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How do you manage Parali: इन मशीनों के जरिए किसान कर सकते हैं पराली  का स्मार्ट प्रबंधन, एक क्लिक में जानें कैसे ?

How do you manage Parali: इस समय हरियाणा में ज्यादातर किसान धान की कटाई हार्वेस्टर से कर रहे हैं. ऐसे में पराली खेत में बची रह जाती है. इसका प्रबंधन करना बड़ा कठिन हो चला है. आग लगाने से किसानों को जु्र्माने का डर है. तो फिर उपाय क्या है? पराली हो या अन्य फसलों के अवशेष इनका प्रबंधन करना अब आसान है. इसके लिए मशीनें हैं. इनके उपयोग से सारा काम आसानी से हो जाता है. कृषि विभाग इन मशीनों को खरीदने के लिए सब्सिडी भी देता है. Tips For Parali management, How do you manage Parali

how to do residue management of crops smartly
कैसे किया जा सकता है फसल अवशेष का स्मार्ट प्रबंधन, एक क्लिक में जानिए सब
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Oct 12, 2023, 4:17 PM IST

Updated : Oct 12, 2023, 5:40 PM IST

पराली और फसल अवशेषों का स्मार्ट प्रबंधन कैसे करें, देखें वीडियो

कुरुक्षेत्र: पराली और फसल अवशेषों का प्रबंधन किसानों के लिए हमेशा एक बड़ी चुनौती रहा है. किसान खेत को नुकसान पहुंचाए बगैर पराली का प्रबंधन बड़ी आसानी से कर सकते हैं.इन-सीटू और एक्स-सीटू मशीनों का उपयोग करके ये काम हो सकता है. इन-सीटू प्रबंधन उन किसानों को करना चाहिए जिनको अपनी आगे की फसल की बिजाई 15 दिन से एक महीने के अंदर करनी है, वहीं एक्स-सीटू का इस्तेमाल उन किसानों को करना चाहिए, जो अभी हाल ही में मटर और आलू की फसल लगाने जा रहे हैं.

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क्या है मल्चर मशीन ? - इन सीटू प्रबंधन में कई मशीन शामिल हैं, जिसमें सबसे पहले मल्चर आता है. मल्चर सिर्फ धान फसल अवशेष प्रबंधन में ही नहीं, बाकी फसलों के अवशेष प्रबंधन करने में भी एक कारगर कृषि यंत्र है. ये मशीन ट्रैक्टर की मदद से अपने ब्लेड से फसल के अवशेष को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट देती है. धान की फसल के अलावा गन्ने की फसल के अवशेषों का प्रबंधन भी इससे आसानी से हो जाता है. इसके उपयोग के बाद आग लगाने की जरूरत नहीं पड़ती है.

how to do residue management of crops smartly

रोटावेटर मशीन की खासियत - इसे भी ट्रैक्टर के जरिए इस्तेमाल में लाया जाता है. पहले मल्चर के जरिए फसल अवशेष को खेत में छोटे-छोटे टुकड़ों में काट दिया जाता है, फिर रोटावेटर मशीन का इस्तेमाल होता है. ये मशीन कटे हुए फसल अवशेष को खेत की मिट्टी में मिला देती है. इस मशीन के पीछे एक समतल करने का यंत्र भी लगा होता है जिससे फसल अवशेष मिट्टी में मिल जाते हैं. खेत भी समतल हो जाता है. आमतौर पर फसल अवशेष प्रबंधन के साथ खेत को तैयार करने और दूसरी फसलों की बिजाई करने के लिए भी इसका इस्तेमाल होता है

क्या है सुपर सीडर मशीन ? - इन सीटू प्रबंधन में सुपर सीडर मशीन को भी शामिल किया गया है. मौजूदा वक्त में किसानों के बीच ये मशीन काफी लोकप्रिय होती जा रही है क्योंकि इस मशीन की मदद से किसान फसल अवशेष प्रबंधन के साथ-साथ गेहूं की बिजाई भी कर सकते हैं. ये मशीन काम को बेहद आसान बना देती है. फसल अवशेष प्रबंधन के साथ गेहूं बिजाई की लागत भी काफी कम हो जाती है जिससे किसानों का काफी वक्त भी बचता है

ये भी पढ़ें - नवीन ने इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ शुरू की मशरूम की खेती, अब महीने में कमा रहे 60 हजार रुपये

क्या है कटर मशीन - एक्स सीटू प्रबंधन में तीन कृषि यंत्रों को मिलाकर पराली और अन्य फसलों के अवशेषों का प्रबंधन किया जाता है. इसमें सबसे पहले कटर मशीन को शामिल किया गया है. मशीन को ट्रैक्टर की मदद से चलाया जाता है. ये मशीन फसल अवशेष को काटकर खेत में फैला देती है

रेक मशीन की खासियत - एक्स सीटू प्रबंधन में रेक दूसरी मशीन है. पहले कटर के साथ पराली और अन्य फसलों के अवशेषों को काटकर खेत में फैला दिया जाता है, उसके बाद ट्रैक्टर की मदद से रेक मशीन का इस्तेमाल किया जाता है. इस मशीन की मदद से खेत में फैली पराली को जमा करके लाइन बना दी जाती है ताकि दूसरी मशीन के जरिए आसानी से उसका प्रबंध किया जा सके.

क्या है बेलर मशीन - एक्स सीटू प्रबंधन में ये तीसरी मशीन है. बेलर मशीन को ट्रैक्टर की मदद से चलाया जाता है. इससे पराली के बड़े-बड़े गट्ठे बन जाते हैं.जिसे बाद में किसान आसानी से उठा सकता है. इसमें समय भी बचता है और मेहनत भी कम लगती है.

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सभी मशीनों पर 80% सब्सिडी : इंजीनियर राजेश वर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि दोनों ही तरह से जितनी भी मशीनों का इस्तेमाल पराली प्रबंधन में किया जाता है, उन सभी पर हरियाणा सरकार का कृषि विभाग 50% से 80% तक अनुदान देता है. अगर कोई अकेला किसान मशीन लेना चाहता है तो उस पर 50% अनुदान मिलता है, वहीं अगर किसान एक समूह बनाकर मशीनों के लिए आवेदन करते हैं तो उनको 80% अनुदान दिया जाता है.

डी कंपोजर से फसल अवशेष प्रबंधन : इन मशीनों से अलग किसान डी-कंपोजर का इस्तेमाल करके भी पराली का प्रबंधन कर सकते हैं. डीकंपोजर नाम से कृषि विभाग एक कैप्सूल तैयार करता है. एक एकड़ में चार कैप्सूल डाले जाते हैं. जिस भी खेत में पराली का प्रबंधन करना है, उस खेत में पानी डालकर चार कैप्सूल डी-कंपोजर के डाल दिए जाते हैं. करीब 15 से 20 दिन में पराली कमजोर पड़ जाती है. पिछले साल कुरुक्षेत्र कृषि विभाग ने 20 हज़ार एकड़ में पराली के लिए किसानों को फ्री में डीकंपोजर दिए थे, अब की बार 60 हज़ार एकड़ में प्रबंधन करने के लिए किसानों को डीकंपोजर फ्री में दिए जाएंगे.
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आग से नुकसान : कृषि विशेषज्ञ ने जानकारी देते हुए बताया कि पराली में आग लगाने से किसानों को कई प्रकार के नुकसान होते हैं. सबसे पहले किसानों के खेत की मिट्टी के मित्र कीट आग लगने से मर जाते हैं जिससे खेत की पैदावार कमजोर हो जाती है. वहीं खेत की मिट्टी में मौजूद नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम जैसे कई प्रकार के पोषक तत्व भी ख़त्म हो जाते हैं. इससे किसान की आने वाली फसल की पैदावार पर सीधा-सीधा असर पड़ता है.

फसल अवशेष प्रबंधन के फायदे : पराली के मिट्टी में मिलने से खेत की उर्वरक शक्ति बढ़ती है जिससे आने वाली फसल की लागत कम हो जाती है, वहीं किसानों को आर्थिक तौर पर फायदा मिलता है. मशीनों के इस्तेमाल से गेहूं की बिजाई भी हो जाती है, साथ ही आने वाली फसल में पानी कम लगता है.

पराली और फसल अवशेषों का स्मार्ट प्रबंधन कैसे करें, देखें वीडियो

कुरुक्षेत्र: पराली और फसल अवशेषों का प्रबंधन किसानों के लिए हमेशा एक बड़ी चुनौती रहा है. किसान खेत को नुकसान पहुंचाए बगैर पराली का प्रबंधन बड़ी आसानी से कर सकते हैं.इन-सीटू और एक्स-सीटू मशीनों का उपयोग करके ये काम हो सकता है. इन-सीटू प्रबंधन उन किसानों को करना चाहिए जिनको अपनी आगे की फसल की बिजाई 15 दिन से एक महीने के अंदर करनी है, वहीं एक्स-सीटू का इस्तेमाल उन किसानों को करना चाहिए, जो अभी हाल ही में मटर और आलू की फसल लगाने जा रहे हैं.

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क्या है मल्चर मशीन ? - इन सीटू प्रबंधन में कई मशीन शामिल हैं, जिसमें सबसे पहले मल्चर आता है. मल्चर सिर्फ धान फसल अवशेष प्रबंधन में ही नहीं, बाकी फसलों के अवशेष प्रबंधन करने में भी एक कारगर कृषि यंत्र है. ये मशीन ट्रैक्टर की मदद से अपने ब्लेड से फसल के अवशेष को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट देती है. धान की फसल के अलावा गन्ने की फसल के अवशेषों का प्रबंधन भी इससे आसानी से हो जाता है. इसके उपयोग के बाद आग लगाने की जरूरत नहीं पड़ती है.

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रोटावेटर मशीन की खासियत - इसे भी ट्रैक्टर के जरिए इस्तेमाल में लाया जाता है. पहले मल्चर के जरिए फसल अवशेष को खेत में छोटे-छोटे टुकड़ों में काट दिया जाता है, फिर रोटावेटर मशीन का इस्तेमाल होता है. ये मशीन कटे हुए फसल अवशेष को खेत की मिट्टी में मिला देती है. इस मशीन के पीछे एक समतल करने का यंत्र भी लगा होता है जिससे फसल अवशेष मिट्टी में मिल जाते हैं. खेत भी समतल हो जाता है. आमतौर पर फसल अवशेष प्रबंधन के साथ खेत को तैयार करने और दूसरी फसलों की बिजाई करने के लिए भी इसका इस्तेमाल होता है

क्या है सुपर सीडर मशीन ? - इन सीटू प्रबंधन में सुपर सीडर मशीन को भी शामिल किया गया है. मौजूदा वक्त में किसानों के बीच ये मशीन काफी लोकप्रिय होती जा रही है क्योंकि इस मशीन की मदद से किसान फसल अवशेष प्रबंधन के साथ-साथ गेहूं की बिजाई भी कर सकते हैं. ये मशीन काम को बेहद आसान बना देती है. फसल अवशेष प्रबंधन के साथ गेहूं बिजाई की लागत भी काफी कम हो जाती है जिससे किसानों का काफी वक्त भी बचता है

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क्या है कटर मशीन - एक्स सीटू प्रबंधन में तीन कृषि यंत्रों को मिलाकर पराली और अन्य फसलों के अवशेषों का प्रबंधन किया जाता है. इसमें सबसे पहले कटर मशीन को शामिल किया गया है. मशीन को ट्रैक्टर की मदद से चलाया जाता है. ये मशीन फसल अवशेष को काटकर खेत में फैला देती है

रेक मशीन की खासियत - एक्स सीटू प्रबंधन में रेक दूसरी मशीन है. पहले कटर के साथ पराली और अन्य फसलों के अवशेषों को काटकर खेत में फैला दिया जाता है, उसके बाद ट्रैक्टर की मदद से रेक मशीन का इस्तेमाल किया जाता है. इस मशीन की मदद से खेत में फैली पराली को जमा करके लाइन बना दी जाती है ताकि दूसरी मशीन के जरिए आसानी से उसका प्रबंध किया जा सके.

क्या है बेलर मशीन - एक्स सीटू प्रबंधन में ये तीसरी मशीन है. बेलर मशीन को ट्रैक्टर की मदद से चलाया जाता है. इससे पराली के बड़े-बड़े गट्ठे बन जाते हैं.जिसे बाद में किसान आसानी से उठा सकता है. इसमें समय भी बचता है और मेहनत भी कम लगती है.

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सभी मशीनों पर 80% सब्सिडी : इंजीनियर राजेश वर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि दोनों ही तरह से जितनी भी मशीनों का इस्तेमाल पराली प्रबंधन में किया जाता है, उन सभी पर हरियाणा सरकार का कृषि विभाग 50% से 80% तक अनुदान देता है. अगर कोई अकेला किसान मशीन लेना चाहता है तो उस पर 50% अनुदान मिलता है, वहीं अगर किसान एक समूह बनाकर मशीनों के लिए आवेदन करते हैं तो उनको 80% अनुदान दिया जाता है.

डी कंपोजर से फसल अवशेष प्रबंधन : इन मशीनों से अलग किसान डी-कंपोजर का इस्तेमाल करके भी पराली का प्रबंधन कर सकते हैं. डीकंपोजर नाम से कृषि विभाग एक कैप्सूल तैयार करता है. एक एकड़ में चार कैप्सूल डाले जाते हैं. जिस भी खेत में पराली का प्रबंधन करना है, उस खेत में पानी डालकर चार कैप्सूल डी-कंपोजर के डाल दिए जाते हैं. करीब 15 से 20 दिन में पराली कमजोर पड़ जाती है. पिछले साल कुरुक्षेत्र कृषि विभाग ने 20 हज़ार एकड़ में पराली के लिए किसानों को फ्री में डीकंपोजर दिए थे, अब की बार 60 हज़ार एकड़ में प्रबंधन करने के लिए किसानों को डीकंपोजर फ्री में दिए जाएंगे.
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आग से नुकसान : कृषि विशेषज्ञ ने जानकारी देते हुए बताया कि पराली में आग लगाने से किसानों को कई प्रकार के नुकसान होते हैं. सबसे पहले किसानों के खेत की मिट्टी के मित्र कीट आग लगने से मर जाते हैं जिससे खेत की पैदावार कमजोर हो जाती है. वहीं खेत की मिट्टी में मौजूद नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम जैसे कई प्रकार के पोषक तत्व भी ख़त्म हो जाते हैं. इससे किसान की आने वाली फसल की पैदावार पर सीधा-सीधा असर पड़ता है.

फसल अवशेष प्रबंधन के फायदे : पराली के मिट्टी में मिलने से खेत की उर्वरक शक्ति बढ़ती है जिससे आने वाली फसल की लागत कम हो जाती है, वहीं किसानों को आर्थिक तौर पर फायदा मिलता है. मशीनों के इस्तेमाल से गेहूं की बिजाई भी हो जाती है, साथ ही आने वाली फसल में पानी कम लगता है.

Last Updated : Oct 12, 2023, 5:40 PM IST
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