पंचकूला: जन्म के समय जिन बच्चों के होंठ और तालू कट जाते हैं उनके लिए सेक्टर-6 का नागरिक अस्पताल एक वरदान साबित हो रहा है. यहां हर साल ऐसे सैकड़ों बच्चों का इलाज किया जाता है जिनमें बचपन से ही नली दोष, फटे होंठ, क्लब फुट, हृदय रोग जैसी समस्याएं होती हैं.
इन बच्चों का इलाज राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत नि:शुल्क किया जाता है. नागरिक अस्पताल की सीएमओ डॉक्टर जसजीत कौर ने बताया कि ऐसे बच्चों के इलाज में आर्थोडॉटिक्स, प्लास्टिक सर्जन, डाईटीशियन, स्पीच थेरेपिस्ट मिलकर काम करते हैं. उन्होंने बताया कि नवजात बच्चों में दिल के छेद की बीमारी का इलाज पीजीआई चंडीगढ़ और फोर्टिस में किया जाता है.
हजार में से एक बच्चा लेता है जन्म
एक स्टडी के मुताबिक हजार बच्चों में एक बच्चा ऐसा जन्म लेता है, जो इन समस्याओं के साथ पैदा हो. ये फ्रीक्वेंसी पूरे वर्ल्ड में रिकॉर्ड की गई है. लड़कों में कटे होंठ और तालू के केस ज्यादा देखे जाते हैं. जिन बच्चों में ये समस्या आती है उन बच्चों का वजन ढाई से तीन किलो के बीच होता है. बता दें कि 2015 से 2020 तक डाउन सिंड्रोम के 3, नली दोष के 9, फटे होंठ के 59, क्लब फुट के 223 और हृदय रोग के 149 बच्चों का इलाज किया जा चुका है.
ये हो सकते है संभावित कारण
फिलहाल अभी तक इसका सही कारण स्पष्ट नहीं हो पाया है, लेकिन स्टडी में पाया गया है कि अनुवांशिक, गर्भावस्था के शुरुआत में बीमारी, कुछ रसायनों के दुष्प्रभाव, मां के धूम्रपान, शराब का सेवन, आकार में कमी, स्टेरॉइड थेरेपी, वायरल इनफेक्शन, एक्स-रे-किरण, मिर्गी इलाज की दवाएं लेने से नवजात बच्चे को ये बीमारियां हो सकती हैं.
कैसे हो सकता है बचाव ?
कुछ शोधों के अनुसार मल्टीविटामिंस जिनमें फॉलिक एसिड नाम का तत्व शामिल है, ये गर्भाधान के पहले और कम से कम 2 महीने बाद तक लेने से कुछ हद तक बचाव किया जा सकता है. जो महिलाएं गर्भवती हैं या गर्भाधान की सोच रही हैं तो उन्हें धूम्रपान और मदिरापान ना करने की सलाह दी जाती है. जो महिलाएं काफी समय से बीमारी की दवाई ले रही हैं जैसे मिर्गी आदि कि तो उन्हें गर्भाधान से पहले अपने डॉक्टर से सलाह ले लेनी चाहिए. वहीं जिन परिवारों में कटे होंठ व तालू की पूर्व घटना हो चुकी है तो उन्हें डॉक्टर से सलाह जरूर लेनी चाहिए.
5 सालों में इतने बच्चों का हुआ इलाज
सीएमओ डॉक्टर जसजीत कौर ने बताया कि पिछले 5 सालों में लगभग 443 बच्चों का इलाज बर्थ डिफेक्ट्स के लिए किया जा चुका है. उन्होंने बताया कि 2019-20 में ये आंकड़ा 95 था. उन्होंने बताया कि पिछले 5 सालों में 1,06,69 हजार रुपये की राशि बर्थ डिफेक्ट वाले बच्चों पर खर्च की जा चुकी है. सीएमओ ने बताया कि पिछले साल लगभग 25 लाख रुपये भी इन बच्चों के इलाज के लिए खर्च किए गए थे.