ETV Bharat / state

अच्छी खबर: सैंपल लेने के लिए अब नहीं पड़ेगी वायल की जरूरत, इस खास सीरेंज से काम होगा आसान - नूंह नल्हड़ कॉलेज डॉक्टर खोज

स्वास्थ्य क्षेत्र में देशवासियों के लिए नूंह से एक बेहद अच्छी खबर सामने आई है. यहां के राजकीय शहीद हसन खान मेवाती मेडिकल कॉलेज नल्हड़ के एक डॉक्टर ने ब्लड सैंपल की (sampling syringe new discovery) प्रक्रिया को आसान और सस्ता बनाने का काम कर दिखाया है.

nuh sampling new discovery
nuh sampling new discovery
author img

By

Published : Jul 5, 2021, 6:16 PM IST

नूंह: देश के लोगों के लिए नूंह से राहत की खबर है. खून के सैंपल की जांच के लिए आने वाले 2 वर्षों में वायल (शीशी) की जरूरत नहीं पड़ेगी. इससे सैंपल खर्च में भी कमी आने से इनकार नहीं किया जा सकता. लोगों को सुलभ, सरल व सस्ता इलाज उपलब्ध हो पाएगा. राजकीय शहीद हसन खान मेवाती मेडिकल कॉलेज नल्हड़ में एनेस्थीसिया ग्रेजुएशन के छात्र डॉ. राणा प्रताप सिंह ने एक ऐसी सीरेंज में शोध कर कामयाबी पाई है जिसमें अब वायल की अलग से जरूरत नहीं पड़ेगी. उन्होंने ऐसी सीरेंज तैयार की है जिसे सैंपल लेने के बाद वायल का रूप दिया जा सकता है.

दो-तीन वर्षों में बाजार में उपलब्ध होगी ये सीरेंज

ब्लड सैंपल को अब किसी वायल में रखने की जरूरत नहीं होगी और सीरेंज से सीधा नतीजा सामने आ जाएगा. डॉ. राणा प्रताप सिंह ने वर्ष 2015 में इसे बनाया था और इसी वर्ष के अंत में मान्यता के लिए अप्लाई किया था. केंद्र सरकार द्वारा मान्यता देने में 7-10 वर्ष की प्रक्रिया लगती है, लेकिन उनके इस शोध को महज 6 साल में ही सरकार से अब मान्यता मिल चुकी है, और आने वाले दो-तीन वर्षों में ये सीरेंज बाजार में उपलब्ध होगी. जिसके बाद लोगों को ब्लड सैंपल देते समय सरल, सुलभ व सस्ता इलाज मिल पाएगा.

सैंपल लेने के लिए अब नहीं पड़ेगी वायल की जरूरत, इस खास सीरेंज से काम होगा आसान

शीशी की कमी की समस्या होगी खत्म

सबसे खास बात तो ये है कि दूरदराज ग्रामीण इलाकों में जो पीएचसी और सीएचसी लोगों का इलाज कर रही हैं उन्हें कई बार ब्लड सैंपल लेते समय कांच की शीशी की कमी सामने आती है. जिसमें सीरेंज से ब्लड सैंपल डाला जाता है. इससे स्वास्थ्य विभाग को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. डॉ. राणा प्रताप सिंह ने बताया कि उनके सीनियर डॉक्टर, सहपाठियों के अलावा परिवार का हमेशा सहयोग मिला. जिसकी बदौलत उन्होंने इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की है. इस तरह का कारनामा करने वाले वह भारत के पहले डॉक्टर बन गए हैं.

ये भी पढ़ें- चंडीगढ़ के सरकारी स्कूल में बना गणित गार्डन, छात्रों को खेल-खेल में सिखाए जा रहे फॉर्मूले

राणा प्रताप सिंह पुत्र भगवती शरण सिंह निवासी बलिया, उत्तर प्रदेश के रहने वाला है. उनके पिता बिजली विभाग में चीफ एग्जीक्यूटिव इंजीनियर थे और उनकी माता शांति सिंह मुख्य अध्यापक थी. पांच भाई-बहनों में तीसरे नंबर के राणा प्रताप सिंह इन दिनों पूरे देश के लिए मिसाल बन चुके हैं. उन्होंने यह कारनामा कर दिया गांव प्रदेश व देश के साथ-साथ मेडिकल कॉलेज नल्हड़ का नाम रोशन किया है. उन्होंने विदेश में एमबीबीएस करने के बाद दिल्ली में स्थित गुरु तेग बहादुर अस्पताल में वर्ष 2011-12 में अपनी सेवाएं दी थी.

इस तरह दिमाग में आया ये आइडिया

इसके बाद टीएचएसटीआई रिसर्च संस्थान फरीदाबाद में नियुक्ति के बाद उन्हें सफदरजंग अस्पताल नई दिल्ली में सैंपलिंग का कार्यभार सौंपा गया. वहां पर ब्लड सैंपल की संख्या अधिक होने के कारण डॉक्टरों और लैब टेक्नीशियन पर काम का दबाव रहता था. वहीं से उनके मन में ये आइडिया आया कि इस प्रक्रिया को कैसे सरल व सस्ता बनाया जा सकता है, और आखिर उन्हें कामयाबी मिल ही गई.

ये भी पढ़ें- हरियाणा में बनेगा देश का पहला अर्बन वाइल्ड लाइफ कॉरिडोर, जानवरों को मिलेगा सुरक्षित रास्ता

नूंह: देश के लोगों के लिए नूंह से राहत की खबर है. खून के सैंपल की जांच के लिए आने वाले 2 वर्षों में वायल (शीशी) की जरूरत नहीं पड़ेगी. इससे सैंपल खर्च में भी कमी आने से इनकार नहीं किया जा सकता. लोगों को सुलभ, सरल व सस्ता इलाज उपलब्ध हो पाएगा. राजकीय शहीद हसन खान मेवाती मेडिकल कॉलेज नल्हड़ में एनेस्थीसिया ग्रेजुएशन के छात्र डॉ. राणा प्रताप सिंह ने एक ऐसी सीरेंज में शोध कर कामयाबी पाई है जिसमें अब वायल की अलग से जरूरत नहीं पड़ेगी. उन्होंने ऐसी सीरेंज तैयार की है जिसे सैंपल लेने के बाद वायल का रूप दिया जा सकता है.

दो-तीन वर्षों में बाजार में उपलब्ध होगी ये सीरेंज

ब्लड सैंपल को अब किसी वायल में रखने की जरूरत नहीं होगी और सीरेंज से सीधा नतीजा सामने आ जाएगा. डॉ. राणा प्रताप सिंह ने वर्ष 2015 में इसे बनाया था और इसी वर्ष के अंत में मान्यता के लिए अप्लाई किया था. केंद्र सरकार द्वारा मान्यता देने में 7-10 वर्ष की प्रक्रिया लगती है, लेकिन उनके इस शोध को महज 6 साल में ही सरकार से अब मान्यता मिल चुकी है, और आने वाले दो-तीन वर्षों में ये सीरेंज बाजार में उपलब्ध होगी. जिसके बाद लोगों को ब्लड सैंपल देते समय सरल, सुलभ व सस्ता इलाज मिल पाएगा.

सैंपल लेने के लिए अब नहीं पड़ेगी वायल की जरूरत, इस खास सीरेंज से काम होगा आसान

शीशी की कमी की समस्या होगी खत्म

सबसे खास बात तो ये है कि दूरदराज ग्रामीण इलाकों में जो पीएचसी और सीएचसी लोगों का इलाज कर रही हैं उन्हें कई बार ब्लड सैंपल लेते समय कांच की शीशी की कमी सामने आती है. जिसमें सीरेंज से ब्लड सैंपल डाला जाता है. इससे स्वास्थ्य विभाग को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. डॉ. राणा प्रताप सिंह ने बताया कि उनके सीनियर डॉक्टर, सहपाठियों के अलावा परिवार का हमेशा सहयोग मिला. जिसकी बदौलत उन्होंने इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की है. इस तरह का कारनामा करने वाले वह भारत के पहले डॉक्टर बन गए हैं.

ये भी पढ़ें- चंडीगढ़ के सरकारी स्कूल में बना गणित गार्डन, छात्रों को खेल-खेल में सिखाए जा रहे फॉर्मूले

राणा प्रताप सिंह पुत्र भगवती शरण सिंह निवासी बलिया, उत्तर प्रदेश के रहने वाला है. उनके पिता बिजली विभाग में चीफ एग्जीक्यूटिव इंजीनियर थे और उनकी माता शांति सिंह मुख्य अध्यापक थी. पांच भाई-बहनों में तीसरे नंबर के राणा प्रताप सिंह इन दिनों पूरे देश के लिए मिसाल बन चुके हैं. उन्होंने यह कारनामा कर दिया गांव प्रदेश व देश के साथ-साथ मेडिकल कॉलेज नल्हड़ का नाम रोशन किया है. उन्होंने विदेश में एमबीबीएस करने के बाद दिल्ली में स्थित गुरु तेग बहादुर अस्पताल में वर्ष 2011-12 में अपनी सेवाएं दी थी.

इस तरह दिमाग में आया ये आइडिया

इसके बाद टीएचएसटीआई रिसर्च संस्थान फरीदाबाद में नियुक्ति के बाद उन्हें सफदरजंग अस्पताल नई दिल्ली में सैंपलिंग का कार्यभार सौंपा गया. वहां पर ब्लड सैंपल की संख्या अधिक होने के कारण डॉक्टरों और लैब टेक्नीशियन पर काम का दबाव रहता था. वहीं से उनके मन में ये आइडिया आया कि इस प्रक्रिया को कैसे सरल व सस्ता बनाया जा सकता है, और आखिर उन्हें कामयाबी मिल ही गई.

ये भी पढ़ें- हरियाणा में बनेगा देश का पहला अर्बन वाइल्ड लाइफ कॉरिडोर, जानवरों को मिलेगा सुरक्षित रास्ता

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.