करनाल: हिंदू धर्म में प्रत्येक माह दो एकादशी के व्रत आते हैं और साल में कुल 24 एकादशियां आती हैं. प्रत्येक एकादशी का अपना महत्व है और इस दिन व्रत करने से व्यक्ति को कई प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है. ज्योतिषाचार्य पंडित विश्वनाथ ने बताया कि पंचांग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जया एकादशी कहा जाता है. इस दिन लोग व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु का विधि-विधान से पूजन करते हैं. धार्मिक पुराणों के अनुसार जया एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को मृत्यु के बाद भूत-प्रेत बनकर भटकना नहीं पड़ता और आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और दान का भी विशेष महत्व माना गया है. आइए जानते हैं इस बार कब है जया एकादशी का व्रत और पूजा का विधि.
जया एकादशी व्रत 2023 शुभ मुहूर्त: जया एकादशी को भूमि एकादशी और भीष्म एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. कहते हैं इस व्रत को करने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. हिंदू पंचांग के अनुसार के अनुसार इस बार माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 31 जनवरी 2023 को रात 11 बजकर 53 मिनट पर शुरू होगी और 1 फरवरी 2023 को दोपहर 2 बजकर 1 मिनट पर इसका समापन होगा. उदयातिथि के अनुसार जया एकादशी का व्रत 1 फरवरी को रखा जाएगा. जया एकादशी के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 7 बजकर 10 मिनट पर शुरू होगी और पूरे दिन रहेगा. इस व्रत का पारण 2 फरवरी 2023 को किया जाएगा. पारण का शुभ समय सुबह 7 बजकर 9 मिनट से लेकर सुबह 9 बजकर 19 मिनट तक रहेगा.
जया एकादशी पूजन विधि: जया एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि स्वच्छ वस्त्र पहनें और हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प करें. इसके बाद मंदिर में गंगाजल छिड़कर शुद्ध करें और भगवान विष्णु का पूजर करें. एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करते समय उन्हें पीले रंग के फूल अर्पित करने चाहिए. देसी घी में मिलाकर हल्दी का तिलक लगाना चाहिए. इसके बाद घी का दीपक जलाएं और मिठाई अर्पित करें. एकादशी के दिन शाम के समय तुलसी के पौधे के समक्ष भी घी का दीपक अवश्य जलाना चाहिए. इस दिन अन्न ग्रहण नहीं किया जाता और दिनभर केवल फलाहार ही लिया जाता है.
जया एकादशी का महत्व: वेद पुराण के अनुसार, हर व्यक्ति को उसके कर्मों के हिसाब से फल मिलता है. ऐसे ही कई व्यक्तियों को प्रेम और भूत पिशाच योनी पर जाना पड़ता है. ऐसे में जो व्यक्ति जया एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें कष्टकारी पिशाच योनी से मुक्ति मिल जाती है.
जया एकादशी व्रत कथा: जया एकादशी व्रत कथा कुछ इस प्रकार है... नंदन वन में उत्सव चल रहा था. इस उत्सव में सभी देवता, सिद्ध संत और दिव्य पुरूष वर्तमान थे. उस समय गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य प्रस्तुत कर रही थीं. सभा में माल्यवान नामक एक गंधर्व और पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या का नृत्य चल रहा था. इसी बीच पुष्यवती की नजर जैसे ही माल्यवान पर पड़ी वह उस पर मोहित हो गयी. पुष्यवती सभा की मर्यादा को भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी कि माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो. माल्यवान गंधर्व कन्या की भंगिमा को देखकर सुध बुध खो बैठा और गायन की मर्यादा से भटक गया जिससे सुर ताल उसका साथ छोड़ गये.
इन्द्र को पुष्पवती और माल्यवान के अमर्यादित कृत्य पर क्रोध हो आया और उन्होंने दोनों को श्राप दे दिया कि आप स्वर्ग से वंचित हो जाएं.पृथ्वी पर निवास करें. मृत्यु लोक में अति नीच पिशाच योनि आप दोनों को प्राप्त हों. इस श्राप से तत्काल दोनों पिशाच बन गये .हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर दोनों का निवास बन गया. यहां पिशाच योनि में इन्हें अत्यंत कष्ट भोगना पड़ रहा था. एक बार माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनों अत्यंत दु:खी थे. उस दिन वे केवल फलाहार रहे. रात्रि के समय दोनों को बहुत ठंड लग रही थी. दोनों रात भर साथ बैठ कर जागते रहे. ठंड के कारण दोनों की मृत्यु हो गयी. अनजाने में जया एकादशी का व्रत हो जाने से दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति भी मिल गयी.
अब माल्यवान और पुष्पवती पहले से भी सुन्दर हो गयी और स्वर्ग लोक में उन्हें स्थान मिल गया.देवराज ने जब दोनों को देखा तो चकित रह गये और पिशाच योनि से मुक्ति कैसी मिली यह पूछा. माल्यवान के कहा यह भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है. हम इस एकादशी के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हुए हैं. इन्द्र इससे अति प्रसन्न हुए और कहा कि आप जगदीश्वर के भक्त हैं. इसलिए आप अब से मेरे लिए आदरणीय है आप स्वर्ग में आनन्द पूर्वक विहार करें.
इस दिन क्या न करें: भगवान विष्णु की आराधना का शुभ दिन जया एकादशी माना जाता है इसलिए इस दिन प्रातः काल जल्दी उठना चाहिए और शाम के समय भी नहीं सोना चाहिए. एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की आराधना के लिए रखा जाता है. इसलिए जया एकादशी के दिन अपने खान-पान में संयम बरतना चाहिए और सात्विकता का पालन करना बहुत ही जरूरी माना जाता है. एकादशी के दिन चावल का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जो मनुष्य एकादशी के दिन चावल का सेवन करता है वह रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म लेता है.
शास्त्रों के अनुसार, सभी तिथियों में एकादशी की तिथि बहुत ही शुभ मानी जाती है. इस दिन कठोर शब्दों का प्रयोग करने से बचना चाहिए. एकादशी के दिन किसी भी प्रकार के लड़ाई-झगड़े से दूर रहना चाहिए. इस दिन झूठ भी नहीं बोलना चाहिए. किसी का अपमान नहीं करना चाहिए. जया एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. इस दिन श्रद्धा भाव से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए, जिससे की विशेष लाभ की प्राप्ति होती है.
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