कुरुक्षेत्र: आज पूरे देश में कृष्ण जन्माष्टमी पूरे धूमधाम से मनाई जा रही (Janamashtami 2022) है. आज के दिन कृष्ण भगवान का जन्म हुआ था. कुरुक्षेत्र से कृष्ण भगवान का खास रिश्ता जुड़ा हुआ है. हालांकि ज्यादातर लोग सिर्फ यही जानते है कि कृष्ण भगवान ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को महाभारत युद्ध में गीता का उपदेश दिया था लेकिन उससे पहले भी कृष्ण अपनी बाल्यावस्था में कुरुक्षेत्र आ चुके हैं. तब कृष्ण 5 वर्ष के थे. उस दौरान भगवान कृष्ण और उनके भाई बलराम का मुंडन कुरुक्षेत्र में ही एक बड़े वटवृक्ष के नीचे किया गया (Lord Krishna Mundan Rites) था. जहां उनका मुंडन हुआ था वो स्थान है देवीकूप भद्रकाली शक्तिपीठ.
5500 साल पुराना वटवृक्ष- दरअसल कुरुक्षेत्र के देवीकूप भद्रकाली शक्तिपीठ में एक वटवृक्ष वृक्ष है. यह वटवृक्ष मंदिर में आज भी मौजूद है. जो 5500 वर्ष पुराना बताया जाता है. इस वृक्ष की काफी मान्यता है. भगवान कृष्ण और उनके भाई बलराम का मुंडन संस्कार हुआ (Lord Krishna and Balram Mundan Rites) था. इसी कारण से लोग अपने बच्चे का मुंडन कराने के लिए दूरदराज के क्षेत्र से इस मंदिर में आते है. यहां एक खूबसूरत सा तालाब है. जिसके एक छोर पर तक्षेश्वर महादेव मंदिर भी है. जिसके कारण इस जगह का महत्व और ज्यादा माना जाता है.
कृष्ण की कर्म भूमि- माना जाता है कि देवीकूप भद्रकाली माता मंदिर का संबंध महाभारत के युद्ध और भगवान श्री कृष्ण से है. महाभारत के युद्ध में इस मंदिर की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका थी. जानकारों की मानें तो इस स्थान से पहले सरस्वती नदी गुजरती थी और यह स्थान सरस्वती नदी के किनारे पर था. मुंडन संस्कार के बाद बलराम और श्री कृष्ण अपनी शिक्षा और दीक्षा के लिए यहां से वापस लौट गए थे. उसके बाद भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि से कर्म का संदेश दिया था जिसे गीता का ज्ञान कहा जाता है. इस स्थान का धार्मिक महत्व आज भी लोगों के लिए जस का तस बना हुआ है.
52 शक्तिपीठों में से एक है माता का ये मंदिर- कुरुक्षेत्र में स्थित देवीकूप भद्रकाली का यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक (DeviKoop Bhadrakali Shaktipeeth Kurukshetra) है. इस मंदिर को देवीकूप भद्रकाली शक्तिपीठ के नाम से जाना (DeviKoop Bhadrakali Shaktipeeth) जाता है. देवी के 52 शक्ति पीठ बनने के पीछे की जो पौराणिक कथा है उसके अनुसार जब माता सती ने पिता के अपशब्दों से आहत होकर आत्मदाह किया तो भगवान शिव उनके वियोग को सह नहीं सके.
भगवान शिव उनका शरीर लेकर ब्रम्हांड में घूमने लगे. तब भगवान् विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उस शरीर को 52 खण्डों में विभाजित कर दिया. सभी 52 खंड पृथ्वी पर अलग-अलग स्थान पर जाकर गिरे जिससे उन स्थानों पर शक्तिपीठ का निर्माण हुआ. इस स्थान पर माता सती के दाहिने पैर के घुटने के नीचे का भाग गिरा था. इसी कारण से इस मंदिर का पौराणिक महत्व है. यहां साल की दोनों नवरात्रि का पर्व बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है.