करनाल: मंडूसी या गुल्ली डंडा गेहूं का एक प्रमुख खरपतवार है. इस खरतपतवार की वजह से गेंहू की फसल (Weeds in Wheat Field) को काफी नुकसान भी होता है. बहुत से क्षेत्र ऐसे हैं जहां खरपतवार उगने के बाद इस पर दवाएं भी असर नहीं करती. हरियाणा और पंजाब के कुछ भागों में गेहूं में यह इतना अधिक उगता है कि किसानों को गेहूं की हरी फसल को पशुओं के चारे के रूप में काटना पड़ता है. इसलिए इसका प्रबंधन करना अब बहुत जरूरी हो गया है.
कैसे करें मंडूसी की पहचान: गेहूं के खेत में मंडूसी के पौधों की पहचान काफी मुश्किल (How to identify Mandusi) होती है. लेकिन ध्यान से देखने पर पता चलेगा कि मंडूसी के पौधे सामान्यतौर पर गेहूं के मुकाबले हल्के रंग के होते हैं. इसके अतिरिक्त मंडूसी का तना जमीन के पास से लाल रंग का होता है. तना तोड़ने या काटने पर इसके पत्तों, तने और जड़ों से भी लाल रंग का पदार्थ निकलता है जबकि गेहूं के पौधे से निकलने वाला पदार्थ रंगविहीन होता है.
मंडूसी का इलाज कैसे करें: गेहूं की बिजाई 15 नवम्बर से पहले करें. लाइन में कम दूरी रखें (लगभग 18 सेमी). गेहूं के पौधों की संख्या बढ़ाने के लिए आड़ी-तिरछी बिजाई करें. खाद को बीज के 2 से 3 सेंटीमीटर नीचे डालें. मेढ़ पर बिजाई करने से भी मंडूसी का प्रकोप कम होता है. बीज बनने से पहले ही मंडूसी को उखाड़कर पशु चारे के लिए प्रयोग करें. मेढ़ों और पानी की नालियों को साफ रखें. खेत में तीन सालों में कम से कम एक बार बरसीम व जई की फसल चारे के लिए उगायें. जल्दी पानी लगाकर मंडूसी को उगने दें और फिर दवाई या खेत को जोतकर इसे खत्म करने के बाद गेहूं की बीजाई (Weeds in Crops in Haryana) करें. जीरो टिलेज में मंडूसी कम उगती है. लेकिन लगातार कई सालों तक इसके प्रयोग से दूसरे खरपतवारों का प्रकोप बढ़ जाता है. गेहूं की जल्दी बढ़ने वाली किस्में उगायें.
यांत्रिक विधि से खरपतवार का नियंत्रण: मंडूसी का पौधा शुरू में बिल्कुल गेहूं के पौधे जैसा होता है. इसलिए इसे पहचान पाना आसान नहीं होता. इसे निराई-गुड़ाई करके निकालना बहुत कठिन है. बिजाई के 30 से 45 दिन बाद खुरपे आदि से गुड़ाई की जा सकती है. क्योंकि ज्यादातर किसान, मुख्यत: हरियाणा में, छिट्टा देकर बीजाई करते हैं, इसलिए यांत्रिक विधि से खरपतवार का नियंत्रण सम्भव नहीं हो पाता अत: दवाई से ही नियंत्रण करना जरूरी हो जाता है. गेहूं की फसल में मंडूसी का प्रकोप बढ़ने से किसान चिंतित नजर आ रहे हैं. किसान बार-बार मंडूसी को खत्म करने के लिए खरपतवार नाशक दवा का छिड़काव कर रहे हैं, लेकिन मंडूसी नियंत्रण में नहीं आ रही है. किसानों का कहना है कि खरपतवार पर काबू पाने के लिए महंगी दवाइयों का छिड़काव करना पड़ रहा है.
जिला कृषि उपनिदेशक डॉ. आदित्य प्रताप डबास ने कहा कि गेंहू की फसल में मंडूसी उगने पर किसान पहली सिंचाई 21 दिन के बाद करें. सिंचाई के बाद जब खेत में हल्की नमी हो तब छिड़काव उचित रहता है. मंडूसी व चौड़ी पत्तीदार खरपतवार के नियंत्रण के लिए 8 ग्राम अलग्रीप व केवल मंडूसी के लिए 160 ग्राम टॉपिक या 13 ग्राम लीडर दवाई को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ गेहूं की बिजाई के 30 या 35 दिन बाद के हिसाब से छिड़काव करें. किसान तेज हवा में दवा का छिड़काव ना करें.
दवाईयों का प्रयोग: दवाई से खरपतवार नियंत्रण को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि इससे मजदूरी कम लगती है और दूसरे पौधे टूटते नहीं हैं. जैसा कि यांत्रिक विधि में होता है. दवाई से नियंत्रण भी ज्यादा प्रभावी होता है क्योंकि दवाई से लाईनों के बीच के खरपतवार भी आसानी से नियंत्रित हो जाते है जोकि गेहूं से मंडूसी की समानता होने के कारण निराई-गुड़ाई के समय छूट जाते हैं. उन्होंने कहा कि फसल चक्र हमेशा अपनाएं इससे मंडूसी कम हो जाती है.
क्या कहते हैं कृषि विशेषज्ञ: कृषि विशेषज्ञ का कहना है कि किसान 2 से 3 स्प्रे करने के बाद भी मंडूसी पर नियंत्रण नहीं कर पाते. आदित्य डबास ने कहा कि इसके लिए 30 ग्राम की आठ पुरिया 1 एकड़ में शगुन नामक दवाई साथ में एक डिब्बा एक्सेल और इपीसीएन 9 दवाई को मिलाकर घोल बनाएं. जिसका 200 लीटर पानी प्रति एकड़ के हिसाब से स्पे करें. स्प्रे चौड़ी नोजल वाले पंप से ही करें. गेंहू की दो किस्म 505 और 303 ऐसी हैं इसमें केवल एक्सेल दवाई का ही सफल करें.
दवाई की सही डोज खेत में डालें: कृषि विशेषज्ञ ने कहा कि किसानों की समस्या रहती है कि स्प्रे करने से खरपतवार नष्ट होने के बजाय फसल के ऊपर आ जाता है. ऐसे में वह कृषि विशेषज्ञ की सलाह लेकर ही दवाई की सही डोज खेत में डालें. उन्होंने कहा कि जहां से भी किसान दवाई लेते हैं उसका पक्का बिल लें. अगर किसी के गेहूं को स्प्रे करने से नुकसान होता है तो विभाग में सारे बिल के साथ कंप्लेट दें. उस दुकानदार के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
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