नूंहः घासेड़ा गांव इन दिनों गंदगी और पिछड़ेपन की वजह से अपनी पहचान बना रहा है. गांव में नालियों का गंदा और बदबूदार पानी गलियों में भरा हुआ है. हालात ये हैं कि गांव के लोग नरकीय जीवन जीने को मजबूर हैं. ग्रामीणों ने रास्तों की सफाई व पानी की निकासी के लिए सरपंच से लेकर आला अधिकारियों तक से गुहार लगाई, लेकिन अभी तक उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई. बताया जाता है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी इस गांव से गहरा रिश्ता है.
हुड्डा ने घोषित किया था आदर्श गांव
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने तो घासेड़ा गांव आदर्श गांव घोषित किया था. हुड्डा ने गांव के समुचित विकास के लिए 7 करोड़ रुपए से भी अधिक की राशि खर्च की थी, लेकिन इस राशि से हुए विकास कार्यों में इतनी लापरवाही बरती गई कि गांव में विकास के नाम पर केवल गंदगी के अंबार दिखाई देते हैं. देखने से कहीं से भी घासेड़ा गांव आदर्श नहीं लगता. ग्रामीणों का आरोप है कि सफाई कर्मचारी सरपंच के घर के बाहर तो रोजाना झाड़ू लगाते हैं, लेकिन जहां गंदगी है वहां जब सफाई कर्मचारियों से सफाई करने के लिए कहा तो उन्होंने सफाई करने के एवज में लोगों से रुपयों की डिमांड की.
गांधी के प्यारे गांव की दयनीय हालत
घासेड़ा गांव के लोगों का कहना है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 19 दिसंबर 1947 को घासेड़ा गांव में आए थे और उन्होंने ग्रामीणों को विश्वास दिलाया था कि उन्हें हर वो अधिकार मिलेगा जिसके वो भागीदार हैं. लोगों का कहना है कि गांधी जी ने स्वच्छता का संदेश दिया था, लेकिन उनके सबसे लाडले और प्यारे गांव गांधी ग्राम घासेड़ा में ही स्वच्छता अभियान की धज्जियां उड़ रही हैं. जिसे लेकर ना तो ग्राम पंचायत गंभीर दिखाई देती है और ना ही व अधिकारी जो नूंह जिले को स्वच्छ जिलों की सूची में शामिल कराने का दम भरते हैं.
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गलियों ने लिया तालाबों का रूप
गंदगी और बदबूदार पानी से भरी गलियों से गांधी ग्राम के निवासियों का तो गुजरना दूभर होने लगा है. हालात ये हैं कि नमाज पढ़ने अंधेरे में जाने वाले लोगों को कीचड़ - गंदे पानी मे गिरने का खतरा हर समय बना रहता है. ये हाल गांव के एक रास्ते का नहीं है बल्कि कई रास्तों ने तालाब का रूप ले लिया है. गांव की आबादी 30 हजार के करीब है. इतने बड़े और ऐतिहासिक गांव में स्वच्छता अभियान का जब ये हाल है तो बाकि गांवों की हकीकत का आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं.