पलवल: शारदीय नवरात्रि का पर्व है और इन दिनों श्रद्धालु दूर-दराज से मंदिरों में दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. ऐसे में कुछ ऐसे मंदिर भी हैं जो केवल नवरात्रि के दिनों में ही खुलते हैं. जहां दर्शन करने के लिए श्रद्धालु भारी संख्या में मंदिर पहुंचते हैं. हरियाणा के जिला पलवल में भी काली माता का एक ऐसा मंदिर है जो साल में केवल दो बार ही खोला जाता है. काली माता का ये मंदिर दिल्ली से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर पलवल के जवाहर नगर कैंप में है. यह मंदिर नवरात्रि के दौरान केवल दो दिनों के लिए ही खुलता है.
मंदिर में जलती है अखंड जोत: पलवल में काली माता मंदिर नवरात्रि में सप्तमी के दिनों में ही खुलता है. मंदिर में साल के 365 दिन सरसों के तेल की अखंड जोत जलती रहती है. काली मां को काले चने का भोग लगता है और सरसों के तेल के त्रिमुखी दीपक से ही तारा दिखाई देने के बाद माता रानी की आरती की जाती है. मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी काली माता से अपनी मन्नत मांगता है वो जरूर पूरी होती है. इसलिए साल के दो दिन यहां पर श्रद्धालु दर्शन करने के लिए दूर-दूर से पहुंचते हैं.
भारत-पाकिस्तान बटवारे के दौरान हुई स्थापना: कहा जाता है कि भारत-पाकिस्तान के बटवारे के दौरान साल 1947 में ही मंदिर की स्थापना की गई थी. मंदिर के महंत बाबा हंस गिरी जी महाराज बंटवारे के दौरान पाकिस्तान के जिला राजनपुर के गांव रुझान से मिट्टी की बनी मां काली, भैरो बाबा और माता वैष्णो देवी की प्रतिमा लेकर आए थे. उन्हें पलवल के जवाहर नगर कैंप में रहने का स्थान मिला तो उन्होंने यहां काली माता के मंदिर की स्थापना की. मंदिर में पाकिस्तान से लाई गई मिट्टी की मूर्तियों स्थापित कर दिया जो कि आज भी स्थापित है.
नवरात्रि के इन दिनों में खुलता है मंदिर का कपाट: मंदिर के महंत तीर्थ दास बताते हैं कि मंदिर नवरात्रि के सातवें दिन तारा देखने के बाद भक्तों के लिए खोला जाता है. बाकि दिनों केवल वे ही मंदिर में अंदर जाकर सफाई करते है और दिया-बाती जलाते हैं. मान्यता है कि मंदिर में माता रानी से जिस भी इच्छा की मनोकामना की जाए, वह पूरी हो जाती है.
सभी मनोकामनाओं के पूर्ण होने की है मान्यता: बताया जाता है कि मंदिर में दर्शन के बाद मनोकामना पूरी हो जाती है. सातवें माह में गर्भ में बच्चा खराब हो तो देवी के दर्शन के बाद ऐसा नहीं होता. यह भक्तों की मान्यता है और ऐसा कई बार हुआ भी है. दिल्ली से आगरा की तरफ जाते समय मंदिर 62 किलोमीटर की दूरी पर रेस्ट हाऊस से आगे हैं.
मंदिर में बनता है भोग: मंदिर में प्रसाद के रूप में अनाज, नारियल, काले छोले, सरसों का तेल आदि चढ़ाया जाता है. मंदिर में एक ही पुजारी आरती करता है. सुबह तारा डूबने पर और शाम को तारा दिखाई देने पर ही आरती होती है. आरती के समय तीन सरसों के तेल के दीपक जलाए जाते हैं और एक अखंड ज्योति हमेशा जलती रहती है. इसके अलावा, मंदिर में भैरो बाबा व काली माता तथा वैष्णवी माता को काले चने का भोग लगता है. भोग को भक्त स्वयं अपने हाथों से मंदिर में ही तैयार करते हैं.
अखंड जोत का रहस्य: हिंदुस्तान-पाकिस्तान बटवारे के दौरान जो भी पाकिस्तान के रूझान बिरादरी के लोग हिंदुस्तान आए आज भी वे वर्ष में दो बार पलवल में काली माता मंदिर के दर्शन करने के लिए आते हैं और तेल चढ़ाते हैं. चाहे वे देश के किसी भी कोने में क्यों न रहते हो. यहां पर सभी श्रद्धालु लाइन में लगकर दर्शन करते हैं. मान्यता है कि रुझान बिरादरी का व्यक्ति कहीं पर भी रहता हो उनके परिवार में अगर परिवार में किसी की मौत हो जाए तो वह पलवल के इस मंदिर में सवा किलो तेल जरूर चढ़ाता है. इसी तेल में मंदिर में अखंड ज्योत जलती रहती है.