कुरुक्षेत्र: भगवान शिव का प्रिय महीना सावन अब खत्म होने में कुछ ही दिन शेष रह गए हैं. सावन में वैसे तो हर दिन शिवालयों में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन सोमवार के दिन शिव मंदिर में भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. ऐसे में शिव मंदिर की बात हो और कुरुक्षेत्र का जिक्र ना हो तो यह भला कैसे संभव है. वैसे ते कुरुक्षेत्र का नाम आते ही लोगों के जेहन में महाभारत याद आती है, क्योंकि कुरुक्षेत्र को महाभारत के युद्ध के लिए जाना जाता है. इसके चलते कुरुक्षेत्र को धर्मनगरी कुरुक्षेत्र कहा जाता है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि कुरुक्षेत्र में भगवान भोलेनाथ का एक ऐसा अद्भुत मंदिर भी जहां शिवलिंग बिना नदी के विराजमान हैं.
ये भी पढ़ें: Raksha Bandhan 2023: रक्षाबंधन पर भद्रा काल का साया, जानिए राखी बांधने का शुभ मुहूर्त
कुरुक्षेत्र में कालेश्वर महादेव मंदिर: कुरुक्षेत्र में स्थित इस मंदिर को कालेश्वर महादेव मंदिर कहा जाता है. यहां के पंडित का मानना है कि यह कालेश्वर महादेव मंदिर भारत ही नहीं विश्व का एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां पर शिवलिंग बिना नदी महाराज के विराजमान है. जहां भी भगवान भोलेनाथ के मंदिर है वहां हर मंदिर और शिवलिंग के साथ नंदी महाराज की प्रतिमा स्थापित की हुई है लेकिन यहां पर नंदी की प्रतिमा स्थापित नहीं है. हालांकि मंदिर के पंडित का मानना है कि यहां पर कुछ दशक पहले नदी स्थापित करने की सोची गई थी लेकिन उसे समय मंदिर पर विपदा पड़ गई थी जिसके चलते नंदी स्थापित नहीं की . इस मंदिर की कहानी मान्यताएं हैं जिसके चलते यहां पर दूरदराज से श्रद्धालु भोलेनाथ के दर्शन करने के लिए आते हैं.
कालेश्वर महादेव मंदिर में बिना नंदी के शिवलिंग: कालेश्वर महादेव मंदिर के मुख्य पुजारी श्रद्धानंद मिश्रा ने बताया कि, यह बहुत ही प्राचीन मंदिर है जो महाभारत काल, रामायण काल से भी पहले का बना हुआ है. मान्यता है कि यहां पर भगवान भोलेनाथ शिवलिंग के रूप में खुद अवतरित हुए थे. इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग के साथ नंदी महाराज विराजमान नहीं है.
ये भी पढ़ें: जानिए कुरुक्षेत्र की 48 कोस भूमि का महत्व, यहां चार कोने पर रहता है यक्षों का पहरा
मंदिर को लेकर पौराणिक मान्यता: पुजारी श्रद्धानंद मिश्रा ने कहा कि, इसकी एक पौराणिक कहानी है. पौराणिक कथाओं के अनुसार रामायण काल से पहले लंकापति रावण आकाशीय मार्ग से गुजर रहे थे और जिस पुष्पक विमान में लंकापति रावण सवार होकर आकाशीय मार्ग से जा रहे थे तो वहां कुरुक्षेत्र के बालेश्वर महादेव मंदिर के ऊपर आते ही डगमगा गया. हालांकि उस समय यहां पर मंदिर नहीं था. पौराणिक कथाओं के अनुसार उसे समय सिर्फ यहां पर शिवलिंग ही स्थापित था. जब उनका विमान डगमगाया तो उन्होंने सोचा कि नीचे ऐसी क्या शक्ति है, जिसकी वजह से उनका विमान डगमगा रहा है. उन्होंने नीचे आकर देखा तो वहां पर उन्होंने शिवलिंग पाया. उसके बाद लंकापति रावण यहां पर बैठकर भोलेनाथ की तपस्या करने लगे. उनकी घोर तपस्या को देख भोलेनाथ प्रकट हुए लंकापति रावण से वर मांगने को कहा उस दौरान लंकापति रावण ने कहा कि, मैं आपसे जो भी वर मांग लूंगा इसका साक्षी कोई तीसरा नहीं होना चाहिए, जिसके चलते महादेव ने नंदी महाराज को वहां से दूर जाने को कहा. उसके बाद लंकापति रावण ने भगवान भोलेनाथ से काल पर विजय का वर मांगा था. मान्यता है कि, उसके बाद से ही यहां शिवलिंग स्थापित है.
शिवलिंग पर जल अर्पित करने से मिलती है अकाल मृत्यु से मुक्ति!: कालेश्वर महादेव मंदिर के मुख्य पुजारी ने कहा कि, इस मंदिर में भारत ही नहीं विदेशों से भी श्रद्धालु भोलेनाथ के दर्शन करने के लिए आते हैं. यह हिंदू धर्म के लोगों के लिए आस्था का मुख्य केंद्र है. धार्मिक आस्था के अनुसार ही मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु कालेश्वर महादेव मंदिर में शनिवार और सोमवार को शिवलिंग पर जल अर्पित करता है, उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती. क्योंकि भगवान भोलेनाथ से लंकापति रावण ने यही से काल पर विजय वरदान मांगा था. तब से यह मान्यता चलती आ रही है. मंदिर के मुख्य पुजारी का कहना है कि, जो भी शिव भक्त यहां पर भगवान भोलेनाथ की आराधना करने के लिए आते हैं, भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करने से मनोकामना की पूर्ति होती है.
सरस्वती नदी के तट पर स्थापित है कालेश्वर महादेव मंदिर: कालेश्वर महादेव मंदिर कालेश्वर तीर्थ के किनारे पर स्थित है, जहां पर कालेश्वर तीर्थ में एक तालाब भी है. यह तीर्थ सरस्वती नदी के तट पर स्थापित है. मान्यता है कि यहां पर दूर-दूर से श्रद्धालु स्नान करने आते हैं जिसके चलते उनके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. जिसके चलते यहां पर शनिवार और सोमवार के दिन में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. मंदिर के मुख्य पुजारी ने बताया कि, वैसे तो यहां पर साल भर भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. लेकिन, सावन के महीने में मंदिर स्थापित शिवलिंग पर जल चढ़ाने के बाद पूजा करने का विशेष महत्व होता है. इसलिए सावन के महीने में यहां पर श्रद्धालुओं की लंबी-लंबी कतारें लग जाती हैं.