नूंह: हरियाणा नूंह जिले में सिंचाई के पानी की कमी की वजह से बेर की बागवानी का प्रचलन बढ़ा है. जिले के पिनगवां, घासेड़ा, खेड़ी, छपेड़ा, रानीका, मढ़ी, मरोड़ा जैसे गांवों में बेर की इस बार अच्छी फसल हुई है. नूंह के बेर किसानों (Plum Farmers in nuh) का मानना है कि बेर की बागबानी में मेहनत भी कम है और आमदनी भी ज्यादा है. इन बागों में काम कर दर्जनों महिलाओं को रोजगार मिला है. वहीं रेहड़ी पर फल बेचने वालों की आमदनी भी बढ़ी है.
बता दें कि मेवात जिले के मढ़ी गांव में पीने के पानी की बूंद तक के लिए लोग तरसते हैं. भूजल बेहद गहरा और खारा है, लेकिन किसान (Haryana Farmers News) की बुद्धीमत्ता और लगन से बंजर भूमि में बेर के बाग की फसल पूरी तरह लहरा रही है. यहां केथली और गोला किस्म के बेर हैं. केथली किस्म देखने में हरा और छोटा है, लेकिन मिठास और मुलायम में इसका कोई सानी नहीं है. इस फसल से किसान को अच्छी आमदनी प्राप्त हो रही है.
मढ़ी गांव में एक ही किसान ने 3 एकड़ के बेर बाग को बढ़ाकर अब 6 एकड़ कर दिया है. प्रति एकड़ तकरीबन एक लाख रुपये का बेर बिक जाता है, जिस पर करीब 20 हजार की लागत आती है, तो सीधा 80 हजार रुपये का मुनाफा किसान कमा रहा है. जिला बागवानी अधिकारी डॉ. दीन मोहम्मद के प्रयासों से 93 एकड़ भूमि में बेर के नए बाग लगाए गए हैं, जबकि 267 एकड़ भूमि में पहले से ही बेर की फसल मेवात में लगाई गई है.
बागवानी अधिकारी दीन मोहम्मद ने जानकारी दी कि बागवानी विभाग किसान को बेर का बाग लगाने पर 40 प्रतिशत अनुदान राशि देता है. उन्होंने कहा कि पहले साल 3400 रुपये और दूसरे और तीसरे साल 1700 रुपये खाद/दवाई के लिए बागवानी विभाग मदद करता है. उन्होंने कहा कि 3 साल बाद बेर फल देने लगता है, जिससे किसान को लगातार आमदनी होती रहती है. खास बात यह है कि मेवात की बंजर भूमि में होने वाले बेर की फसल की गुणवत्ता का कोई मुकाबला नहीं है.
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