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गीता जयंती में आकर्षण का केंद्र बने जंगम जोगी साधु, हाथ में नहीं लेते दान, बस करते हैं शिव का गुणगान - जंगम जोगी की कहानी

हरियाणा के कुरुक्षेत्र में अंतर्रराष्ट्रीय गीता जयंती महोतस्व (Gita Jayanti Mahotsav Kurukshetra) शुरु हो चुका है. इस महोत्सव में कुछ साधु-संत अपने स्वरूप और विशेषता के कारण लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. वहीं जंगम जोगी भी सिर पर मोर मुकुट बांध भगवान शिव का गुणगान कर लाखों की भीड़ में अपनी अलग अलख जगा रहे हैं.

Jangam Jogi Performing Gita jayanti Mahotsav
गीता जयंती में आकर्षण का केंद्र बने जंगम जोगी साधु, हाथ में नहीं लेते दान, बस करते हैं शिव का गुणगान
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Published : Dec 10, 2021, 9:40 PM IST

कुरुक्षेत्र: धर्मनगरी में इन दिनों आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव का आयोजन चल रहा है. इसमें कुछ साधु-संत अपने स्वरूप और विशेषता के कारण लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. वहीं जंगम जोगी भी कुरुक्षेत्र में हो रहे गीता जयंती महोत्सव में सिर पर मोर मुकुट बांध भगवान शिव का गुणगान कर लाखों की भीड़ में अपनी अलग अलख जगा रहे (Jangam Jogi Performing in Gita jayanti Mahotsav) हैं.

सिखों से मिलती-जुलती वेशभूषा, सिर पर दशनामी पगड़ी के साथ काली पट्टी पर बंधे तांबे पीतल से बने गुलदान में मोर के पंख का गुच्छा सामने की ओर, सर्प निशान के कुर्ते पहने और हाथ में खझंड़ी, मजीरा, घंटियां लिए साधुओं का दल अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव (International Gita Jayanti Mahotsav Kurukshetra) में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. ये जंगम जोगी हरियाणा के जींद से आया (Jangam Jogi In Haryana) है.

गीता जयंती में आकर्षण का केंद्र बने जंगम जोगी साधु, हाथ में नहीं लेते दान, बस करते हैं शिव का गुणगान

ये भी पढ़ें-अंतर्राष्ट्रीय गीता जयंती महोत्सव में दिखा राजस्थानी लोकनृत्य कालबेलिया, झूम उठे दर्शक

इन्होंने बताया कि जंगम कलयुग के देवता होते हैं. जंगम जोगियों की टोली सुबह से ही अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में समूह बनाकर जाते हैं और शिव का गुणगान करते हैं. उन पर कोई एक लाख रुपये तो कोई फूल चढ़ाता है. इसे वह घंटी में ग्रहण करते हैं. उन्होंने बताया कि इस जंगम संप्रदाय के देशभर में करीब 5000 संत हैं. वह देशभर के कार्यक्रमों में घूमते रहते हैं. वहां शिव का गुणगान करते हैं. इनकी सबसे ज्यादा संख्या गुजरात, पंजाब और हरियाणा में है. चढ़ाई गई दक्षिणा को अच्छे कार्यों में लगाते हैं. वह इन पैसों से गरीब लड़कियों की शादी, मंदिरों पर अन्य अच्छे कार्यों में खर्च करते हैं.

जोगी डेरू ने बताया कि मान्यता है कि भगवान शिव ने कहा था कि कभी माया को हाथ में नहीं लेना. इसलिए दान भी हाथ में नहीं लेते. हाथ में घंटी जिसे उंल्ट कहा जाता है उसमें दक्षिणा लेते हैं. घंटी में दक्षिणा लेने की अपनी एक लंबी कहानी है. उन्होंने बताया कि ऐसी मान्यता है कि जंगम जोगियों की उत्पत्ति शिव पार्वती के विवाह में हुई थी जब भगवान शिव ने भगवान विष्णु एवं बर्मा को विवाह कराने की दक्षिणा देनी चाही तो उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया. तब भगवान शिव ने अपनी जाग को पीटकर जंगम साधु को उत्पन्न किया. उन्होंने ही महादेव से दान लेकर विवाह में गीत गाए और शेष रश्म पूरी कराई.

ये भी पढ़ें- अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव का होगा भव्य आगाज, संध्या आरती कर शिक्षा मंत्री कंवर पाल गुर्जर करेंगे शुरुआत

जंगम जोगियों का स्वरूप बहुत ही अलग होता है. इसलिए यह लोग के आकर्षण का केंद्र भी होते हैं. मान्यता है कि भगवान शिव के विवाह में जंगम जोगिया ने गीत गाने के साथ अन्य रस्में भी निभाई थी जिससे खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें मुकुट और नाग प्रदान कर दिया. इसके अलावा माता पार्वती ने कर्णफूल दिए, नंदी ने घंटी दी, विष्णु ने मोर पंख दिए और ब्रह्मा जी ने जनेऊ दिया इससे इनका स्वरूप बना. इसलिए इन्हें कलयुग का देवता कहा जाता है. तब से यह प्रोग्रामों में जाकर शिव का गुणगान करते आ रहे हैं. यह सफेद केसरिया कपड़े पहनते हैं.



जंगम साधु अपनी अलग अनूठी अभिनय संवाद शैली में कार्यक्रमों में गौरव गाथा के साथ ही शिव की कथा भी अत्यंत रोचक तरीके से सुनाते हैं. इनका काम दस नाम सन्यास की परंपरा का गुणगान करना है. यह पूर्वजों से लेकर अब तक की कहानी इस तरह गाते हैं कि सुनने वाला मंत्रमुग्ध होकर व सुनता ही रहे. जंगम जोगियों के परिवार में बचपन से ही बच्चों को शिव पुराण, शिव स्त्रोत आदि याद कराए जाते हैं. जंगम जोगियों के परिवार के सदस्य ही इस परंपरा को आगे बढ़ा सकते हैं. कोई बाहरी व्यक्ति इस परंपरा में शामिल नहीं हो सकता. इन जंगम जोगियों ने ही अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव पर पूरा रंग बनाया हुआ है. इसे अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव पर आए हुए लोग इनके भजनों का पूरा आनंद उठाते हैं और यह शिव के भजन उनको सुनाते हैं.

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कुरुक्षेत्र: धर्मनगरी में इन दिनों आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव का आयोजन चल रहा है. इसमें कुछ साधु-संत अपने स्वरूप और विशेषता के कारण लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. वहीं जंगम जोगी भी कुरुक्षेत्र में हो रहे गीता जयंती महोत्सव में सिर पर मोर मुकुट बांध भगवान शिव का गुणगान कर लाखों की भीड़ में अपनी अलग अलख जगा रहे (Jangam Jogi Performing in Gita jayanti Mahotsav) हैं.

सिखों से मिलती-जुलती वेशभूषा, सिर पर दशनामी पगड़ी के साथ काली पट्टी पर बंधे तांबे पीतल से बने गुलदान में मोर के पंख का गुच्छा सामने की ओर, सर्प निशान के कुर्ते पहने और हाथ में खझंड़ी, मजीरा, घंटियां लिए साधुओं का दल अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव (International Gita Jayanti Mahotsav Kurukshetra) में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. ये जंगम जोगी हरियाणा के जींद से आया (Jangam Jogi In Haryana) है.

गीता जयंती में आकर्षण का केंद्र बने जंगम जोगी साधु, हाथ में नहीं लेते दान, बस करते हैं शिव का गुणगान

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इन्होंने बताया कि जंगम कलयुग के देवता होते हैं. जंगम जोगियों की टोली सुबह से ही अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में समूह बनाकर जाते हैं और शिव का गुणगान करते हैं. उन पर कोई एक लाख रुपये तो कोई फूल चढ़ाता है. इसे वह घंटी में ग्रहण करते हैं. उन्होंने बताया कि इस जंगम संप्रदाय के देशभर में करीब 5000 संत हैं. वह देशभर के कार्यक्रमों में घूमते रहते हैं. वहां शिव का गुणगान करते हैं. इनकी सबसे ज्यादा संख्या गुजरात, पंजाब और हरियाणा में है. चढ़ाई गई दक्षिणा को अच्छे कार्यों में लगाते हैं. वह इन पैसों से गरीब लड़कियों की शादी, मंदिरों पर अन्य अच्छे कार्यों में खर्च करते हैं.

जोगी डेरू ने बताया कि मान्यता है कि भगवान शिव ने कहा था कि कभी माया को हाथ में नहीं लेना. इसलिए दान भी हाथ में नहीं लेते. हाथ में घंटी जिसे उंल्ट कहा जाता है उसमें दक्षिणा लेते हैं. घंटी में दक्षिणा लेने की अपनी एक लंबी कहानी है. उन्होंने बताया कि ऐसी मान्यता है कि जंगम जोगियों की उत्पत्ति शिव पार्वती के विवाह में हुई थी जब भगवान शिव ने भगवान विष्णु एवं बर्मा को विवाह कराने की दक्षिणा देनी चाही तो उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया. तब भगवान शिव ने अपनी जाग को पीटकर जंगम साधु को उत्पन्न किया. उन्होंने ही महादेव से दान लेकर विवाह में गीत गाए और शेष रश्म पूरी कराई.

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जंगम जोगियों का स्वरूप बहुत ही अलग होता है. इसलिए यह लोग के आकर्षण का केंद्र भी होते हैं. मान्यता है कि भगवान शिव के विवाह में जंगम जोगिया ने गीत गाने के साथ अन्य रस्में भी निभाई थी जिससे खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें मुकुट और नाग प्रदान कर दिया. इसके अलावा माता पार्वती ने कर्णफूल दिए, नंदी ने घंटी दी, विष्णु ने मोर पंख दिए और ब्रह्मा जी ने जनेऊ दिया इससे इनका स्वरूप बना. इसलिए इन्हें कलयुग का देवता कहा जाता है. तब से यह प्रोग्रामों में जाकर शिव का गुणगान करते आ रहे हैं. यह सफेद केसरिया कपड़े पहनते हैं.



जंगम साधु अपनी अलग अनूठी अभिनय संवाद शैली में कार्यक्रमों में गौरव गाथा के साथ ही शिव की कथा भी अत्यंत रोचक तरीके से सुनाते हैं. इनका काम दस नाम सन्यास की परंपरा का गुणगान करना है. यह पूर्वजों से लेकर अब तक की कहानी इस तरह गाते हैं कि सुनने वाला मंत्रमुग्ध होकर व सुनता ही रहे. जंगम जोगियों के परिवार में बचपन से ही बच्चों को शिव पुराण, शिव स्त्रोत आदि याद कराए जाते हैं. जंगम जोगियों के परिवार के सदस्य ही इस परंपरा को आगे बढ़ा सकते हैं. कोई बाहरी व्यक्ति इस परंपरा में शामिल नहीं हो सकता. इन जंगम जोगियों ने ही अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव पर पूरा रंग बनाया हुआ है. इसे अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव पर आए हुए लोग इनके भजनों का पूरा आनंद उठाते हैं और यह शिव के भजन उनको सुनाते हैं.

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