कुरुक्षेत्र: इन दिनों श्राद्ध पक्ष चल रहा है. श्राद्ध पक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए विधिवत रूप से तर्पण और अनुष्ठान करते हैं. पितरों के लिए इन दिनों पूजा-अर्चना भी करते हैं. श्राद्ध पक्ष में विशेष तौर पर पितरों की ही पूजा अर्चना की जाती है और उनकी आत्मा की शांति के लिए पवित्र स्थल पर जाकर लोग उनके लिए पूजा पाठ करवाते हैं.
धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में श्राद्ध का विशेष महत्व: अगर बात करें कुरुक्षेत्र के पेहोवा पृथूदक तीर्थ पर श्रद्धालु दूसरे राज्यों से और विदेशों से आते हैं. श्रद्धालु यहां पर अपने पितरों की शांति के लिए अनुष्ठान करते हैं. श्राद्ध पक्ष के पहले दिन से ही भारी संख्या में श्रद्धालु यहां पर अपने पितरों की आत्मा की शांति और परिवार में खुशहाली के लिए पिंड दान और अनुष्ठान करने के लिए पहुंच रहे हैं. पृथूदक तीर्थ का शास्त्रों में बहुत ही ज्यादा महत्व बताया गया है. मान्यता है कि, जब महाभारत का युद्ध हुआ था उस दौरान पांडवों ने अपने परिजनों की मौत के बाद उनकी आत्मा की शांति के लिए, इसी तीर्थ पर उनके पिंड दान किए थे. मान्यता के अनुसार तभी से इस तीर्थ की काफी मान्यता काफी है.
श्राद्ध पक्ष में दूसरे राज्यों से कुरुक्षेत्र आते हैं श्रद्धालु: तीर्थ पुरोहितों का कहना है 'जैसे हरिद्वार, गया, वाराणसी, इलाहाबाद, बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, मथुरा में आदि में पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंड दान किए जाते हैं. वैसे ही कुरुक्षेत्र के पेहोवा में स्थित पृथूदक तीर्थ का भी बहुत ही ज्यादा महत्व है. श्राद्ध पक्ष में यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंड दान करते हैं. शास्त्रों में बताया गया है कि जो भी व्यक्ति अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए यहां पर आकर पिंडदान करता है, उनकी आत्मा को शांति मिलती है. इसके साथ ही उनके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और परिवार में सुख समृद्धि बनी रहती है.'
श्रद्धा के अनुसार दान-पुण्य: तीर्थ पुरोहित का कहना है 'यह महाभारत काल से ही बना हुआ है. यहां पर कई बड़ी-बड़ी हस्तियां भी अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंड दान करने के लिए आते हैं. अपनी श्रद्धा के अनुसार जो भोजन और दान ब्राह्मण को देते हैं, उसी को श्राद्ध माना जाता है. इस तीर्थ पर पितरों का श्राद्ध करने पर विशेष फल प्राप्त होता है और बहुत ही ज्यादा पुण्यदायी माना जाता है.'
इसलिए पेहोवा में श्राद्ध का है विशेष महात्म्य: तीर्थ पुरोहित ने कहा 'अगर कोई गया में अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंड दान करना चाहता है तो उसको पहले यहां पिंड दान करना पड़ता है. उसके बाद ही गया में पिंड दान गया संपूर्ण माना जाता है. पूरे देश में एकमात्र पेहोवा ऐसा शहर है, जहां पर विधिवत रूप पृथूदक तीर्थ पर श्राद्ध किए जाते हैं और यहीं पर श्राद्ध देव महाराज की मूर्ति भी स्थापित की हुई है, जो महाभारत कालीन बताई जाती है, ऐसी मान्यता है यहां पर श्राद्ध देव साक्षात यमराज के रूप में उपस्थित होते हैं.'
महाभारत कालीन है पीपला का वृक्ष: तीर्थ पुरोहित ने कहा कि यहां तीर्थ पर प्रेत नामक एक पीपल का वृक्ष भी महाभारत काल से खड़ा है. इस प्रेत वृक्ष की मान्यता है कि अगर किसी भी इंसान से अपने पितरों अनुष्ठान में किसी भी प्रकार की गलती हो गई हो या फिर उसे अपने किसी भी पितरों के बारे में जानकारी नहीं हो तो वह सरस्वती नदी से जल लेकर 16 बाल्टी प्रेत पीपल के वृक्ष पर अर्पित करे. इससे इंसान को अपने पितरों के प्रति जो भूल चुक हुई होती है, वह माफ हो जाती है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है. मान्यता है कि प्रेत पीपल वृक्ष पूरे भारत में जितने भी पिंड दान करने वाले तीर्थ हैं, सिर्फ उन सभी में से पृथूदक तीर्थ का काफी महत्व है.
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