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कुरुक्षेत्र में गुरुनानक देव जी ने अमावस्या के दिन जलाई थी आग, जानें क्या है पूरी कहानी

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Published : Nov 8, 2019, 1:55 PM IST

Updated : Nov 8, 2019, 4:30 PM IST

पहली पातशाही श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व को लेकर प्रदेश भर में उत्साह देखने को मिल रहा है. ऐसे में कुरुक्षेत्र के भी कई गांव ऐसे हैं जो गुरु जी की चरणछोह प्राप्त हैं. इन गांवों में भी धार्मिक समागम करवाए जा रहे हैं जिनमें लोग भाग लेकर बाबा नानक जी की बाणी से जुड़ रहे हैं.

कुरुक्षेत्र में गुरुनानक देव जी ने अमावस्या के दिन जालई थी आग

कुरुक्षेत्रः किर्मच रोड पर स्थित पहली पातशाही जगत गुरु श्री गुरु नानक देव जी महाराज के गुरुद्वारा साहिब के दर्शन करने के लिए देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं. इस गुरुद्वारा साहिब की देखरेख और संगत की सेवा करने का काम शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अमृतसर द्वारा किया जाता है.

1558 वैशाख की अमावस्या को पहुंचे गुरु नानक
धर्मनगरी कुरुक्षेत्र एक ऐसा पवित्र स्थल है जो सिख पंथ के लिए भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. इस पावन धरा पर सिखों के 8 गुरु साहिबान ने अपने चरण रखकर इस भूमि को इतिहास के सुनहरे पन्नों में शुमार कर दिया था. इसी भूमि पर सूर्य ग्रहण के समय पहली पातशाही गुरु नानक देव जी महाराज सन 1558 वैशाख की अमावस्या पर पहुंचे थे.

कुरुक्षेत्र में गुरुनानक देव जी ने अमावस्या के दिन जालई थी आग

क्या है मान्यता
गुरुद्वारे के ग्रंथी ने बताया कि 1558 में सिखों के प्रथम गुरु गुरु नानक देव जी कुरुक्षेत्र के ब्रह्मसरोवर स्थित इस जगह पर पहुंचे थे. माना जाता है कि पहले हिंदू धर्म की प्रथा के अनुसार सूर्य ग्रहण के दिन आग नहीं जलाई जाती थी और गुरु नानक देव जी ने यहां ब्रह्मसरोवर के किनारे आग आग जलाकर राजा के द्वारा भेंट में दिया गया मांस भी यहां पकाया था और लोगों को लंगर के रूप में बांटा था. जिसके चलते गुरु नानक देव की यहां रहने वाले एक पंडित के साथ बहस भी हो गई थी.

ये भी पढे़ंः महिलाओं को स्वर्ण मंदिर में शबद कीर्तन की इजाजत, विधानसभा में प्रस्ताव मंजूर

आज भी मौजूद है शिलालेख
ग्रंथी के मुताबिक पंडित और गुरु नानक देव जी के बीच काफी बहस के बाद पंडित को गुरु नानक देव की बातों का प्रभाव पड़ा और जिसके बाद पंडित ने भी सिख धर्म को अपना लिया था गुरुद्वारे के बाहर आज भी एक शिलालेख लिखा हुआ है जिस पर गुरु नानक देव जी के पहुंचने की पूरी कहानी लिखी हुई है.

कुरुक्षेत्रः किर्मच रोड पर स्थित पहली पातशाही जगत गुरु श्री गुरु नानक देव जी महाराज के गुरुद्वारा साहिब के दर्शन करने के लिए देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं. इस गुरुद्वारा साहिब की देखरेख और संगत की सेवा करने का काम शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अमृतसर द्वारा किया जाता है.

1558 वैशाख की अमावस्या को पहुंचे गुरु नानक
धर्मनगरी कुरुक्षेत्र एक ऐसा पवित्र स्थल है जो सिख पंथ के लिए भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. इस पावन धरा पर सिखों के 8 गुरु साहिबान ने अपने चरण रखकर इस भूमि को इतिहास के सुनहरे पन्नों में शुमार कर दिया था. इसी भूमि पर सूर्य ग्रहण के समय पहली पातशाही गुरु नानक देव जी महाराज सन 1558 वैशाख की अमावस्या पर पहुंचे थे.

कुरुक्षेत्र में गुरुनानक देव जी ने अमावस्या के दिन जालई थी आग

क्या है मान्यता
गुरुद्वारे के ग्रंथी ने बताया कि 1558 में सिखों के प्रथम गुरु गुरु नानक देव जी कुरुक्षेत्र के ब्रह्मसरोवर स्थित इस जगह पर पहुंचे थे. माना जाता है कि पहले हिंदू धर्म की प्रथा के अनुसार सूर्य ग्रहण के दिन आग नहीं जलाई जाती थी और गुरु नानक देव जी ने यहां ब्रह्मसरोवर के किनारे आग आग जलाकर राजा के द्वारा भेंट में दिया गया मांस भी यहां पकाया था और लोगों को लंगर के रूप में बांटा था. जिसके चलते गुरु नानक देव की यहां रहने वाले एक पंडित के साथ बहस भी हो गई थी.

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आज भी मौजूद है शिलालेख
ग्रंथी के मुताबिक पंडित और गुरु नानक देव जी के बीच काफी बहस के बाद पंडित को गुरु नानक देव की बातों का प्रभाव पड़ा और जिसके बाद पंडित ने भी सिख धर्म को अपना लिया था गुरुद्वारे के बाहर आज भी एक शिलालेख लिखा हुआ है जिस पर गुरु नानक देव जी के पहुंचने की पूरी कहानी लिखी हुई है.

Intro:पूरी दुनिया में धर्मनगरी कुरुक्षेत्र एक ऐसा पवित्र स्थल है जो सिख पंथ के लिए भी अति महत्वपूर्ण माना जाता है इस पावन धरा पर सिखों के 8 गुरु साहिबान ने अपने चरण रखकर इस भूमि को इतिहास के सुनहरे पन्नों में शुमार कर दिया है।

इसी भूमि पर सूर्य ग्रहण के समय पहली पातशाही गुरु नानक देव जी महाराज संवत 1558 वैशाख की अमावस्या पर पहुंचे थे आज भी किर्मच रोड पर स्थित पहली पातशाही जगत गुरु श्री गुरु नानक देव जी महाराज के गुरुद्वारा साहिब के दर्शन करने के लिए देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं इस गुरुद्वारा साहिब की देखरेख और संगत की सेवा करने का काम शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अमृतसर द्वारा किया जाता है।
गुरुद्वारे के ग्रंथी ने बताया कि 1558 मैं सिखों के प्रथम गुरु गुरु नानक देव जी कुरुक्षेत्र के ब्रह्मसरोवर स्थित इस जगह पर पहुंचे थे और पहले हिंदू धर्म की प्रथा के अनुसार सूर्य ग्रहण के दिन आग नहीं जलाई जाती थी और गुरु नानक देव जी ने यहां ब्रह्मसरोवर के किनारे आग आग जलाकर राजा के द्वारा भेंट में दिया गया मांस भी यहां पकाया था और लोगों को लंगर के रूप में बाटा गया था जिसके चलते गुरु नानक देव की यहां रहने वाले एक पंडित के साथ बहस भी हो गई थी काफी बहस के बाद पंडित को गुरु नानक देव की बातों का प्रभाव पड़ा और जिसके बाद पंडित ने भी सिख धर्म को अपना लिया था गुरुद्वारे के बाहर आज भी एक शिलालेख लिखा हुआ है जिस पर गुरु नानक देव जी के पहुंचने की पूरी कहानी लिखी हुई है।


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Last Updated : Nov 8, 2019, 4:30 PM IST
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