कुरुक्षेत्र: अधिकतर लोग धर्मनगरी कुरुक्षेत्र का इतिहास अक्सर महाभारत और गीता से जोड़कर देखते हैं, लेकिन यहां कुछ ऐसे ऐतिहासिक अवशेष भी हैं, जिनसे ये पता चलता है कि अंग्रेजों की हुकूमत में भी तीर्थ स्थलों की काफी मान्यता दी गई थी और कई शासकों ने इसमें अपनी श्रद्धा व्यक्त की.
यही कारण है कि 1855 में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान ब्रह्मसरोवर के तट पर शेरोंवाला घाट बनवाया गया. ब्रह्मसरोवर तट पर बने शेरोंवाला घाट का इतिहास काफी रौचक है. हिंदू मान्यताओं में इसे काफी महत्व दिया गया है, ऐसे में इतिहासकार बताते हैं कि ब्रह्मसरोवर के संरक्षण में अंग्रेजों का काफी योगदान रहा है.
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इतिहासकार बताते हैं कि जब भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने पांव जमाने शुरू किए थे तब तत्कालीन अधिकारियों के द्वारा इसका निर्माण कराया गया था. अगर इसकी निर्माण शैली देखे तो ये मध्यकालीन युग की शैली मानी जाती है. इसमें उर्दू में एक शिलालेख भी लगा हुआ है.
इतिहासकारों के अनुसार ब्रह्मसरोवर को पहले लघु समुद्र भी कहा जाता था. जिस हिसाब से उस समय में इसका काफी विस्तार था. जिसके बाद इसके संरक्षण की प्रक्रिया शुरू हुई और उसके दौरान इसके चारों तरफ निर्माण कार्य शुरू हो गए और इसे सीमित कर दिया गया.
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इतिहासकार राजेंद्र राणा ने बताया कि ब्रह्मसरोवर पर अपने समय के बड़े-बड़े संत और राजा महाराजा स्नान करने के लिए आते थे, इसलिए इसका महत्व और भी बढ़ जाता है. इस घाट की अगर खासियत की बात करें तो ये अपने आप में अनोखा और अनुपम नजर आता है. उस समय भी कुशल कारीगर थे और तत्कालीन जो शासक थे वो जन भावनाओं का ध्यान रखते थे.