नूंह: लंबे अंतराल के बाद भले ही सरकार ने स्कूल खोलने की इजाजत दे दी हो. लेकिन नूंह जिले से जो तस्वीर सामने आई है, उसे देखकर लगता है कि सरकार अब बेपरवाह हो चुकी है और उन्हें बच्चों की जिंदगी से कोई लगाव नहीं.
नूंह जिले के पिनगवां क्षेत्र में बने राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में छात्राओं के बैठने के लिए पर्याप्त जगह ही नहीं है. अध्यापकों का कहना है कि दो साल पहले पुराने स्कूल के भवन की खस्ताहालत को देखते हुए उसे तोड़ दिया गया था. जिसके बाद कन्या प्राइमरी स्कूल में अस्थाई तौर पर कक्षाएं लगाई जा रही हैं और यहां कमरों की कमी होने के चलते काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.
स्कूल में सिर्फ 4 कमरे और छात्राएं 825
प्रशासन द्वारा पुराने और जर्जर स्कूल की इमारत को बेशक तोड़ दिया गया हो लेकिन दो साल बीत जाने के बाद भी जिले की बेटियों के लिए नए स्कूल का प्रबंध नहीं किया गया. अब जिस स्कूल में लड़कियां पढ़ रही हैं, वहां सिर्फ 4 कमरे ही हैं और कोरोना काल में 4 कमरों में 800 से ज्यादा छात्राओं का पढ़ने के लिए आना खतरे से खाली नहीं हैं.
छात्राओं का कहना है कि इतनी कम जगह में सभी का साथ बैठकर पढ़ाई करना मुमकिन नहीं है और अगर हम स्कूल नहीं आएंगी तो हमारा विकास कैसे होगा और स्कूल आतें है तो कोरोना संक्रमण फैलने का डर बना रहता है.
छात्राओं की जिंदगी से खिलवाड़ क्यों?
अंग्रेजों के जमाने में बने स्कूल के भवन को तोड़ दिए जाने के बाद अध्यापकों और छात्राओं को उम्मीद थी की जल्द ही स्कूल का नया भवन बनकर तैयार होगा और पर्याप्त जगह में पढ़ाई करने का मौका मिलेगा, लेकिन हालात वैसे ही है.
भवन को तोड़े हुए 2 साल से ज्यादा समय बीत गया है, लेकिन नए भवन के नाम पर अभी तक एक भी ईंट नहीं लगी है. अभी तक जैसे तैसे बच्चों को एक साथ बिठाकर पढ़ाया जा रहा था लेकिन अब कोरोना के समय में सोशल डिस्टेंस को नजर अंदाज करना बेवकूफी साबित हो सकता है.
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