करनाल: देश के एकमात्र राष्ट्रीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान ने कम पानी से पैदा होने वाली गेहूं की 15 किस्में तैयार की हैं. इन किस्मों की खासियत ये है कि कम पानी में किसान ज्यादा पैदावार कर सकता है. बता दें कि सूबे में गिरते जलस्तर को देखते हुए राष्ट्रीय संस्थान नई-नई किस्में तैयार कर रहा है.
इन किस्मों को तैयार करने का मकसद कम पानी से ज्यादा मुनाफा कमाना है. इन किस्मों की मदद से एक हेक्टेयर में 50 से 55 क्विलंटल तक गेहूं की पैदावार की जा सकती है. राष्ट्रीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान के विशेषज्ञों ने ईटीवी भारत हरियाणा से खास बातचीत में बताया कि इस साल उन्होंने डीबीडब्लू 252 नाम की नई किस्म तैयार की है. इससे किसानों को बिजली और पानी दोनों की बचत होगी.
हालांकि धान के मुकाबले गेहूं की खेती में पानी कम खर्च होता है, लेकिन जिस तेजी से सूबे में भूजल स्तर गिर रहा है. आने वाले दिनों में शायद गेहूं की खेती करना भी मुश्किल हो जाए. इसे देखते हुए वैज्ञानिकों ने इस नई किस्म को तैयार किया है. इस किस्म की खासियत ये भी है कि ये चर्चित बीमारी वीट ब्लास्ट को भी फसल से दूर रखती है. जिससे किसानों का दूसरी दवाईयों का खर्च भी बचता है.
संस्थान के निदेशक ज्ञानेंद्र प्रताप ने बताया कि आने वाले दिनों में पानी की समस्या विकराल रूप ले सकती है. अगर जल के दोहन को रोकने के लिए ठोस इंतजाम नहीं किए गए, तो जलस्तर काफी नीचे गिर सकता है. हालांकि सरकार ने जल स्तर में सुधार के लिए मेरा पानी मेरी विरासत नाम की योजना चलाई है. इसका फायदा कितना होगा. ये आने वाले वक्त में ही पता चलेगा.
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नई किस्मों के बारे में ज्ञानेंद्र प्रताप ने कहा कि इससे एक तो पानी की बचत होगी और दूसरा बिजली की. इसकी को ध्यान में रखते हुए संस्थान दो दशकों से ऐसी कई किस्मों को पैदा करने की कोशिश कर रहा है. जिसमें पानी की खपत कम हो. इन नई किस्मों से किसानों को भरपूर फायदा मिलेगा. उन्होंने कहा कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वन ड्रॉप और मोर क्रॉप्स वाली योजना पर लगातार काम कर रहे हैं. संस्थान के निदेशक ज्ञानेंद्र प्रताप ने बताया कि हमने ऐसी 15 किस्में विभिन्न क्षेत्रों के लिए निकाली है, जो कम पानी में भी हो सकती हैं.