ETV Bharat / state

गेहूं की फसल में तेला व चेपा रोग की कैसे करें रोकथाम, जानें कृषि विशेषज्ञ की राय

खेतों में नमी होने के कारण गेहूं की फसल में काले और हरे कीट का प्रकोप लगातार बढ़ता जा रहा है. समय रहते अगर किसानों ने इस पर ध्यान नहीं दिया तो ये कीट गेहूं की पैदावार को कम कर सकते हैं. ऐसे कीट से बचाव के (chepa disease prevention) लिए पढ़ें पूरी रिपोर्ट.

chepa disease prevention
chepa disease prevention
author img

By

Published : Feb 11, 2022, 8:42 PM IST

करनाल: मौसम में बदलाव के साथ ही सरसों के बाद अब तेला व चेपा रोग गेहूं की फसल को भी चपेट (chepa disease in wheat crop) में ले रहा है. कृषि विशेषज्ञों की मानें तो यह रोग उन फसलों में अधिक आता है, जो काले रंग में एकदम कच्ची हो तथा दूसरा जो फसल देती हो. जिले के किसानों को इस रोग के कारण उनकी पैदावार घटने का भय सता रहा है. जो फसलें इस समय बालियां निकाल रही हैं, उन गेहूं की फसल में काले रंग का चिपचिपा सा रोग आया हुआ है. तेला व चेपा रोग फसलों का रस चूसने में लगा हुआ है जिसका प्रभाव फसल की बढ़ोतरी पर पड़ रहा है.

ऐसे में फसलों को इस रोग से बचाने के लिए क्या उपाय करने चाहिए. इसके लिए ईटीवी भारत की ने कृषि विशेषज्ञ डॉ. बलबीर भान सिंह से बात कर एक रिपोर्ट तैयार की है. जिसमें गेहूं की फसल में पड़ने वाले चेपा रोग की रोकथाम और बचाव के उपाय को विस्तार से समझाया (chepa disease prevention) गया है. साथ ही इस रोग के लक्षणों के बारे में भी बताया है. जिससे किसान अपनी फसल को इस रोग से बचाने में कारगर साबित हो और फसल की पैदावार पर कोई प्रभाव नहीं पड़े.

chepa disease prevention
फसल में लगे कीट

ये भी पढ़ें- नूंह के कैथली बेर लोगों को बना रहे अपनी मिठास का दीवाना, बागवानी विभाग को रहा लाखों का मुनाफा

तेला व चेपा रोग से कैसे करें रोकथाम: कृषि विशेषज्ञ डॉ. बलबीर भान सिंह ने बताया कि इस रोग से बचाव के लिए किसानों को 60 दिन से बड़ी फसल में यूरिया नहीं डालनी चाहिए. डॉ. बलबीर भान ने बताया कि गर्म दिन आते ही फरवरी तथा मार्च के आरंभ में यह रोग आता है. उन्होंने कहा कि ऐसे मौसम में फसलों में थोड़ा पीला पन रखकर ही फसल को इस रोग से बचाया जा सकता है. रोग होने पर उपाय के लिए डॉक्टर ने बताया कि यह अधिक घातक रोग नहीं है. अगर समय पर दवा का छिड़काव कर दिया जाए, तो इस पर काबू पाया जा सकता है.

कृषि विशेषज्ञ ने कहा कि इस रोग की रोकथाम के लिए 500 मिलीलीटर एंडोसल्फान 35 ईसी, 400 मिलीलटर मैलाथियान 50 ईसी या फिर कंफीडोर का प्रयोग 250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए. उन्होंने कहा कि फसलों में दवा का छिड़काव तब ही करें, जब 100 बालियों में से 12 बालियों पर इन कीट प्रभाव हो अथवा पौधे के पत्ते पर इस रोग के कम से कम 10 कीट हो. डॉ. ने कहा कि अगर कीटों की संख्या इनसे कम हो तो विभाग दवा के छिड़काव की सिफारिश नहीं करता.

chepa disease prevention
फसल में लगे कीट

ये भी पढ़ें- परंपरागत खेती छोड़ किसानों ने अपनाई खेती की नई तकनीक, अब हो रहा लाभ

तेला व चेपा रोग के लक्षण: तेला व चेपा रोग के जिम्मेदार छोटे-छोटे कीट होते हैं, जिन्हें ऐफिड व थ्रीपंस नाम दिया गया है. कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि तेला के कीट काले रंग के होते हैं तथा चेपा के कीट हरे रंग के होते हैं. ये कीट गेहूं की फसल के बालियों पर तथा पत्तों पर होते हैं और जिस फसल में इनका प्रभाव होता है, उस फसल के पत्ते चिपचिपे व तेलिए तथा काले रंग के होने शुरू हो जाते हैं.

हरियाणा की विश्वसनीय खबरों को पढ़ने के लिए गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें Etv Bharat APP

करनाल: मौसम में बदलाव के साथ ही सरसों के बाद अब तेला व चेपा रोग गेहूं की फसल को भी चपेट (chepa disease in wheat crop) में ले रहा है. कृषि विशेषज्ञों की मानें तो यह रोग उन फसलों में अधिक आता है, जो काले रंग में एकदम कच्ची हो तथा दूसरा जो फसल देती हो. जिले के किसानों को इस रोग के कारण उनकी पैदावार घटने का भय सता रहा है. जो फसलें इस समय बालियां निकाल रही हैं, उन गेहूं की फसल में काले रंग का चिपचिपा सा रोग आया हुआ है. तेला व चेपा रोग फसलों का रस चूसने में लगा हुआ है जिसका प्रभाव फसल की बढ़ोतरी पर पड़ रहा है.

ऐसे में फसलों को इस रोग से बचाने के लिए क्या उपाय करने चाहिए. इसके लिए ईटीवी भारत की ने कृषि विशेषज्ञ डॉ. बलबीर भान सिंह से बात कर एक रिपोर्ट तैयार की है. जिसमें गेहूं की फसल में पड़ने वाले चेपा रोग की रोकथाम और बचाव के उपाय को विस्तार से समझाया (chepa disease prevention) गया है. साथ ही इस रोग के लक्षणों के बारे में भी बताया है. जिससे किसान अपनी फसल को इस रोग से बचाने में कारगर साबित हो और फसल की पैदावार पर कोई प्रभाव नहीं पड़े.

chepa disease prevention
फसल में लगे कीट

ये भी पढ़ें- नूंह के कैथली बेर लोगों को बना रहे अपनी मिठास का दीवाना, बागवानी विभाग को रहा लाखों का मुनाफा

तेला व चेपा रोग से कैसे करें रोकथाम: कृषि विशेषज्ञ डॉ. बलबीर भान सिंह ने बताया कि इस रोग से बचाव के लिए किसानों को 60 दिन से बड़ी फसल में यूरिया नहीं डालनी चाहिए. डॉ. बलबीर भान ने बताया कि गर्म दिन आते ही फरवरी तथा मार्च के आरंभ में यह रोग आता है. उन्होंने कहा कि ऐसे मौसम में फसलों में थोड़ा पीला पन रखकर ही फसल को इस रोग से बचाया जा सकता है. रोग होने पर उपाय के लिए डॉक्टर ने बताया कि यह अधिक घातक रोग नहीं है. अगर समय पर दवा का छिड़काव कर दिया जाए, तो इस पर काबू पाया जा सकता है.

कृषि विशेषज्ञ ने कहा कि इस रोग की रोकथाम के लिए 500 मिलीलीटर एंडोसल्फान 35 ईसी, 400 मिलीलटर मैलाथियान 50 ईसी या फिर कंफीडोर का प्रयोग 250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए. उन्होंने कहा कि फसलों में दवा का छिड़काव तब ही करें, जब 100 बालियों में से 12 बालियों पर इन कीट प्रभाव हो अथवा पौधे के पत्ते पर इस रोग के कम से कम 10 कीट हो. डॉ. ने कहा कि अगर कीटों की संख्या इनसे कम हो तो विभाग दवा के छिड़काव की सिफारिश नहीं करता.

chepa disease prevention
फसल में लगे कीट

ये भी पढ़ें- परंपरागत खेती छोड़ किसानों ने अपनाई खेती की नई तकनीक, अब हो रहा लाभ

तेला व चेपा रोग के लक्षण: तेला व चेपा रोग के जिम्मेदार छोटे-छोटे कीट होते हैं, जिन्हें ऐफिड व थ्रीपंस नाम दिया गया है. कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि तेला के कीट काले रंग के होते हैं तथा चेपा के कीट हरे रंग के होते हैं. ये कीट गेहूं की फसल के बालियों पर तथा पत्तों पर होते हैं और जिस फसल में इनका प्रभाव होता है, उस फसल के पत्ते चिपचिपे व तेलिए तथा काले रंग के होने शुरू हो जाते हैं.

हरियाणा की विश्वसनीय खबरों को पढ़ने के लिए गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें Etv Bharat APP

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.