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रमजान विशेष: जानिए क्या है रमजान का महत्व और जकात का सही तरीका - नूंह रमजान पर कोरोना का असर

कोरोना का असर रमजान महीने पर भी देखने को मिल रहा है. ना तो पूरी तरह से बाजार खुले हैं और साथ ही भीड़भाड़ से भी बचा रहा है. फिर भी मुस्लिम समाज के लोग अपने हिसाब से जकात और फितरा गरीबों को दे रहे हैं.

corona effect on ramadan nuh
कोरोना का असर: घर की चार दिवारी में सिमटी रमजान की रौनक
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Published : May 4, 2020, 1:13 PM IST

नूंह: कोरोना की बीमारी ने इस साल का रमज़ान बेमज़ा कर दिया है. लोग अपने घरों में दुबके बैठे हैं. सारी बातें फेसबुक, वॉट्सएप और ट्विटर पर हो रही है. मस्जिद के बाहर वो परिंदे नहीं हैं जो कभी बेखौफ उड़ा करते थे. न वो दुपट्टे से ढकी औरतें हैं, जो मस्जिद की मेहराब से लग कर इबादत में डूब जाती थीं. मस्जिद से भीड़ भी गायब है. अब नजर आ रहे हैं तो सिर्फ चंद लोग. जो सोशल डिस्टेंगिंस के साथ ही नमाज अता कर रहे हैं.

रमजान के महीने का महत्व

रमजान का महीना नबी पाक के मुताबिक गमखारी का महीना है. गरीबों, यतीमों की मदद के ख्याल रखने का महीना है. खासतौर से हर मुसलमान के लिए तमाम इंसानियत का ख्याल रखना जरूरी है ,लेकिन रमजान के महीने में सदका और खैरात बेहद जरूरी है. ऐसा माना जाता है कि जकात, सदका दिए बिना ईद की नमाज कुबूल नहीं होती है.

क्लिक कर देखें रिपोर्ट

रमजान महीने का इतिहास

इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक सन् 2 हिजरी में अल्लाह के हुक्म से मुसलमानों पर रोजे फर्ज (जरूरी) किए गए. इसी महीने में शब-ए-कदर में अल्लाह ने कुरान जैसी नेमत दी. तब से मुस्लिम इस महीने में रोजे रखते आ रहे हैं.

ये भी पढ़िए: हरियाणा में आवाजाही के लिए सरकार ने जारी की एसओपी, इन बातों का रखना होगा ध्यान

मुफ्ती मौलाना रफीक मांड़ीखेड़ा ने कहा कि चाहे इबादत की बात हो या फिर रमजान में खर्च करने की बात हो, हर एक के चीज के बदले 70 गुणा ज्यादा मिलता है. इस बार खैरात शायद बीते रमजान के मुकाबले कम होगी, क्योंकि ना तो पूरी तरह से बाजार खुले हैं और साथ ही भीड़भाड़ से भी पूरी तरह बचना है, लेकिन फिर भी मुस्लिम समाज के लोग अपने हिसाब से जकात और फितरा गरीबों को दे रहे हैं.

सहरी, इफ्तार और तरावीह

रमजान के दिनों में लोग तड़के उठकर सहरी करते हैं. सहरी खाने का वक्त सुबह सादिक (सूरज निकलने से करीब डेढ़ घंटे पहले का वक्त) होने से पहले का होता है. सहरी खाने के बाद रोजा शुरू हो जाता है. रोजेदार पूरे दिन कुछ भी खा और पी नहीं सकते हैं. इस दौरान सेक्स संबंध बनाने की भी मनाही है. शाम को तय वक्त पर इफ्तार कर रोजा खोला जाता है.

इनको है रोजे से छूट

  • अगर कोई बीमार हो या बीमारी बढ़ने का डर हो तो रोजे से छूट मिलती है हालांकि, ऐसा डॉक्टर की सलाह पर ही करना चाहिए.
  • मुसाफिर को, प्रेग्नेंट लेडी और बच्चे को दूध पिलाने वाली मां को भी रोजे से छूट रहती है.
  • बहुत ज्यादा बुजुर्ग शख्स को भी रोजे से छूट रहती है

नूंह: कोरोना की बीमारी ने इस साल का रमज़ान बेमज़ा कर दिया है. लोग अपने घरों में दुबके बैठे हैं. सारी बातें फेसबुक, वॉट्सएप और ट्विटर पर हो रही है. मस्जिद के बाहर वो परिंदे नहीं हैं जो कभी बेखौफ उड़ा करते थे. न वो दुपट्टे से ढकी औरतें हैं, जो मस्जिद की मेहराब से लग कर इबादत में डूब जाती थीं. मस्जिद से भीड़ भी गायब है. अब नजर आ रहे हैं तो सिर्फ चंद लोग. जो सोशल डिस्टेंगिंस के साथ ही नमाज अता कर रहे हैं.

रमजान के महीने का महत्व

रमजान का महीना नबी पाक के मुताबिक गमखारी का महीना है. गरीबों, यतीमों की मदद के ख्याल रखने का महीना है. खासतौर से हर मुसलमान के लिए तमाम इंसानियत का ख्याल रखना जरूरी है ,लेकिन रमजान के महीने में सदका और खैरात बेहद जरूरी है. ऐसा माना जाता है कि जकात, सदका दिए बिना ईद की नमाज कुबूल नहीं होती है.

क्लिक कर देखें रिपोर्ट

रमजान महीने का इतिहास

इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक सन् 2 हिजरी में अल्लाह के हुक्म से मुसलमानों पर रोजे फर्ज (जरूरी) किए गए. इसी महीने में शब-ए-कदर में अल्लाह ने कुरान जैसी नेमत दी. तब से मुस्लिम इस महीने में रोजे रखते आ रहे हैं.

ये भी पढ़िए: हरियाणा में आवाजाही के लिए सरकार ने जारी की एसओपी, इन बातों का रखना होगा ध्यान

मुफ्ती मौलाना रफीक मांड़ीखेड़ा ने कहा कि चाहे इबादत की बात हो या फिर रमजान में खर्च करने की बात हो, हर एक के चीज के बदले 70 गुणा ज्यादा मिलता है. इस बार खैरात शायद बीते रमजान के मुकाबले कम होगी, क्योंकि ना तो पूरी तरह से बाजार खुले हैं और साथ ही भीड़भाड़ से भी पूरी तरह बचना है, लेकिन फिर भी मुस्लिम समाज के लोग अपने हिसाब से जकात और फितरा गरीबों को दे रहे हैं.

सहरी, इफ्तार और तरावीह

रमजान के दिनों में लोग तड़के उठकर सहरी करते हैं. सहरी खाने का वक्त सुबह सादिक (सूरज निकलने से करीब डेढ़ घंटे पहले का वक्त) होने से पहले का होता है. सहरी खाने के बाद रोजा शुरू हो जाता है. रोजेदार पूरे दिन कुछ भी खा और पी नहीं सकते हैं. इस दौरान सेक्स संबंध बनाने की भी मनाही है. शाम को तय वक्त पर इफ्तार कर रोजा खोला जाता है.

इनको है रोजे से छूट

  • अगर कोई बीमार हो या बीमारी बढ़ने का डर हो तो रोजे से छूट मिलती है हालांकि, ऐसा डॉक्टर की सलाह पर ही करना चाहिए.
  • मुसाफिर को, प्रेग्नेंट लेडी और बच्चे को दूध पिलाने वाली मां को भी रोजे से छूट रहती है.
  • बहुत ज्यादा बुजुर्ग शख्स को भी रोजे से छूट रहती है
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