'
कई इतिहासकारों का कहना है कि आदिल ने जब शेरशाह के आखिरी उत्तराधिकारी को मौत के घाट उतारा तो उस साजिश में हेमू का बड़ा रोल था. यही वजह थी कि वो आदिल का काफी करीबी बन चुका था. हेम चंद्र मौर्य पर आदिल आंख बंद कर विश्वास करता था.
22 युद्ध लड़े एक भी नहीं हारे हेम चंद्र मौर्य
हेमू आदिल का सबसे अहम सेनापति था. वो लगातार युद्धों पर जाने लगा था. उसकी युद्ध रणनीति कमाल की थी. वो एक के बाद एक 22 युद्धों को बिना हारे जीत चुका था. तमाम रियासतों में ये बात फैल गई थी कि कोई हेमू जो आदिल का सेनापति है वो इस धरती पर यमराज बन कर आया है. ईटीवी भारत का विशेष कार्यक्रम 'युद्ध' की इस एपिसोड में बस इतना ही, लेकिन अगले ऐपिसोड में हम बताएंगे कि कैसे हेमू के जहन में दिल्ली पर कब्जा करने का ख्याल आया और शुरू हुई युद्धों की ऐसी कड़ी जिसे जमाना सदियों तक याद रखने वाला था.
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