करनाल:अमेरिकी महिलाओं की ओर से कारखानों में समानता के अधिकार को लेकर चलाए गए आंदोलन को मान्यता प्रदान करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1975 में 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की परंपरा की शुरुआत की. जिसके बाद से 8 मार्च महिला दिवस के रूप में मनाए जाने लगा.
आज महिला दिवस उद्यमी महिलाओं की पहचान का प्रतीक है, जिन्होंने अपने शैक्षिक, व्यवसायिक, वैज्ञानिक उपलब्धियों से ना सिर्फ खुद को बल्कि विश्व की आधी आबादी को एक नया विश्वास दिलाया है. महिला दिवस इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हम इस बात को जांच लें कि हमारे जीवन में मुख्य भूमिका निभाने वाली महिलाओं की सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मुख्य मुद्दे को लेकर हम और हमारा समाज कितना संवेदनशील हैं.
महिला दिवस के अवसर पर सरकार और प्रशासन भले ही महिलाओं से जुड़ी कितनी ही योजनाओं की घोषणा करें, फिर भी समाज में महिलाओं का सुरक्षित घूमना संभव नहीं है. आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि पूरे देश में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों की संख्या लगातार बढ़ रही है.
ईटीवी भारत ने की महिलाओं से बातचीत
ऐसे में महिला दिवस के मौके पर ईटीवी भारत ने महिलाओं से बातचीत की और जाना कि इस दिन को वो दूसरे दिनों से अलग मानती हैं? क्या वो खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं या फिर नहीं?
'आज भी अकेले निकलने में लगता है डर'
महिलाओं ने बताया कि करनाल में महिलाओं से जुड़ी कई योजनाओं को चलाया जा रहा है. पुलिस प्रशासन की ओर से महिला थाने, दुर्गा शक्ति ऐप जैसी कई योजनाएं शुरू की गई हैं, लेकिन आज भी बेखौफ घूमते अपराधियों और अराजक तत्वों की वजह से वो देर रात सड़कों पर अकेले नहीं निकल सकती हैं.
'निर्भया के दोषियों को जल्द मिले सजा'
महिलाओं ने बताया कि निर्भया कांड के दोषियों को जिस तरह इतने साल बाद भी सजा नहीं मिल पा रही है. उससे अपराधियों के हौसले बुलंद हो रहे हैं और प्रशासनिक व्यवस्था लाचार साबित हो रही है. अगर हम सच में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गंभीर हैं तो प्रशासन की ओर से व्यापक स्तर पर समाज की मानसिकता बदलने के प्रयास करने होंगे.
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महिलाओं के प्रति अपराध करने वाले दोषियों को तुरंत सजा न्यायपालिका की ओर से, ऐसे केसों की प्राथमिकता के आधार पर देनी चाहिए. ताकि वो सजा दूसरे आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों में डर पैदा कर सके.