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कुरुक्षेत्र: आजादी का वो 'परवाना', जिसने आजाद भारत के ख्वाब के लिए जिंदगी भर नहीं की शादी

15 अगस्त को हमारा देश आजादी के 73वां साल का जश्न मनाएगा. ये आजादी हमें यूं ही नहीं मिली है. इस आजादी को पाने के लिए ना जाने कितने स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी. ऐसे ही एक स्वतंत्रता सेनानी थे पिहोवा के रहने वाले सुखा सिंह. जिनके सिर आजाद भारत का सपना ऐसा चढ़ा कि उन्होंने ताउम्र शादी तक नहीं की.

कुरुक्षेत्र: जानिए आजादी के उस परवाने के बारे में, जिन्होंने आजाद भारत के लिए जिंदगी भर नहीं की शादी
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Published : Aug 13, 2019, 5:18 PM IST

कुरुक्षेत्र: वो कहते हैं ना परवाने को शमा पे जल के कुछ तो मिलता होगा, सिर्फ मरने की ख़ातिर तो कोई प्यार नहीं करता होगा. ऐसे ही एक परवाने स्वतंत्रता सेनानी सुखा सिंह थे. जिन्होंने भारत माता से ऐसा प्यार किया कि अपनी आखिरी सांस तक भारत माता के नाम कर दी. इस साल हमारा देश आजादी का 73वां साल मना रहा है. ऐसे में ईटीवी भारत उन वीर सपूतों को नमन कर रहा है, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी आजाद भारत के नाम कर दी.

जानिए स्वतंत्रता सेनानी स्व. सुखा सिंह किधर के बारे में

स्वतंत्रता सेनानी स्व. सुखा सिंह के बलिदान को याद रखेगा देश
कुरुक्षेत्र के पिहोवा कस्बे के रहने वाले सुखा सिंह भी उन्हीं वीर स्वतंत्रता सेनानी में से एक हैं. जिन्होंने भारत माता की आजादी का ख्वाब देखा और उसे पूरा करने के लिए अपना पूरा जीवन न्योछावर कर दिया. वो भारत मां से परवाने की तरह ऐसा प्यार करने लगे कि उसके आगे वो अपने खुद के परिवार तक को भूल गए. आजाद भारत का सपना सुखा सिंह के सिर पर ऐसे चढ़कर बोला कि उन्होंने ताउम्र शादी नहीं की.

बचपन से ही देखा अंग्रेजों को खदेड़ने का सपना
ये थे स्वतंत्रता सेनानी सुखा सिंह के भतीजे जरनैल सिंह जिन्हें सुखा सिंह अपनी संतान की तरह प्यार करते थे. उन्होंने बताया कि बचपन से ही उनके चाचा सुखा सिंह के अंदर देश को गुलामी की जंजीरों से बाहर निकालने का जज्बा था. वो सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज का हिस्सा थे. वो अलग-अलग देशों में जाकर अंग्रेजों को देश से खेदड़ देने की रणनीति बनाया करते थे. आप सुखा सिंह की दरियादिली का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने अपनी पेंशन तक दूसरे जरूरतमंद लोगों को दे दी.

बंटवारे के बाद हिंदुस्तान में बसने का फैसला लिया
आजादी मिलने के बाद जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ. तब सुखा सिंह पाकिस्तान छोड़कर हिंदुस्तान में बस गए, लेकिन हिंदुस्तान में उनके जज्बे, त्याग और भारत मां के लिए उनके सच्चे प्यार को वो सम्मान नहीं मिला, जिनके वो हकदार थे.

'नहीं मिला सम्मान जिनके थे हकदार'
स्वतंत्रता सेनानी सुखा सिंह का 26 अगस्त 2013 को निधन हो गया. उनके निधन को 5 साल बीत चुके हैं, लेकिन इन 5 सालों में किसी नेता या फिर सरकारी नुमाइंदे ने उनके घर का रुख नहीं किया. हालांकि उनकी अंतिम विदाई में अधिकारी जरूर आए थे.

अब स्वतंत्रता सेनानी सुखा सिंह के परिजनों की मांग है कि उन्हें भले ही आर्थिक सहायता ना दी जाए, लेकिन स्वतंत्रता सेनानी सुखा सिंह को वो मान-सम्मान तो दिया जाए जिसके वो हकदार हैं.

कुरुक्षेत्र: वो कहते हैं ना परवाने को शमा पे जल के कुछ तो मिलता होगा, सिर्फ मरने की ख़ातिर तो कोई प्यार नहीं करता होगा. ऐसे ही एक परवाने स्वतंत्रता सेनानी सुखा सिंह थे. जिन्होंने भारत माता से ऐसा प्यार किया कि अपनी आखिरी सांस तक भारत माता के नाम कर दी. इस साल हमारा देश आजादी का 73वां साल मना रहा है. ऐसे में ईटीवी भारत उन वीर सपूतों को नमन कर रहा है, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी आजाद भारत के नाम कर दी.

जानिए स्वतंत्रता सेनानी स्व. सुखा सिंह किधर के बारे में

स्वतंत्रता सेनानी स्व. सुखा सिंह के बलिदान को याद रखेगा देश
कुरुक्षेत्र के पिहोवा कस्बे के रहने वाले सुखा सिंह भी उन्हीं वीर स्वतंत्रता सेनानी में से एक हैं. जिन्होंने भारत माता की आजादी का ख्वाब देखा और उसे पूरा करने के लिए अपना पूरा जीवन न्योछावर कर दिया. वो भारत मां से परवाने की तरह ऐसा प्यार करने लगे कि उसके आगे वो अपने खुद के परिवार तक को भूल गए. आजाद भारत का सपना सुखा सिंह के सिर पर ऐसे चढ़कर बोला कि उन्होंने ताउम्र शादी नहीं की.

बचपन से ही देखा अंग्रेजों को खदेड़ने का सपना
ये थे स्वतंत्रता सेनानी सुखा सिंह के भतीजे जरनैल सिंह जिन्हें सुखा सिंह अपनी संतान की तरह प्यार करते थे. उन्होंने बताया कि बचपन से ही उनके चाचा सुखा सिंह के अंदर देश को गुलामी की जंजीरों से बाहर निकालने का जज्बा था. वो सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज का हिस्सा थे. वो अलग-अलग देशों में जाकर अंग्रेजों को देश से खेदड़ देने की रणनीति बनाया करते थे. आप सुखा सिंह की दरियादिली का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने अपनी पेंशन तक दूसरे जरूरतमंद लोगों को दे दी.

बंटवारे के बाद हिंदुस्तान में बसने का फैसला लिया
आजादी मिलने के बाद जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ. तब सुखा सिंह पाकिस्तान छोड़कर हिंदुस्तान में बस गए, लेकिन हिंदुस्तान में उनके जज्बे, त्याग और भारत मां के लिए उनके सच्चे प्यार को वो सम्मान नहीं मिला, जिनके वो हकदार थे.

'नहीं मिला सम्मान जिनके थे हकदार'
स्वतंत्रता सेनानी सुखा सिंह का 26 अगस्त 2013 को निधन हो गया. उनके निधन को 5 साल बीत चुके हैं, लेकिन इन 5 सालों में किसी नेता या फिर सरकारी नुमाइंदे ने उनके घर का रुख नहीं किया. हालांकि उनकी अंतिम विदाई में अधिकारी जरूर आए थे.

अब स्वतंत्रता सेनानी सुखा सिंह के परिजनों की मांग है कि उन्हें भले ही आर्थिक सहायता ना दी जाए, लेकिन स्वतंत्रता सेनानी सुखा सिंह को वो मान-सम्मान तो दिया जाए जिसके वो हकदार हैं.

Intro:देश सेवा का ऐसा जज्बा कि देश आजाद कराने के लिए स्वतंत्रता सेनानी सुखा सिंह ने नहीं की शादी


देश को आजाद हुए लगभग 73 साल हो चुके हैं जिन स्वतंत्रता सेनानियों के बदले आज हम एक आजाद देश नागरिक कहलाते हैं उन शख्सियत से रूबरू कराने के लिए हमारे खास कार्यक्रम आजादी के परवाने के तहत हम पहुंचे कुरुक्षेत्र जिले के पिहोवा कस्बे मैं यहां नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ आजाद हिंद फौज के सदस्य रहे सुखा सिंह किधर हालांकि सुखा सिंह की 26 अगस्त 2013 को निधन हो चुका है और इनके द्वारा आजादी के किस्से जानने के लिए हमने सुखा सिंह की परिजनों से खास बातचीत की
परिजनों ने बताया कि सुखा सिंह के अंदर देश को गुलामी की जंजीरों से बाहर निकालने का बचपन से ही एक जज्बा था और देश को आजाद कराने के लिए उन्होंने सुभाष चंद्र बोस के साथ विदेशों में जाकर देश को आजाद कराने के लिए कार्य किए जब देश आजाद हुआ तो वह पाकिस्तान में थे और जब देश का बंटवारा हुआ तो वह पाकिस्तान छोड़कर हिंदुस्तान में बस गए


Body:जब हमारी टीम सुखा सिंह के घर पहुंची और पता चला कि सुखा सिंह जी से अपना बेटा कहते थे उनकी खुद की संतान नहीं थी वह उनका भतीजा जरनैल सिंह है जॉइन का वारिस कहलाता है दरअसल सुखा सिंह पर देशभक्ति का जुनून इस कदर छाया हुआ था कि उन्होंने शादी तक नहीं की देश को आजाद कराने के बाद परिजनों ने बताया कि उनकी शादी की उम्र निकल चुकी थी तो उन्होंने अपने भाई के साथ रहने का निर्णय लिया और भाई के निधन के बाद उनके बच्चों की परवरिश भी सुखा सिंह ने खुद की


Conclusion:परिजनों ने जानकारी देते हुए कहा कि सुखा सिंह जब अपनी पेंशन लेकर घर आते थे तो टेंशन का अधिकांश हिस्सा वह जरूरत मंद लोगों में बांट देते थे आजादी के बाद भी देश सेवा का जज्बा उन्हें इस कदर था की गरीब लड़कियों की शादी में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे और लोगों की सेवा भाव में लगे रहते थे पर आज सुखा सिंह के परिवार वालों को सरकार लगभग भूल ही चुकी है परिजनों ने बताया कि देहात के बाद अंतिम विदाई देने के लिए प्रशासन एक बार तो जरूर आया था पर उसके बाद उन्हें अनदेखा ही कर दिया गया 26 जनवरी को या 15 अगस्त के कार्यक्रम पर भी परिजनों को नहीं बुलाया जाता परिजनों का कहना है की उन्हें आर्थिक सहायता की आवश्यकता नहीं है पर एक स्वतंत्रता सेनानी के वारिस होने के नाते उन्हें मान-सम्मान दिया जाना चाहिए
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