ETV Bharat / state

Shradh Paksha 2023: जानिए कुरुक्षेत्र की 48 कोस भूमि का महत्व, यहां मिलती है आत्मा को मुक्ति, चार कोने पर रहता है यक्षों का पहरा - Mahabharat in Kurukshetra

Shradh Paksha 2023 पितरों की आत्मा की शांति के पर्व पितृपक्ष में अब कुछ ही दिन शेष रह गया है. कुरुक्षेत्र की 48 कोस भूमि की महत्ता का वर्णन शास्त्रों में भी मिलता है. मान्यता है कि उस समय श्री कृष्ण भगवान अर्जुन के साथ महाभारत युद्ध के लिए भूमि खोज रहे थे. उसी दौरान कुरुक्षेत्र में पहुंचे और इस भूमि का चयन किया. 48 कोस भूमि हरियाणा के 5 जिलों में फैली हुई है. कहते हैं यहां चार कोने पर 4 यक्ष पहरा देते हैं. मान्यता है कि यहां मृत्यु होने पर आत्मा को मुक्ति मिलती है. (Importance of 48 kos of Kurukshetra)

Importance of 48 kos of Kurukshetra
कुरुक्षेत्र की 48 कोस भूमि का महत्व
author img

By

Published : Jun 6, 2023, 9:48 AM IST

Updated : Sep 21, 2023, 2:05 PM IST

क्या है कुरुक्षेत्र की 48 कोस भूमि का महत्व.

कुरुक्षेत्र: हरियाणा के कुरुक्षेत्र का नाम आते ही लोगों के जेहन में महाभारत की याद आती है. मान्यता है कि महाभारत के दौरान जब अर्जुन ने अपने सामने युद्ध में अपने सगे संबंधियों को देखकर अपना गांडीव रख दिया था, उस दौरान श्री कृष्ण ने यहीं अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. महाभारत के युद्ध के दौरान जहां-जहां पर महाभारत का युद्ध हुआ, उस भूमि को कुरुक्षेत्र की 48 कोस भूमि कहा जाता है.

Importance of 48 kos of Kurukshetra
48 कोस की भूमि में है 367 तीर्थ स्थल.

48 कोस भूमि का महत्व: पंडित विश्वनाथ कहते हैं कि, शास्त्रों में बताया गया है कि 48 कोस भूमि का बहुत ही ज्यादा महत्व है. वैदिक युग में भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत में अर्जुन को गीता का उपदेश कुरुक्षेत्र के ज्योतिसर में दिया था. शास्त्रों में बताया गया है कि जिस दौरान महाभारत का युद्ध होना था उस समय श्री कृष्ण भगवान अर्जुन के साथ युद्ध करने के लिए भूमि खोज रहे थे. उसी दौरान कुरुक्षेत्र में पहुंचे और यहां की भूमि को उन्होंने चुना. माना जाता है कि यह काफी कुष्ठ भूमि हुआ करती थी. इसलिए महाभारत के युद्ध के लिए श्री कृष्ण ने इस भूमि को ही चुना और महाभारत का युद्ध होने के बाद यह भूमि एकदम से पवित्र हो गई.

Importance of 48 kos of Kurukshetra
गीता उपदेश स्थल.

5 जिलों में फैली है 48 कोस भूमि: 48 कोस भूमि पांच जिलों तक फैली हुई है. जो भी श्रद्धालु यहां पर दर्शन करने के लिए आते हैं उनके कुरुक्षेत्र भ्रमण के दर्शन तभी संपन्न माने जाते हैं जब वह 48 कोस भूमि के सभी तीर्थों की परिक्रमा कर लेते हैं. 48 कोस भूमि कुरुक्षेत्र के पीपली से शुरू होकर कैथल से होती हुई जींद उसके बाद पानीपत और करनाल तक फैली हुई है. कहते हैं कि जहां-जहां पर उस दौरान योद्धा लड़ाई लड़ते गए वह वह भूमि 48 कोस की भूमि में शामिल हो गई.

Importance of 48 kos of Kurukshetra
5 जिलों में फैली है 48 कोस भूमि.

48 कोस भूमि पर 4 यक्ष का पहरा!: महाभारत के अनुसार कुरुक्षेत्र की 48 कोस भूमि पर 4 यक्ष का पहरा रहता है. जो द्वारपाल का काम करते हैं. यह चारों यक्ष चारों दिशाओं में बैठे हुए हैं. पहला यक्ष कुरुक्षेत्र के पीपली में सरस्वती नदी के किनारे पर उत्तर पश्चिम दिशा में बैठा हुआ है जिसका नाम अरंतुक है. दूसरे जगह का नाम कपिल यक्ष है जो जींद जिले के पोकरी खेड़ी नामक स्थान पर दक्षिणी पश्चिमी सीमा पर स्थित है. तीसरा यक्ष दक्षिणी पूर्वी सीमा पर पानीपत जिले के शेख नामक ग्राम में मचकुक यक्ष के नाम से है. चौथा यक्ष कुरुक्षेत्र के अभिमन्यु पुर गांव में स्थित है. मान्यता है कि यह महाभारत काल में द्वारपाल का काम करते थे और इन्हीं की आज्ञा के बाद ही 48 कोस की भूमि में इंसान से लेकर देवी देवता तक आते थे.

Importance of 48 kos of Kurukshetra
48 कोस भूमि पर 4 यक्ष का पहरा.

48 कोस भूमि में मृत्यु होने पर अस्थि विसर्जन के लिए नहीं जाना पड़ता गंगा: महाभारत का युद्ध होने के बाद यहां पर लाखों की संख्या में सैनिक और बड़े बड़े योद्धा मारे गए थे जिनकी आत्मा को शांति देने के लिए उनका अर्थी विसर्जन कुरुक्षेत्र के 48 कोस भूमि पर ही किया गया था. मान्यता है कि तभी से इस भूमि को पवित्र भूमि कहा जाने लगा. क्योंकि अगर कोई भी मनुष्य 48 कोस की भूमि में मरता है तो उसकी आत्मा को मुक्ति मिल जाती है. इसलिए यहां पर महाभारत के बाद से ही प्रथा चलती आ रही है जो भी इंसान 48 कोस की भूमि पर मरता है उसकी अस्थि विसर्जन करने के लिए गंगा या किसी अन्य पवित्र कुंड में जाने की बजाय उनके गांव में या शहर में ही बने तालाब में प्रवाहित कर दिया जाता है. यहीं से उनकी आत्मा को मुक्ति मिल जाती है.

Importance of 48 kos of Kurukshetra
मंदिर परिसर में बाणों की शैय्या पर लेटे हुए भीष्म पितामह.

48 कोस की भूमि में है 367 तीर्थ स्थल: 48 कोस की भूमि 5 जिलों तक फैली हुई है. जिसमें 367 तीर्थ स्थल शामिल है. इन तीर्थ स्थलों को महाभारत काल के वीर योद्धा, देवी देवता और ऋषि मुनियों के नाम से ही जाना जाता है. इन्हीं ऋषि मुनियों के नाम से ही 48 कोस की भूमि में कई गांव और शहरों के नाम भी रखे हुए हैं. 48 कोस भूमि की देखरेख कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड रख रहा है.

Importance of 48 kos of Kurukshetra
कुरुक्षेत्र की 48 कोस भूमि.

48 कोस भूमि में बने तीर्थ स्थलों की परिक्रमा के लिए आते हैं लाखों श्रद्धालु: कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड का गठन तत्कालीन प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा ने इसकी महत्ता को समझते हुए किया था. ताकि महाभारत स्थली को संजो कर रखा जाए और उसके बाद से अब तक कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड ही इन सभी तीर्थों की देखरेख कर रहा है. 48 कोस भूमि में बने तीर्थ स्थलों की परिक्रमा करने के लिए हर वर्ष कुरुक्षेत्र में लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. इसलिए 48 कोस भूमि का हिंदू धर्म के लोगों के लिए बहुत ज्यादा ही महत्व है.

ये भी पढ़ें: नलहरेश्वर महादेव मंदिर: स्वयंभू का एक ऐसा स्थान जहां कदम के पेड़ से लगातार निकलता है पानी, भगवान श्री कृष्ण से विशेष संबंध

क्या है कुरुक्षेत्र की 48 कोस भूमि का महत्व.

कुरुक्षेत्र: हरियाणा के कुरुक्षेत्र का नाम आते ही लोगों के जेहन में महाभारत की याद आती है. मान्यता है कि महाभारत के दौरान जब अर्जुन ने अपने सामने युद्ध में अपने सगे संबंधियों को देखकर अपना गांडीव रख दिया था, उस दौरान श्री कृष्ण ने यहीं अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. महाभारत के युद्ध के दौरान जहां-जहां पर महाभारत का युद्ध हुआ, उस भूमि को कुरुक्षेत्र की 48 कोस भूमि कहा जाता है.

Importance of 48 kos of Kurukshetra
48 कोस की भूमि में है 367 तीर्थ स्थल.

48 कोस भूमि का महत्व: पंडित विश्वनाथ कहते हैं कि, शास्त्रों में बताया गया है कि 48 कोस भूमि का बहुत ही ज्यादा महत्व है. वैदिक युग में भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत में अर्जुन को गीता का उपदेश कुरुक्षेत्र के ज्योतिसर में दिया था. शास्त्रों में बताया गया है कि जिस दौरान महाभारत का युद्ध होना था उस समय श्री कृष्ण भगवान अर्जुन के साथ युद्ध करने के लिए भूमि खोज रहे थे. उसी दौरान कुरुक्षेत्र में पहुंचे और यहां की भूमि को उन्होंने चुना. माना जाता है कि यह काफी कुष्ठ भूमि हुआ करती थी. इसलिए महाभारत के युद्ध के लिए श्री कृष्ण ने इस भूमि को ही चुना और महाभारत का युद्ध होने के बाद यह भूमि एकदम से पवित्र हो गई.

Importance of 48 kos of Kurukshetra
गीता उपदेश स्थल.

5 जिलों में फैली है 48 कोस भूमि: 48 कोस भूमि पांच जिलों तक फैली हुई है. जो भी श्रद्धालु यहां पर दर्शन करने के लिए आते हैं उनके कुरुक्षेत्र भ्रमण के दर्शन तभी संपन्न माने जाते हैं जब वह 48 कोस भूमि के सभी तीर्थों की परिक्रमा कर लेते हैं. 48 कोस भूमि कुरुक्षेत्र के पीपली से शुरू होकर कैथल से होती हुई जींद उसके बाद पानीपत और करनाल तक फैली हुई है. कहते हैं कि जहां-जहां पर उस दौरान योद्धा लड़ाई लड़ते गए वह वह भूमि 48 कोस की भूमि में शामिल हो गई.

Importance of 48 kos of Kurukshetra
5 जिलों में फैली है 48 कोस भूमि.

48 कोस भूमि पर 4 यक्ष का पहरा!: महाभारत के अनुसार कुरुक्षेत्र की 48 कोस भूमि पर 4 यक्ष का पहरा रहता है. जो द्वारपाल का काम करते हैं. यह चारों यक्ष चारों दिशाओं में बैठे हुए हैं. पहला यक्ष कुरुक्षेत्र के पीपली में सरस्वती नदी के किनारे पर उत्तर पश्चिम दिशा में बैठा हुआ है जिसका नाम अरंतुक है. दूसरे जगह का नाम कपिल यक्ष है जो जींद जिले के पोकरी खेड़ी नामक स्थान पर दक्षिणी पश्चिमी सीमा पर स्थित है. तीसरा यक्ष दक्षिणी पूर्वी सीमा पर पानीपत जिले के शेख नामक ग्राम में मचकुक यक्ष के नाम से है. चौथा यक्ष कुरुक्षेत्र के अभिमन्यु पुर गांव में स्थित है. मान्यता है कि यह महाभारत काल में द्वारपाल का काम करते थे और इन्हीं की आज्ञा के बाद ही 48 कोस की भूमि में इंसान से लेकर देवी देवता तक आते थे.

Importance of 48 kos of Kurukshetra
48 कोस भूमि पर 4 यक्ष का पहरा.

48 कोस भूमि में मृत्यु होने पर अस्थि विसर्जन के लिए नहीं जाना पड़ता गंगा: महाभारत का युद्ध होने के बाद यहां पर लाखों की संख्या में सैनिक और बड़े बड़े योद्धा मारे गए थे जिनकी आत्मा को शांति देने के लिए उनका अर्थी विसर्जन कुरुक्षेत्र के 48 कोस भूमि पर ही किया गया था. मान्यता है कि तभी से इस भूमि को पवित्र भूमि कहा जाने लगा. क्योंकि अगर कोई भी मनुष्य 48 कोस की भूमि में मरता है तो उसकी आत्मा को मुक्ति मिल जाती है. इसलिए यहां पर महाभारत के बाद से ही प्रथा चलती आ रही है जो भी इंसान 48 कोस की भूमि पर मरता है उसकी अस्थि विसर्जन करने के लिए गंगा या किसी अन्य पवित्र कुंड में जाने की बजाय उनके गांव में या शहर में ही बने तालाब में प्रवाहित कर दिया जाता है. यहीं से उनकी आत्मा को मुक्ति मिल जाती है.

Importance of 48 kos of Kurukshetra
मंदिर परिसर में बाणों की शैय्या पर लेटे हुए भीष्म पितामह.

48 कोस की भूमि में है 367 तीर्थ स्थल: 48 कोस की भूमि 5 जिलों तक फैली हुई है. जिसमें 367 तीर्थ स्थल शामिल है. इन तीर्थ स्थलों को महाभारत काल के वीर योद्धा, देवी देवता और ऋषि मुनियों के नाम से ही जाना जाता है. इन्हीं ऋषि मुनियों के नाम से ही 48 कोस की भूमि में कई गांव और शहरों के नाम भी रखे हुए हैं. 48 कोस भूमि की देखरेख कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड रख रहा है.

Importance of 48 kos of Kurukshetra
कुरुक्षेत्र की 48 कोस भूमि.

48 कोस भूमि में बने तीर्थ स्थलों की परिक्रमा के लिए आते हैं लाखों श्रद्धालु: कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड का गठन तत्कालीन प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा ने इसकी महत्ता को समझते हुए किया था. ताकि महाभारत स्थली को संजो कर रखा जाए और उसके बाद से अब तक कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड ही इन सभी तीर्थों की देखरेख कर रहा है. 48 कोस भूमि में बने तीर्थ स्थलों की परिक्रमा करने के लिए हर वर्ष कुरुक्षेत्र में लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. इसलिए 48 कोस भूमि का हिंदू धर्म के लोगों के लिए बहुत ज्यादा ही महत्व है.

ये भी पढ़ें: नलहरेश्वर महादेव मंदिर: स्वयंभू का एक ऐसा स्थान जहां कदम के पेड़ से लगातार निकलता है पानी, भगवान श्री कृष्ण से विशेष संबंध

Last Updated : Sep 21, 2023, 2:05 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.