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हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज ने पेश की मिसाल, अनाथ और गरीब बच्चों के लिए चला रहे गुरुकुल - पूर्व जस्टिस प्रीतम पाल

आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में जहां किसी के पास वक्त नहीं है वहीं पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज प्रीतम पाल ने मानवता की एक मिसाल कायम की है. रिटायरमेंट के बाद पेंशन के पैसों से वो गरीब और अनाथ बच्चों की पढ़ाई का सारा खर्च उठा रहे हैं.

retired justice of punjab haryana high court running a gurukul for poor children
एक रिटायर्ड जस्टिस के सपनों का गुरुकुल..
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Published : Aug 17, 2020, 11:01 PM IST

कुरुक्षेत्र: स्थित इंद्री रोड लाड़वा में बने गुरुकुल आर्ष महाविद्यालय यज्ञशाला को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस प्रीतम पाल चलाते हैं. अपने पद से रिटायर होने के बाद प्रीतम पाल ने 2011 में इस गुरुकुल का निर्माण किया. यहां करीब 50 बच्चे पढ़ते हैं. पानीपत के रहने वाले रोहित ने बताया कि वो अपनी मर्जी से यहां पढ़ते हैं. रोहित ने कहा कि हमारी शिक्षा भारतीय संस्कृति और वेदों के सिद्धांतों पर आधारित है और इससे उनका अपना भी फायदा और दूसरों को भी जीवन के मूल सिद्धांतों को समझाने में मदद मिलेगी.

क्लिक कर देखें रिपोर्ट

'अपना फर्ज निभा रहा हूं'

इस गुरुकुल के कर्ता-धर्ता प्रीतम पाल बताते हैं कि उन्होंने पहले ही ये सोच लिया था, कि रिटायरमेंट के बाद जब उन्हें वक्त मिलेगा तब वो समाज के लिए कुछ करना चाहेंगे. उन्होंनें बताया कि वो अपना फर्ज निभा रहे हैं, क्योंकि उन्होंने जिस तरह से शिक्षा प्राप्त की और जैसे विचार उन्हें मिले, बस उसी विचारों के कारण आज ये मुकाम हासिल कर सके हैं.

पेंशन से चल रहा गुरुकुल

छात्रों के खाने से पीने से लेकर कपड़ों और पढ़ाई तक का खर्च प्रीतम पाल उठाते हैं. रिटायर्ड जस्टिस प्रीतम पाल ने बताया कि उन्हें इस समय 90 हजार की पेंशन मिलती है और उनका खर्च कोई खास नहीं है. पेंशन में से 60 हजार रुपए वो गुरुकुल के आचार्य को देते हैं, जिससे की छात्रों की तमाम जरुरतों को पूरा किया जाता है.

हर वीकेंड गुरुकुल में बिताते हैं प्रीतम पाल

इस समय ग्रीन ट्रिब्यूनल की मॉनिटरिंग कमेटी के चेयरमैन के पद पर आसीन प्रीतम पाल हर वीकेंड पर गुरुकुल 2 दिन के लिए आते हैं और बच्चों के साथ समय बिताते हैं. गुरुकुल में 5 गायों को भी रखा गया है जिससे कि छात्रों के लिए दूध की पूर्ति की जाती है. प्रीतम पाल का मानना है कि आज के दौर में हम बड़ी-बड़ी शिक्षा तो ग्रहण कर लेते हैं, लेकिन हमारे गुरु और परंपरागत ज्ञान नहीं होने के कारण संपूर्ण मानव बनने से अछूते रह जाते हैं.

पढ़ें- अनलॉक से बुटीक वालों की जगी उम्मीदें, काम करने के निकाले नए तरीके, देखिए ये रिपोर्ट

वैसे भी भारतीय संस्कृति के मूल वेदों को ही कहा गया है. ये हमारे सबसे पुराने धर्म-ग्रन्थ हैं और हिन्दू धर्म का मुख्य आधार भी, न केवल धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी वेदों का असाधारण महत्त्व है. वैदिक युग के आर्यों की संस्कृति और सभ्यता जानने का एकमात्र साधन यही है.

कुरुक्षेत्र: स्थित इंद्री रोड लाड़वा में बने गुरुकुल आर्ष महाविद्यालय यज्ञशाला को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस प्रीतम पाल चलाते हैं. अपने पद से रिटायर होने के बाद प्रीतम पाल ने 2011 में इस गुरुकुल का निर्माण किया. यहां करीब 50 बच्चे पढ़ते हैं. पानीपत के रहने वाले रोहित ने बताया कि वो अपनी मर्जी से यहां पढ़ते हैं. रोहित ने कहा कि हमारी शिक्षा भारतीय संस्कृति और वेदों के सिद्धांतों पर आधारित है और इससे उनका अपना भी फायदा और दूसरों को भी जीवन के मूल सिद्धांतों को समझाने में मदद मिलेगी.

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'अपना फर्ज निभा रहा हूं'

इस गुरुकुल के कर्ता-धर्ता प्रीतम पाल बताते हैं कि उन्होंने पहले ही ये सोच लिया था, कि रिटायरमेंट के बाद जब उन्हें वक्त मिलेगा तब वो समाज के लिए कुछ करना चाहेंगे. उन्होंनें बताया कि वो अपना फर्ज निभा रहे हैं, क्योंकि उन्होंने जिस तरह से शिक्षा प्राप्त की और जैसे विचार उन्हें मिले, बस उसी विचारों के कारण आज ये मुकाम हासिल कर सके हैं.

पेंशन से चल रहा गुरुकुल

छात्रों के खाने से पीने से लेकर कपड़ों और पढ़ाई तक का खर्च प्रीतम पाल उठाते हैं. रिटायर्ड जस्टिस प्रीतम पाल ने बताया कि उन्हें इस समय 90 हजार की पेंशन मिलती है और उनका खर्च कोई खास नहीं है. पेंशन में से 60 हजार रुपए वो गुरुकुल के आचार्य को देते हैं, जिससे की छात्रों की तमाम जरुरतों को पूरा किया जाता है.

हर वीकेंड गुरुकुल में बिताते हैं प्रीतम पाल

इस समय ग्रीन ट्रिब्यूनल की मॉनिटरिंग कमेटी के चेयरमैन के पद पर आसीन प्रीतम पाल हर वीकेंड पर गुरुकुल 2 दिन के लिए आते हैं और बच्चों के साथ समय बिताते हैं. गुरुकुल में 5 गायों को भी रखा गया है जिससे कि छात्रों के लिए दूध की पूर्ति की जाती है. प्रीतम पाल का मानना है कि आज के दौर में हम बड़ी-बड़ी शिक्षा तो ग्रहण कर लेते हैं, लेकिन हमारे गुरु और परंपरागत ज्ञान नहीं होने के कारण संपूर्ण मानव बनने से अछूते रह जाते हैं.

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वैसे भी भारतीय संस्कृति के मूल वेदों को ही कहा गया है. ये हमारे सबसे पुराने धर्म-ग्रन्थ हैं और हिन्दू धर्म का मुख्य आधार भी, न केवल धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी वेदों का असाधारण महत्त्व है. वैदिक युग के आर्यों की संस्कृति और सभ्यता जानने का एकमात्र साधन यही है.

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